एक टुकड़ा आसमान
एक टुकड़ा आसमान
खुशी के मारे होंठों से आज बातें ही नहीं निकल रही थी। इतनी खुशी तो उस दिन भी नहीं हुआ था जब खुद की नौकरी लगी थी। सही ही है। मां बाप कहां अपने लिए खुश होते हैं? उनकी खुशी और उनके गम बच्चों में ही कहीं समा जाती है। सारे सपने बच्चों के आंखों में ही उनको दिख जाती है। रमेश बाबू को ऐसे मुस्कुराते हुए देख सुमन समझ गई शायद। इसलिए दरवाजा खोलने के बाद मुंह फुला कर चुपचाप रसोई में चली गई।
"अरे भगवान…ओ सुमन रानी…अरे कहां गई तुम…सुनो तो क्या खबर है…."रमेश चिल्लाकर बुलाने लगे।
"मुझे नहीं सुनना है…"सुमन बोली
रमेश…"तुम हमेशा ऐसे ही तो मत बोला करो। यार बच्चे ने बहुत ख्वाब देखें हैं इस दिन के लिए। कभी तो उसकी खुशियों का खयाल रखा करो…"
सुमन…"हां…दुश्मन हूं मैं उसकी…तभी तो यह नहीं चाहती न…"
दोनों में ऐसे ही बातों का जंग शुरू हुआ था कि रूपा आ गई…
"मोम…डैड…आप लोग झगड़ा कर रहे हैं?" हैरान हो कर रूपा बोली।
रमेश…"अरे ना मेरी जान…तेरी मां तो बस …हमेशा की तरह मेरी खाना पचाने में थोड़ी मदद कर रही है…हा हा हा…"
सुमन..."हां…बाप बेटी मिल कर मेरी खिल्ली उड़ाओ। किसी को मेरी फिक्र तो नहीं है। बस…खाना बनाना और पचाना…यही काम करती हूं में…"
रूपा…"डैड..पर आप दोनो किस बात पे बात कर रहे थे वो तो बताइए…"
रमेश…"ओ गॉड…देख…तुझे खुश खबरी देना ही भूल गया मैं…अरे तेरी आपलिकेसन मंजूर हो गई। तू यू एस जाएगी अब आगे की पढ़ाई के लिए…"
रूपा…"क्या…!! वाओ…थैंक्यू डैड…लव यू…"कह कर रमेश के सीने से लिपट गई लाडली।
पर अपने मां का उतरा हुआ चेहरा उसे परेशान कर रहा था। वैसे एक लौती बेटी को सात समंदर पार भेजने के लिए उनकी हिचकिचाहट भी जायज था। पर जब से पढ़ाई शुरू की थी तब से रूपा ने एक ही ख्वाब देखा था की उसको यूएस जाना है। और आज वो सपना सच होने का समय आ गया था। सुमन की नाराजगी पीछे छोड़ के रूपा तैयारी शुरू करने लगी थी विदेश जाने के लिए।
नए कपड़े, जूते और अन्य जरूरत के सामान खरीद के ला रहे थे रमेश। साथ ही वीसा, पासपोर्ट सब बन के तैयार भी हो गए। टिकट भी आ गए। और वो दिन भी आ गया जब रूपा को निकलना था।
आस पड़ोस के लोग बधाइयां देने आते थे। दोस्त रिश्तेदार भी अपनी दुआएं देने आते थे। सब खुश थे। होंगे भी क्यूं नहीं? आजकल विदेश जा कर पढ़ाई व नौकरी करना एक फ्यासन हो चुका है। शादी कर के भी बच्चे बाहर जाना ज्यादा पसंद करते हैं। बहुत कम बच्चे अपने मिट्टी अपने देश में रहना चाहते हैं।
रमेश बहुत दिल लगा के रूपा के जाने के तैयारी में जुटे थे। सुमन ही खुद को नहीं मना पा रहे थे। पर उनकी अब कौन सुनता ? इसलिए वो भी जो हो रहा था उसको अपनाने के लिए अपने आप को मनाने में लगी थी।
एयरपोर्ट में जब रूपा आखरी बार गले मिली तो सुमन बच्चों के तरह रो पड़ी। उनको संभालना मुश्किल हो गया। बहुत जतन के बाद रमेश अपनी लाडली की यात्रा शुभ हो इसलिए रोना बंद करने को कह कर स्थिति को संभाली। रूपा बोर्ड कर चुकी थी। पूरे अठारह घंटों की यात्रा के बाद वो विदेश पहुंच कर अपनी खैरियत बताने वाली थी। उसको जाते हुए नहीं देख पाएंगे दोनों यह सोच कर एयरपोर्ट से बाहर आ गए रमेश और सुमन। इतने घंटे कैसे वक्त बीतेगा यही सवाल था मन में। अब तो रमेश भी दुखी थे। बच्ची के सामने कुछ कहे नहीं मगर अपने आप से जो आंसू छुपा के रखने की कोशिश कर रहे थे वो सुमन के सामने पता नही कैसे निकल गए और दोनों एक दूसरे को संभालने के जगह जी भर के कुछ पल रोने लगे। फिर मुश्किल से खुद को संभाला और घर के और रवाना हुए।
अब घर घर जैसा कहां लग रहा था? जिस घर का बच्चा अचानक दूर चला जाए वो घर खामोशी के आगोश में कहीं छुप जाता है । न खाने पीने की चाहत थी ना किसी और काम में मन लग रहा था। बस इंतजार उस वक्त का था जब रूपा यू एस पहुंच के अपनी खैरियत बता दे…!!
