एक तपस्या ऐसी भी
एक तपस्या ऐसी भी
आज घर में बहुत गहमा गहमी है। पूरे बाइस बरस के बाद मोनिका के धर में खुशियों ने दस्तक दी है। बाइस बरस तक जिसके केवल दुःख, तकलीफ और संघर्ष के अलावा कुछ नहीं देखा। आज वो बेटी की शादी की इस गहमा गहमी में बेहद मसरूफ। अपनी तमाम तकलीफों को दर किनार करते हुए आगे बढ़ती गयी वो। आज उसके पास फुरसत नहीं है। कुछ भी सोचने की बस एक ही लगन है बेटी की शादी में किसी प्रकार की कोई कमी ना रह जाए। एक एक चीज पर उसकी पैनी अनुभवी नज़रें थी, शामियाने वाले, सजावट वाले, केटरिंग वाले सब को मुनासिब हिदायतें देती हुई आगे बढ़ जाती थी। कोई इधर से आवाज़ लगाता मेडमजी वो इसको कहां रखना है तो वो तपाक से उसे हिदायत देकर आगे बढ़ जाती थी। उधर बेटी मीनल भी अपनी मम्मी की ये चपलता देख रही थी लेकिन मन ही मन में वो चिंतित थी कि कहीं पीछे से मम्मी बीमार ना हो जाएं। खैर यह सब तो होना ही है। शादी भी होनी है। इसलिए मीनल ने अपने होने वाले पति से यह बात पहले ही साफ कर ली थी कि ता उम्र मां हमारे साथ ही रहेगी। मीनल की बस यही एक मात्र शर्त थी शादी के लिए।
बारात आ गई थी गहमा गहमी और बढ़ गई थी। समधी जी ने आगे बढ़कर समधन मोनिका जी से नमस्कार किया और समधन को बधाई के साथ ही साथ निश्चिन्त रहने का आष्वासन भी दे डाला कि किसी भी प्रकार का कोई काम हो तो बताएं। मोनिका समघी जी की इस बात पर हाथ जोड़ते हुए समधी जी को आसन ग्रहण करने का अनुरोध करती है। पूरी धूमधाम से विवाह सम्पन्न हो गया। बिदाई की बेला भी आ गई। मीनल अपनी मम्मी के गले लग बस रोये जा रही थी। मोनिका ने उसे समझाया कि वो चिन्ता नहीं करे, वो ठीक से रहेगी। बेटी की इस विदाई बेला को जहां बाराती और विवाह में बुलाए गए मेहमान देख रहे थे वहीं पर दो आंखें ऐसी भी थी जो छुपकर परदे की ओट से देख रही थी। सिर्फ इसी बेला को नहीं बल्कि इन आंखों ने तो आज पूरा विवाह का नज़ारा अपनी इन अधेड़ आंखों से देखा है जिसकी किसी को कोई खबर नहीं थी। हालाँकि एक आध बार किसी बाराती और वेटर की नज़र ज़रूर पड़ी थी उस पर लेकिन सभी ने भिखारी समझ कर नज़र अंदाज कर दिया था। अचानक ही मोनिका की नज़रें उन दो आंखों से मिली और आंखें ठहर सी गई। वो सोचने लगी ये आंखें तो कुछ देखी देखी सी लग रही हैं। वो दो आंखें सकपकाई सी परदे के पीछे छुपने के प्रयास में लेकिन मोनिका ने तुरन्त ही उसे अपने पास आने का इशारा किया। वो व्यक्ति सकपकाते से उसके सामने आने लगा मानो कोई बड़ी चोरी की हो और रंगे हाथों पकड़ा गया हो।
मीनल विदा होकर ससुराल जा चुकी थी वैसे यह विदाई रस्मी तौर पर थी शाम को ही मोनिका को उसके रिसेप्शन में जाना था। खैर वो धीरे से उस व्यक्ति के पास आई और बोली कौन हो तुम और इस तरह छुप-छुप कर क्या कर रहे थे। तुम्हारी आंखे कुछ देखी सी लगती है -------।
बताओ कौन तो तुम -----? वो कुछ और बोलती उससे पहले ही वो शख्स बोला मोनिका बहन मैं ----- मैं अशरफ। ----- कुछ याद आया नीलोत्पल साहब के साथ ही मैं ----।
- अरे हां याद आया अशरफ भाई आप इस तरह क्यों ---- चलिए अन्दर चलिए।
- नहीं बहन अभी नहीं बस यही बताने आया हूँ कि नीलोत्पल साहब अभी ज़िन्दा हैं ---- लेकिन
- लेकिन क्या ?
- लेकिन वो पाकिस्तान की जेल में बन्द है। मैं और साहब एक मिशन पर थे पाकिस्तान में तभी हमारे साथ एक हमारे ही साथी ने धोखा किया और हम पकड़े गए। मैं भी बस अभी दो महिने पहले ही जेल से भाग कर आया हूँ लेकिन साहब पर उन्होंने सीरियस चार्ज लगा रखे हैं और भारत सरकार ने भी उनको पहचानने से इनकार कर दिया है।
- क्या ?
