उधार
उधार
नौकरी के लिए जाना था, हड़बड़ी तो होनी ही थी, पर जाना था सिर्फ रेल से। इसलिए कोई और रास्ता भी तो न था। प्लेटफॉर्म पे इंतज़ार करते हुए आशीष की नजर एक बूढ़े कुली पे जाकर रुकी जो अपने घुटनों से मुंह उठा के थोड़े देखते थे और फिर वैसे ही मुंह झुकाए बैठ जाते…!!
समय अब भी था हाथ में। आशीष के मन में जिज्ञासा और दया आ गई। अपनी बैग उठा के वह उस बूढ़े आदमी के मदद करने आगे बढ़ा। जैसे ही पैसों से हमदर्दी जताई, सामने से एक मजबूत आवाज़ आयी.." मदद करनी है बाबू तो काम दीजिए। कुली हूं, पर उम्र बढ़ गई। इस लिए काम भी नहीं मिलता। दया नहीं चाहिए मुझे" उनकी खुद्दारी देख आशीष बहुत खुश हो गया और अपनी बैग उनकी बुढ़ी बाहों में थमा दिया" अब तो ठीक है न बाबा..!! चलिए..मेरा ट्रेन तीन नंबर प्लेटफॉर्म पे आएगा। आप वहां तक सामान लीजिए फिर पैसे के लेना अपनी मेहनत की।"
खुश थे दोनों और निकल पड़े अपनी मंजिलों की ओर ...बातों ही बातों में आशीष जान चुका था कैसे उस बूढ़े कुली के घर में पैसों की तंगी है!! अपने एकलौते बेटे के घर छोड़ जाने के बाद कैसे उसकी पत्नी बीमार हुई और अब कैसे वो दो जिंदगी जूझ रहे हैं कुछ सांसों के लिए..!!
मन ही मन आशीष तय कर चुका था कि पहुंचने के बाद वो कुछ ज्यादा पैसे दे देगा बूढ़े बाबा को। नये काम पे जा रहा है। माँ ने भी कहा था, बिना स्वार्थ की किसी की मदद कर गर उनका दुआ ली जाए तो बरकत निश्चित है, मौका मिला है, इस्तेमाल क्यों न कि जाए…!!
तीन नंबर प्लेटफॉर्म पे पहुंचने के बाद बूढ़े कुली अपनी सांस पे लगाम लगते हुए आशीष की बैग उसको सौंप दिए। ट्रेन में अपनी सीट पे बैग रख आशीष बाहर आया। अपनी जेब में हाथ डाल आशीष ने एक पांच सौ रुपए की नोट निकाली और उनको दी।
पर हर एक सीढ़ी का एक रुपए के हिसाब से बूढ़े कुली ने अपनी हिस्से की सिर्फ नब्बे रुपए मांगे, आशीष ने एक सौ रुपए की नोट भी दी पर बाबा को एक पैसा भी ज्यादा नहीं लेना था, आशीष के पास छुट्टे नहीं थे और बूढ़ा बाबा अपने उसुल के पक्के थे।
ट्रेन पहली सिटी दे चुकी थी। किसी और से मांगना भी नामुमकिन था, आशीष की बैग में छुट्टे पैसे थे। वो भागा बैग से पैसे लाने, बूढ़ा बाबा थोड़ी दूर थकान के मारे नीचे ही बैठ गए।
बैग की लोक खोल आशीष छुट्टे गीन के जब ट्रेन के दरवाज़े के पास पहुंचा, ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार पकड़ चुकी थी…!!
हाथों में बूढ़े बाबा के मेहनताना के उधार के पैसे और आँखों में आँसू लिए भरे हुए दिल से आशीष देखता ही रह गया बूढ़े कुली को..घुटनों में सर छुपाए हुए बैठे थे।