"वहां पहुंचते हुए दो पहर हो जाएगा ना" सुमन पूछी
"चार बज जायेंगे कल के…"रमेश बोले।
शायद और भी बहुत कुछ कहना था पर बाहर कुछ आवाज सुनाई दी और दोनों उठ कर चले गए।
भीड़ जमी हुई थी मेन गेट के पास। लोग जमा हुए थे। रमेश और सुमन पास जाकर देखे तो एक बूढ़ा आदमी नीचे अपने सर झुकाए बैठा हुआ था। सभी बातें कर रहे थे के यह आदमी रास्ते पे चलते चलते नीचे गिर गया। शायद तबीयत खराब होगी या बेचारा भूखा होगा। यह सुनकर सुमन घर के अंदर गई और कुछ खाना पानी लेकर आई। बूढ़े आदमी को पानी पीने बुलाया तो वो ऊपर देखे। और उनको देख सुमन के आंखों में अंधेरा सा छा गया। रमेश भी पहचान चुके थे उनको। और पानी देकर हाथ पकड़ कर घर के अंदर ले के आए।
सब खामोश थे। बूढ़ा आदमी जैसे आंखें नहीं मिला पा रहा था रमेश से। उसकी ऐसी हालत के पीछे के बजाय कैसे कोई पूछता भला…!! फिर भी चुप्पी तोड़कर सुमन बोली…"कुछ खा लो माधव…"और रोटी सब्जी का थाली बढ़ाने लगी। मुंह उठाकर माधव देखा और बहुत जोर जोर से रोने लगा।
रमेश समझाते हुए कहे…"रोता ही रहेगा तो कुछ नहीं होगा माधव। अब बता इतने साल कहां था और क्या कर रहा था? तेरी ऐसी हालत के पीछे क्या वजह है? और यह बता आज कैसे यहां का रास्ता भूल गया?"
माधव अपने हाथ जोड़ के माफी मांगते हुए बोला..."साब…सोचा था कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखूंगा। पर जिंदगी ने ऐसे मेरे गाल पे तमाचा कस दिया के में कहीं का नहीं रहा। "
तब तक ऊपर कमरे के सफाई में लगी हुई शारदा भी नीचे आ चुकी थी। और माधव को देख वहीं बुत बने खड़े रह गई…न कोई सवाल था न कोई जवाब का तलब…!!बस एक पल चुप रही और अपने काम के लिए आगे बढ़ने लगी। सुमन उसके हाथ पकड़ के उसको रोकते हुए माधव को कही…"पहले खाना खा लो माधव…फिर बात करना…"और रमेश के पास सोफे पर बैठ गई।
शारदा भी नीचे चुपचाप बैठी थी। पुराने कुछ जख्म शायद ताजा हो रहे थे…!!और माधव सबको माफी मांगने के बाद अपने मुंह खोल के बोला…
"दो पैसे ज्यादा कमाने के चक्कर में में अपने बीबी को नौवें महीने में अकेला छोड़ कर चला गया था। सूरत में तब बहुत कारखाने बन रहे थे। काम की कोई फिक्र नहीं थी। यहां आपके ड्राइवर की नौकरी से ज्यादा मुझे वहां की मजदूरी अच्छी लगने लगी। अपने बूढ़े पिता और गर्भवती पत्नी को पीछे छोड़ मैं वहां चला गया। पैसे थोड़े जरूर मिले। बहुत बार सोचा भी के वापस आऊं। पर पैर जैसे जकड़ गए थे। अपनी एक अलग दुनिया बन गई थी वहां। दोस्त मजदूर सब अपने अपने परिवार से दूर थे। इसलिए दिन में काम और रात को आराम के लिए कोठी हम सब का ठिकाना ही बन गया। पर साब…जितना कमाया न उतने से कई ज्यादा पैसे उड़ा दिया हम सबने। हमेशा यही सोचा के पैसे ज्यादा रखूंगा तो वापस आ के घर की खबर लूंगा। घरवालों की खबर लूंगा। पर पैसे कम ही रखा है यह देख हिम्मत नहीं हुई पीछे आने की। ऊपर से पिछले चार महीने पहले पता चला की मुझे एड्स की बीमारी हुई है। इसलिए सोचा के मरने से पहले…"
उसको अपनी बात पूरा करने से रोकते हुए शारदा बोली…"इसलिए सोचा के मरने से पहले सबको मार डालूं? क्यों? पिछले दस साल हमने कैसे गुजारे कभी नहीं पूछा। मेरे पेट का बच्चा जिंदा है की नहीं ये न जाना और अपने बाप के भी खबर नहीं रखी और अब आ गए जब मौत तुम्हे गले लगाने वाली है….?"
माधव धीरे बोला…"शारदा…माफ़ कर दे मुझे। गलती हो गई। मुझे पता है हमारी बेटी हुई है। पता लगाया था मैंने। पर बेटी हुई है इसलिए नही आया। मेरे सर पे सैतान सवार था। उसी की सजा मिली है मुझे। बीमार हो गया हूं देख। उम्र से ज्यादा बूढ़ा लग रहा हूं। चंद सांसे बची है अब तो। अब तू अगर माफ़ करके नहीं अपनाएगी तो मैं कहां जाऊंगा? तेरे गोद में सर रख के मरने दे…"
शारदा बोली…"अच्छा… और तू मर गया तो सबको पता चल जाएगा के में विधवा हो गई हूं। लड़की जमन हुई है मुझसे। उसकी किस्मत पे अंधेरा भर दूं क्या? अब तो लोगों को कहा है के उसका बाप विदेश में पैसे कमाने गया है। पर बीमार हो के यहां मरेगा तो हमको देखने की निगाहें बदल जाएंगी सबकी। यह नही होगा मुझसे। जैसे चला गया था वैसे ही चला जा। यहां तेरे लिए कोई जगह नहीं है। "
माधव…" शारदा…एक बार बापू से और बेटी से मिलने तो दे…"
शारदा…"तेरा बाप चार साल पहले मर चुका है। तेरे छोड़ जाने के बाद दिन रात तेरे लिए रोता रहा और एक दिन आंखें बंद कर लिए। और याद रख। मेरी बेटी की दुनिया सिर्फ में ही हूं। उसका कोई बाप नहीं है। यह साब और मेमसाब हमारे लिए सबकुछ हैं। अब चला जा अपना तकदीर साथ लिए और हमको अपने हिसाब से जीने दे। "
माधव को और कुछ और कहने का मौका न देते हुए शारदा वहां से उठ के अपने काम करने के लिए आगे बढ़ गई। माधब भी क्या करता? चुपचाप उठ कर खो गया दुनिया के भीड़ में।
सुमन शारदा को देख रही थी। यह वो औरत है जो तब से उनके साथ जुड़ी है जब से रमेश और वो इस नए घर में आए हैं। पिछले पन्द्रह सोलह साल से। रूपा पैदा होने वाली थी। इसलिए सुमन एक ऐसी औरत के तलाश में थी जो उनका खयाल रखे और आनेवाले बच्चे का भी देखभाल कर सके। तब माधब और शारदा आए थे काम के तलाश में। माधब को रमेश ने अपने पास ड्राइवर बना के रख दिया और शारदा सुमन के काम काज करने लगी। माधब के पिता भी उनके बगीचे में फूल पेड़ों के खयाल रखा करते थे। शारदा और माधव के शादी तब कुछ दिन पहले ही हुई थी। रूपा के जन्म के समय शारदा ने एक बहन के तरह सुमन का खयाल रखा था। रूपा के जन्म के बाद खुशी से वो नाचने लगी थी। सुमन के ईजाजत से रूपा को तेल लगाके मालिश करने से उसको नहलाने तक के काम शारदा खुद करती थी। बच्चों से उसे बहुत प्यार था। पर शादी के एक दो साल के बाद भी जब उसको बच्चा नहीं हुआ तब उसकी परेशानी शुरू हो गई। माधव उस से जैसे ऊब सा गया था। उसको हमेशा बहुत पैसे कमाने की चाहत थी। पर मौका नहीं मिल रहा था। शारदा घर के काम और ससुर के सेवा के साथ सुमन के घर में भी खाना बनाने का काम बखूबी कर देती थी। माधब हमेशा उन लोगों से मिल रहा था जो बाहर काम करके पैसे कमाने लगे थे। लगभग चार साल बाद शारदा पेट से थी। और तब माधब को भी सूरत से काम मिला था। सबने बहुत समझाया। बूढ़े बाप और अपनी बीबी को ऐसे छोड़ के न जाने के लिए बहुत कहा। रमेश उसको दोगुनी तनख्वाह देने के लिए भी बोले। पर उसको अब इन झंझटों से आजाद होना था। घर परिवार से दूर जाकर अकेले अपनी जिंदगी का मजा खुद उठाना चाहता था वो। इसीलिए किसी की बात न मान कर माधव चला गया। आज बीमारी उसकी अकड़ और उसकी हिम्मत सब छीन चुकी है। अपने काम के लिए उसको पछतावा हो न हो पर मौत को करीब देख लोटा है वो अपने अपनों के पास। पर जब जरूरत होती है तब अगर कोई आपके साथ खड़ा नही होता है तो उसकी जरूरत में उसका साथ देने का मन भला कैसे हो सकता है…?
शारदा पेट से थी जब माधव चला गया था। बूढ़े ससुर से जितना हो सकता था वो कर रहे थे। और वो दिन भी आ गया जब उसके गोद में भगवान ने "सोना" को दे दिया। लड़की को बांहों में उठा के जैसे शारदा को नई जिंदगी ही मिल गई। सुमन के घर खाना बनाने जब वो आती थी तब सोना को रूपा के कमरे में छोड़ जाती थी। दोनों में दो बहनों के तरह प्यार पनपने लगा था। साथ बड़ी हो रही थी दोनों। रूपा बड़ी थी। सोना उसको रूपादी बुलाती थी। खाना पीना यहां तक कि एक स्कूल में भी दोनों जाने लगी। देखते ही देखते वक्त बीतता गया और शारदा के ससुर भी भगवान के पास चले गए। इतने सालों में कभी माधब का नाम किसी के भी ज़ुबान पे नही आया। जरूरी नहीं था। और आज उसके आ जाने से ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा जो घर में उसकी चर्चा होती? शारदा अपने काम में लग गई थी। सुमन और रमेश भी इस मुलाकात को भूलने की कोशिश में लगे थे। सोना को तो कुछ पता ही न था। और रूपा…!!??
यूएस में अपनी पहुंचने का खबर दे दिया था उसने। उसके हॉस्टल के वार्डन खुद आई थी उसे साथ लेने। और वो उनके साथ हँसीं ख़ुशी चली गई थी। इतने कम उमर में स्कूल के तुरंत बाद सीधे विदेश में पढ़ने का मौका पाकर रूपा के पैर जिसे जमीन पे ही नहीं टीके थे। बचपन से ही उसको यह एक चीज चाहिए था। मां बाप भी कभी किसी बात के लिए उसको मना नहीं किए थे। हां विदेश जाने के लिए जरूर सुमन नहीं चाहती थी । पर संजोग ऐसे बन गए के उनको भी चुप रहना पड़ा। अपने मंजिल के और पहुंचने के बाद जैसे पंख लग गए रूपा के जिंदगी में। बहुत कम बातें करने लगी थी वो अपने परिवार से। दिन में मुश्किल से एक बार कॉल करके बात करती थी वो । तब भी अगर सुमन किसी काम में व्यस्त होंगी तो रमेश से बात करके बंद कर देती थी। सुमन के भावनाओं का क्या उसको कोई कदर नही था? यह सब सोच कर सुमन दुखी हो जाती थी। पर एक बात उनको राहत देने का काम भी करती थी।
सोना को जब से पता चला था के रूपा घर से दूर जा रही है तब से वो सुमन के साये के तरह उनकी इर्द गिर्द घुमा करती थी। पता नहीं कैसे सोना उनका मन पढ़ लेती थी। सिर्फ अभी नहीं बल्की जब से होश संभाला है उसने एक अजीब तरह का समर्पण एक लगन सा जैसे लग गया था उसके सुमन के साथ। सुमन को क्या पसंद है क्या नापसंद है यह सब इतनी सी उमर में उसको पता चल गया था। अपने मां से सीखकर कभी तो चाय या काफी बनाने के कोशिश करती थी तो कभी फूल तोड़कर माला बनाती थी तो कभी इधर उधर के बातों में सुमन का मन बहला देती थी। सुमन बचपन से ही सोना को बहुत पसंद करती थी। सोना हर चीज को सीखने की जो लगन दिखाती थी वो उनको बहुत पसंद था। और जन्म से ही उसे अपने गोद में खिलाया है उन्होंने। तो एक प्यारा सा बंधन बन गया था दोनों में। सोना को देख उनके मन सुकून से भर जाता था। इतनी सी बच्ची…पहाड़ जैसी चुनौतियां…!! ईश्वर से प्रार्थना करती थी बस उसको हिम्मत दे लड़ने के लिए।
हैरान थी सुमन। अपने बाबा को कभी ढूंढती नहीं थी सोना। रमेश को बाबूजी कह उनके पैरों में सर झुका देती थी। और सुमन को माजी माजी कह आशीष लेती थी। इतने संस्कार उसके मन में भरे किसने आखिर? शारदा तो अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ रही थी अकेली अकेली। और सोना के दादा तो कब से स्वर्ग सिधार चुके थे…!!कभी कभी सुमन को गुस्सा भी आता था। आखिर क्या कमी रह गई उनके परवरिश में के रूपा कभी ऐसे पांव छू ने की जरूरत भी महसूस नहीं की कभी। बड़ा नापसंद था उसको यह सब। मॉडर्न होने से क्या माता पिता का आशीर्वाद लेना पुराने जमाने का था…!!??रूपा को कभी वो समझा ही नही पाई के यह सब हमारे संस्कृति के अंश है।
रूपा अपने पढ़ाई और दोस्तों में ऐसे व्यस्त रहती थी के जाने के तीन महीने होने को आया था पर भी उसको घर की याद शायद आती ही नहीं थी। एक दिन सोना जब रूपा के कबोर्ड में कुछ साफ सफाई कर रही थी तब सुमन उसके कल्हाई पर वो घड़ी देखी जो उन्होंने पिछले जन्मदिन पर रूपा को दी थी और कही थी के कभी इस घड़ी को खुद से अलग न करे…
सुमन…"तेरे हाथों में यह घड़ी कैसे सोना?"
सोना…"यह घड़ी रूपादी ने मुझे जाने से पहले दी थी माजी। और कही थी के यह मेरे लिए उनका तोहफा है…"
चौंक गई सुमन। अपने मां का दिया हुआ तोहफा किसी और को कैसे दे गई रूपा? पर कुछ कह ना सकी। शाम को जब रमेश आए तो ऐसे ही बातों बातों में सुमन ने घड़ी वाली बात बता दी। रमेश बोले…"रूपा में बदलाव तो आया है। जाने से पहले उसने मेरी पसंद की कुछ समान भी बदल दी थी अपने प्याकिंग में। बच्ची बड़ी हो रही है। शायद हमारी पसंद अब उसकी पसंद से अलग हो रहे हैं। "
"अच्छा…"सुमन बोली…"आज चीजों को अपने हिसाब से बदला है। हमारे दिल को कितना ठेस मिला होगा यह ना सोचे अपने मर्जी से काम किया है। कल को अगर हम उसकी सादी की बात चलाएं तो वो भी मना कर दे पसंद नहीं बोल के क्यों?"
रमेश…"कल की कल देखेंगे सुमन। पर आज तो मैं भी परेशान हूं। तीन महीने हो गये। पर रूपा एक बार भी खुले मन से बात नहीं करती। इसका गम मुझे भी खाया जा रहा है। "
सुमन…"कल गर हमें कुछ हो गया तो क्या वो सब छोड़कर आ जाएगी हमारे लिए? ऐसे ही सोचकर मैं मना कर रही थी अपनी बच्ची को आबरोड भेजने के लिए। पर मेरी बात यहां किसको सुनाई देगी भला?"
रमेश क्या कहते? उनको कहां पता था के बच्ची ऐसे भुला जाएगी? वरना शायद वो भी उसको बाहर नहीं जाने देते। पर अब सब हो चुका था। कोई रास्ता भी तो नजर नहीं आती थी। पर उम्मीद फिर भी थी के अभी अभी तो नए दुनिया में कदम रखा है बच्ची ने इसीलिए ऐसे हो रही है। वक्त बीत जाएगा तो सब कुछ ठीक हो जाएगा।
किसी तरह जिंदगी चल ही रही थी। सुमन सोना को स्कूल भेजने के लिए फैसला लेने के बाद खुद उसके साथ जाकर उसका नाम लिखा दीया था कुछ साल पहले। सोना के लिए कुछ करने से पहले उनको किसी की मर्जी पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। शारदा तो उनके एहसानों को अपने दामन में समेट के बहुत खुश थी। पढ़ाई में बहुत अच्छी थी सोना। बिलकुल रूपा के जैसी। सुमन अपने रोज के काम से वक्त निकालकर उसकी पढ़ाई पर ध्यान रखती थी। हर कक्षा में अव्वल आना जैसे उसके जिंदगी का एक अटल फैसला बन गया था। हर बात झट से समझ जाती थी। सुमन बहुत खुश होती थी उसकी इस तरह का स्वभाव देख। बहुत बार उनको लगता था जैसे सोना उनकी दूसरी बच्ची ही है। उसके माथे पर अपने ममता भरा हाथ रख देने के बाद वो खुद रूपा की जुदाई भूल जाती थी।
अचानक सारी दुनिया के सामने एक बहुत बड़ा चुनौती आ गया। किसी की सोच से परे एक अनजाना दुश्मन का हमला जिंदगी को बदल के रख दिया। रोज मरहा के जिंदगी तहस नहस हो गई। अचानक ही कोविड वायरस का हमला सबको हैरान कर गया। विदेश में पहले दस्तक दे चुकी थी यह बीमारी। आने जाने में पाबंदी लग गई। परेशान हो गए थे वो सारे माता पिता जो अपने सपनों के लिए अपने बच्चों को वापस लाने के लिए तड़प रहे थे।
सुमन रोते हुए बोली…"कहा था मैंने…मत भेजिए बच्ची को इतने दूर…अब कैसे वापस आयेगी सोचो तो…"
रमेश…"अरे तुम रोना बंद करो। मुझे क्या किसी को इस वायरस के बारे में कहां मालूम था? में खुद काफी दिनों से परेशान हूं। रूपा हमेशा से ये ख्वाब देखती थी इसलिए मैंने इसको पूरा करने के इजाजत दी पर में भी खुश कहां हूं कहो"
सुमन…"कुछ भी हो जाए…किसी भी तरह हमें रूपा को वापस लाना होगा"
रमेश…" विदेश में फंसें भारतीय लोगों को लाने के लिए हमारी सरकार भेज रही है विमान। रेस्क्यू ऑपरेशन होगा । तुम परेशान न हो। मैं एंबेसी में जाकर फिर बात कर आता हूं…"
रमेश की भागा दौड़ी लगी थी। इससे पहले के बीमारी किसी को नुकसान पहुंचाए विदेश से देश के लोगों को सुरक्षित लाने के लिए विमान जा रहे थे। पर…
रूपा…"डैड.. आप परेशान न हो। यहां हम सब स्टूडेंट सैफ हैं। बाहर आने जाने में पाबंदी लगा दी गई है। लोकडाउन हो चुका है। अब यहां से निकलेंगे हम तो वहां जाकर फिर से क्वारेंटिन में रहना होगा। बहुत नुकसान हो जाएगा न। जरूरत के समान पहुंचा रही है यहां की सरकार। बाहर जाने की कोई जरूरत नहीं। डोर स्टेप डिलीवरी हो रही है। मोम को समझाओ आप। जैसे ही थोड़ी सुधार आयेगी मैं आ जाऊंगी न…"
रमेश…"देख बेटा…स्थिति में सुधार कब आएगा यह किसको पता है? तेरी मां बहुत परेशान है। तुझे देखे कितने दिन हो गए हैं। बाहर से सभी के बच्चे वापस आ रहे हैं। मैंने तेरे अकाउंट में पैसे रख दिए हैं। तू अब आ जा..जब सब ठीक होगा तो वापस चली जाना…"
पर रूपा को अपने डिग्री खतम होने से पहले घर जाना पसंद नही था। मगर रमेश को मना करना भी मुश्किल था। इसलिए रूपा को वापस आने की तयारी करनी ही पड़ी।
बहुत खुश थी सुमन। वजह चाहें जो भी हो पर बच्ची वापस आ रही थी। खुशी के मारे वो फुली नहीं समा रही थी। तरह तरह के खाने के चीजें बनाना, घर को नए तरह से सजाना…इन सब कामों में जुट गई। सोना ख़ुशी ख़ुशी उनके हाथ बटाने लगी। बाहर का मौसम पूरा बदल चुका था। पूरे देश में लोक डाउन हो गई। अचानक जीवन के बहाव में रोक लग गई। तभी यूएस से विमान में रूपा घर लौट आई।
घर आने के बाद उसको चौदह दिन क्वारेंटेन में रहना पड़ा। उस समय रूपा को खाना और अन्य सामान देने का काम सोना करती थी। सुमन जितना भी क्यूं ना मना करे यह बच्ची बस अपनी रूपादी को देखने के बहाने ढूंढती रहती थी। दो पल देख के थोड़ा मुस्कुरा देगी और बस खुश हो के चली आएगी। बाहर का मौसम बहुत खराब था। चीजें भी मुश्किल से मिल रही थी। लोगों को ऑनलाइन चीजें मंगवानी पड़ी। एक तरह देखी जाए तो इंसान इंसान के करीब जाने से डरने लगा। तभी एक और मुश्किल का सामना सबको करना पड़ा।
रमेश की बि.पी बढ़ गई एक दिन। ऑक्सीजन का लेबल नीचे चला गया। डीहैडरेसन भी हो गई। डाक्टर घर में बुलाए गए। वो देखकर बोले के उनको तुरंत हस्पताल लेना होगा। नहीं तो घर पर सलाइन और ऑक्सीजन चढ़ानी होगी। सुमन घर पे व्यवस्था करने को बोली। रमेश को दिन रात पहरे की जरूरत थी। यह काम भी बिना कहे छोटी सी बच्ची सोना बखूबी करने लगी। सुमन चेयर पे बैठी रहती थी। रूपा बीच बीच में आके देख लेती थी। पर सोना एक पल के लिए भी उनसे दूर नहीं गई। रमेश के सिलिंडर का खयाल तो सुमन ने रख दिया पर सुमन को उनके जरूरत का सामान याद दिलाना और कभी कभी थोड़े आराम करने के लिए कहने का काम सोना ने किया। एक रात जब सुमन की आंख खोली तो सोना को अपने पैर दबाते हुए देख वो हैरान हो गई। सही में बहुत दर्द हो रहा था पैरों में। सोना के दबा देने से काफी आराम मिल रहा था। उनका हाथ अपने आप बच्ची के बाल सहलाने लगे और सोना भी उनके गोद में सो गई। रूपा तब रूम में आई थी रमेश को देखने। और यहां सोना को इस तरह देख गुस्सा हो गई। उसके हिस्से का प्यार क्यूं बांटा जा रहा था कह कर चिल्ला रही थी। सुमन चुप रहने के लिए जितने बार बोली वो सुन ही नहीं रही थी। इतने में सोना जो तब से चुप खड़ी थी अचानक रूपा के पैर पकड़ के बोली…"माफ़ कर दो रूपादी..चाहें तो दो तमाचे लगा दो पर इस कमरे से बाहर चलो…प्लीज…बाबूजी को आराम करने दो…प्लीज"
उसको ऐसे पैर पकड़ देख रूपा शांत हो गई और बाहर चली गई। हैरान थी सुमन। यह क्या हो गया रूपा को? इतना गुस्सा और ऐसे बरताव? अपने डैड के खराब तबीयत का भी खयाल नहीं उसे? मन बहुत परेशान था। पर रमेश के ठीक होने तक वो कुछ नहीं कही। फिर एक दिन रूपा के पास जाकर बोली…
"रूपा.. उस दिन सोना पे इतना गुस्सा तूने क्यूं किया? वो तो तेरी छोटी बहन जैसी है न?"
रूपा…"बहन? नहीं मोम…वो सिर्फ एक नौकरानी की बेटी है…"
सुमन…"यह क्या कह रही है? शारदा मौसी के गोद में खेली है तू…सोना मेरे आंचल के पनाह में बड़ी हुई है। यह सब क्या है?"
रूपा…"मोम…मुझसे यह उम्मीद मत रखिए के मैं कभी उसको बहन मानूंगी या शारदा जैसी कोई नौकरानी मेरी मासी बनेगी। हां घर में है इसलिए नाम से न बुलाकर मौसी बुला लेती हूं। पर इस से ज्यादा नही…"
सुमन…"अच्छा…अपने डैड के तबीयत का खयाल तुझे कैसे नहीं रहा? इसका तेरे पास क्या जवाब है?"
रूपा को कोई जवाब ही नहीं देना था। उसका रवैया बड़ा अचंभे का था। सुमन बात बढ़ाई नहीं और लौट आई। पर मां का मन जाने क्यों तड़प उठा। विदेश जाने से पहले रूपा इतनी चिड़चिड़ी नहीं थी कभी। अब यह सब क्या है? जब से यूएस गई है उसका तो रंग ढंग सब बदल गया। यह आम नहीं है। कुछ जरूर चूक रहा है यह उनका मन बार बार कहने लगा।
रमेश के तबियत जैसे ही ठीक हुई सुमन ने अपने तरफ से बात की खाल तक पहुंचने के कोशिश शुरू कर दी। पहले तो बार बार रूपा से बात करके पता करने की कोशिश की। यूएस जो दोस्त गए थे उसके साथ उनसे भी संपर्क करने की कोशिश की। इतने में एक और मुश्किल सामने आ गई।
शारदा बाहर जा के सामान लाने का काम कर दिया करती थी। इस बीच उसको भी कोविड़ का अटैक हो गया। करोना के मार से बेचारी बहुत जूझी पर हार गई। करोना का पहला वार बहुत जानें ले गई। उनमें से एक शारदा की भी थी। उसके मौत के बाद उसका दाह संस्कार के लिए भी अनुमति नहीं मिली। आखरी दर्शन के भी मौका नहीं मिला। बहुत रोई थी उस दिन सोना। बिलप बीलप कर लिपट जा रही थी सुमन के सीने से। अपने आप को संभालते हुए सुमन उसको सहारा दे रही थी। रमेश भी उसको समझाने के कोशिश में लगे थे। पर रूपा मुंह मोड कर चली गई। उसका बरताव बर्दाश्त से बाहर था। सोना को उस दिन से अपने घर में रहने के लिए सुमन बोली। बगल में जो उनका छोटा क्वाटर था उसको ताला लगा दिया रमेश ने। बहुत समझाने के बाद जब सोना थोड़ा सा दूध पीकर सो गई तब सुमन रूपा के कमरे में गई।
रूपा अपने कंप्यूटर में कुछ देख रही थी। सुमन के आते ही चौंक गई और पूछी…"कुछ चाहिए क्या मोम?"
सुमन…" बेटा…आज घर में कुछ बुरा हुआ है। पर तुम इतने आसानी से उस बात को ले रही हो ….कैसे?"
रूपा…"जिसको जाना होगा वो तो जाएगा न…इसमें कौन सी बड़ी बात है?"
सुमन…"रूपा…!!आज अगर शारदा के जगह मैं चली गई होती तो क्या तुम ऐसे ही बिहेव करती?"
रूपा…"पर ऐसा नहीं है न…बेकार में यह सब सोच रही हो आप…"कह कर फिर से कंप्यूटर में घुस गई।
यह ठीक नहीं है। जरूर कुछ बहुत गड़बड़ है। सुमन इस बार और जोर से लग गई वजह ढूंढने। रूपा के कमरे से बाहर जाते ही उसके चीजें खोलकर देखने लगी। उसके चैट और मेसेज पढ़ने लगी। और जो सच सामने आया वो तोड़ कर रख दिया था सुमन के हौसले को।
विदेश जाने के बाद रूपा बुरे संगत में पड़ गई थी। और नशे की लत लग गई थी उसको। उसी आदत ने रूपा के मन को पत्थर सा बना दिया था। किसी के लिए उसके मन में प्यार या हमदर्दी नहीं रही थी। जिंदगी को देखने का तरीका ही बदल चुका था। चिड़चिड़ापन आ गया था। सोना को भी वो अपना दुश्मन समझ रही थी। अपने मोम डैड का प्यार बंट जाने का अजीब सा डर समा गया था उसके मन में। आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था सुमन के। करे तो क्या करे? हिम्मत तो जुटानी पड़ेगी। सामना तो करना ही होगा। वक्त रहते कदम न उठाया तो कल पता नहीं क्या होगा। ऐसे बहुत कुछ सोचकर धीरे जाकर रमेश के सामने सुमन ने सारा सच बोल दिया ।
रमेश के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई। वो भी हैरान थे यह सब क्या हो गया सोच कर। परेशान थे। जब दोनों माता पिता दुखी होकर सर पकड़कर बैठे थे तब सोना चाय लेके आई। उसको देख सुमन हैरान हो गई। बस दो दिन हुए हैं मां के गुजरे…और बच्ची जीने की तैयारी में जुट गई है…!!??पहली बार उनको ऐसा लग रहा था के क्यों सोना भी उनकी बेटी नहीं हुई…!!??
करोना के लोक डाउन धीरे धीरे खुलने लगे। उसके साथ ही रूपा भी वापस चले जाने के लिए बार बार कहने लगी। पर इस बार सुमन अपनी आवाज में नमीं नहीं लाई और उसको साफ साफ कह दिया के वो अब देश छोड़कर कहीं नहीं जाएगी। रूपा इस बात पार सारे घर को अपने सर पे उठाने लगी। रमेश को दबाव डालने लगी के किसी भी तरह वो मोम को राजी करवाए और उसको वापस भेजे। पर उसकी बुरी लत का इलाज सिर्फ ड्रग कंट्रोल रूम में ही मुमकिन था। जहां ऐसे टीन एजर बच्चों को रखकर उनके दिमाग से यह नशे का भूत निकाला जाता था। रूपा को ऐसे बरबाद होते हुए देखना बहुत दर्दनाक था। पर उसको यह कैसे कही जाए वो भी एक बड़ा चुनौती बन के सामने आया था।
बेचारी सोना अपने मां के अधूरे काम पूरा करने की कोशिश में लगी थी। सबकी जिंदगी जैसे एक अजीब सी मोड़ पे आके रूक गई थी जहां से हर रास्ता धुंधला ही दिखता था। दोस्त रिश्तेदार भी पूछने लगे के लड़की वापस जाएगी या विदेश का नशा अब करोना से उतर गया…!!यहां लोग जले पे नमक छिड़कने से कभी पीछे नहीं हटते। ऐसे में अगर सबको पता चल गया के कौन सी नई मुसीबत आ गई है रूपा के जिंदगी में तो क्या होगा…!!??
हिम्मत को हथेली में समेट कर रमेश अपने एक पहचान वाले से बात किए और डेल्ही के एक ड्रग इंस्पेक्टर से चर्चा की। वो वहां ऐसे एक सेंटर का पता बता दिए जहां अच्छे बड़े घरों के बच्चे जो ऐसे नशे के शिकार हो जाते हैं उनका इलाज किया जाता था। रूपा को बिना बताए सब एक दिन साथ निकल पड़े गाड़ी लेकर। उसके कपड़े ओर किताबें साथ लेकर। जब उसने ज्यादा सवाल की तो उसको कहा गया के डेल्ही में एक दोस्त हैं जिनके बच्चे भी करोना के वजह से यू एस और युके से वापस आकर यहां पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं उसे रहना होगा कुछ दिन।
रूपा तब तो चुप हो गई पर जब सच्चाई सामने आई तो ऐसे चिल्लाई के उसको संभालना मुश्किल सा लगा। रमेश जी जान लगा कर उसे संभाल रहे और समझा रहे थे के जो भी हो रहा है वो उसके भविष्य के लिए बेहद जरूरी है। सुमन नीचे बैठ कर रो रही थी। और सोना अपने आंसू पोंछ उनको संभालने की कोशिश कर रही थी। अचानक से सोना बोल उठी…
"रूपादी…देखिए आप अगर यहां नहीं रुकी न तो आपके मोम डैड आपसे नाराज हो के आपको जबरदस्ती यहां रोक देंगे। रहना तो होगा। अपने मर्जी से या फिर जोर जबरदस्ती से। पर अगर आप यहां अपने मर्जी से रह कर जल्दी इस बुरे आदत से बाहर आ जाएंगी तो आपको यूएस जल्द भेज दिया जाएगा…क्यों बाबूजी…??"यह कह कर वो रमेश को देखने लगी
रमेश बोले…"बिलकुल ठीक। जितनी जल्दी तू ठीक हो जाएगी उतने ही जल्द तुझे हम भेजेंगे यूएस…"
रूपा…"पर मोम नहीं मानेंगी…"
अब सब सुमन को देख रहे थे। उनका दिल तो कहता था के कह देंगी एक बार गलती कर चुकी हैं दोबारा नहीं करेंगी पर खुद को रोका और हां में हां मिला दी।
सिर्फ तीन महीने में रूपा के स्वभाव में बदलाव नज़र आया। सेंटर वालॉ ने भी खुश होकर उसे घर जाने के भी इजाजत दे दी। रमेश एक लोकल कालेज देख रहे थे रूपा के आगे की पढ़ाई के लिए…तभी सुमन बोली…
"उसे यूएस भेज दीजिए…यहां रहेगी तो हमारे बीच रहेगी । पर हमारे साथ नहीं। और मुझे मेरी बच्ची ऐसी नहीं चाहिए। "
रमेश…"पर दोबारा वो नशा करने लगी तो…?"
सुमन…"एक बार बादल छा चुका है आसमान पर। दोबारा कभी भी कहीं भी आ सकता है वैसे ही। यहां रहकर गुस्से में नशे की लत फिर लगे उसे इससे बेहतर है अपने मर्जी से उसको जीने दिया जाए…"
रमेश…"शायद तुम ठीक कह रही हो। पर में उसको इस बार सिर्फ जितने जरूरी होंगे उतने पैसे ही दूंगा। अगर वो खर्च हो गए तो उसको यहां हमेशा के लिए वापस आना होगा यह कह दूंगा। तब शायद दूर रह पाएगी बुरे आदतों से वो…"
लंबी सांस लिए सुमन खिड़की से बाहर देखने लगी। सोना पौधों को पानी दे रही थी। उसके सर के ऊपर का आसमान पूरा साफ़ था। बाकी आसमान में काले बादल छाए थे। वहां उंगली से इशारा करते हुए सुमन बोली…
"वो देखिए…कितना साफ है न वो एक टुकड़ा आसमान। क्या उतना काफी नहीं है हमारे लिए…!!??"
उनके बातों को समझते हुए रमेश मुस्कुराए, पास आए और सुमन के कंधे पर अपना हाथ रख के कहे…"बेशक…सारे आसमान काले बादल से घिरा है। पर इस छोटे टुकड़े साफ आसमान के वजह से अब भी सूरज की रोशनी साफ आ रही है। उम्मीद जरूर करेंगे…जल्द ही सारा आसमान साफ हो जाए…!!"
उन दोनों को इतने दिनों बाद मुस्कुराते देख सोना बहुत खुश हो गई…!!सूरज की रोशनी धीरे धीरे उस छोटे से टुकड़े आसमान से फैलकर बाकी काले बादलों को हटाने में लगी थी…!!