अशरफ चला गया था लेकिन बेटी की विदाई के बाद फिर से उसके जीवन की शान्त झील में एक कंकर मार गया था, फिर से हलचल सी मच गई थी, जिस अतीत को वो बाइस बरस पीछे छोड़ आई थी आज फिर से एक बार उसके सामने था। एक एक कर सारी बातें सिनेमा के फ्लेश बैक की तरह उभरती रही।
ठीक तेईस बरस पहले वो नीलोत्पल के साथ शादी कर उसके घर गयी थी। शादी बड़े ही नाटकीय अन्दाज़ में आनन फानन वाले तरीके से हुई था। शायद इसी करण उसके मां बाप ठीक से पता नहीं कर पाए थे ओर लड़के वालों की ज़ल्दी जानकर बस शादी कर डाली थी। वो धीरे धीरे अपन अतीत मे खो गई।
-वो नई दुल्हन घर पहुँची तो सास-ससुर ने पहले ही दिन कहा था ---- अब इसकी डोर तेरे हाथ मे है बहु ये थोड़ा सा कम टिकता है घर में, बस इसके नाक में नकेल डालकर रखना। ये घर में टिक जाए हमने इसीलिए ज़ल्दी से इसकी शादी की है बेटा। बस अब तुमसे ही उम्मीद है इसको सुधारने की वरना तो इसने हमारी तो नाक में ही दम कर रखा है। कई कई महीनों तक इसकी कोई खबर तक हमारे पास नहीं होती है।
ये सब सुनकर वो पहले ही दिन सकते में आ गई थी। धोखे में रखकर शादी की गई थी मुझसे लेकिन अब कोई रास्ता न बचा था सो वो इसे ही अपनी तकदीर समझ कर अच्छे समय की कामना मन नहीं मन करने लगी थी। हुआ वही जिसका अन्देशा था। सुहागरात की बेला भी मोनिका ने बिस्तर पर अकेले ही बिताई थी पूरी रात नई नवेली दुल्हन अपने शृंगार सहित वैसी ही बैठी रही और रोती रही। कोई साढ़े छः बजे सुबह सास चाय लेकर आ गई थी उसे मालूम था कि उसका बेटा आज की रात भी घर पर नहीं टिका था। दोनों परेशान और उधर नीलोत्पल अपने आप में ही मस्त। वो कहां था, क्या कर रहा था किसी को नहीं मालूम। शादी के अगले ही दिन वो दुल्हन घर लाकर कहां चला गया था नहीं मालूम।
वो लोटा कोई ढाई महिने के बाद। मोनिका को वो पल धीरे धीरे सामने लग रहा था मानो सिनेमा की रील को पूरे तेईस बरस पीछे कर दिया गया था। रात के कोई साढ़े दस बजे थे अचानक ही दरवाज़े पर दस्तक हुई उसने धीरे से दरवाज़ा खोलकर देखा तो एक व्यक्ति खड़ा था। वो ठीक से देख भी नहीं पाई थी अपने पति को - शादी की रात इसलिए पहचान न पाई थी लेकिन वो धीरे से बोला - मोनिका सॉरी मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, शादी के दिन तुम्हें इस तरह से छोड़कर नहीं जाना चाहिए था, आई एम सॉरी। उसके सॉरी बोलने के साथ ही मोनिका का सारा रंज़ो-ग़म मानो धुल गया था। वो एक तरफ हटी और नीलोत्पल घर में दाखिल हो गया था। शायद वही उसकी सुहागरात थी पति के साथ, आखिरी रात भी। उस रात वे दोनों सोए नहीं थे, जी भर कर बातें करते गए थे। गिले शिकवे और फिर प्यार, मनुहार। मोनिका को लगा उसका पूरा संसार मिल गया है। नीलोत्पल में उसे कोई कमी नज़र नहीं आई थी। उसे लगा शायद अब सुधर गया है। सुबह के कोई चार बजे थे दोनो एक दूसरे की बाहों में बेसुध से पड़े थे तभी नीलोत्पल ने मोनिका को थोड़ा सा हिलाया तो वो बोली - इसी तरह से रहो ना मेरे साथ। मोनिका की बात पर नीलोत्पल बोला कुछ नहीं बस वो मुस्कुरा दिया था और उठकर कपड़े पहनने लगा था। उसे कपड़े पहनता देख मोनिका ने पूछा क्या हुआ ? वो बोला - कुछ नहीं मोनिका अब चलूँगा हाँ मां बाबू जी अब तुम्हारे हवाले है मेरा कोई पता नहीं है कब लौटूंगा
। इतना कहकर वो तेजी से बिना कुछ सुने चला गया। मोनिका एक रात की सुहागन , बस जाते हुए पति को देखती रही एक टक लेकिन उसके मुंह से कोई बोल नहीं निकला था। वो जड़ हो गई थी। और फिर सचमुच कोई चार महीने तक वो नहीं आया था। उसे वो दिन भी याद हो आया जब दिन के उजाले में नीलोत्पल को पहली बार और आखिरी बार देखा था। वो घर आया था तब मोनिका कोई चार महिने पेट से थी। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था सो वो कुछ नहीं बोली बस अपने कमरे मे चली गई और रोने लगी थी अपनी ही तक़दीर पर। नीलोत्पल थोड़ी देर बाद ही अन्दर आया और उसे पुचकारने लगा था। थोड़ी देर बाद बोला
- मोनिका आज मैं तुमसे एक ज़रूरी बात करने आया हूँ। आशा है तुम बहुत सोच समझकर फैसला करोगी।
- उसकी यह बात सुनकर वो भीतर ही भीतर काफी घबरा गई थी। वो फिर से बोला - देखो मैं किसी से भी शादी नहीं करना चाहता था क्यों कि मैं किसी की भी ज़िन्दगी बरबाद नहीं करना चाहता था लेकिन मेरे मां बाप की ज़िद के आगे मुझे झुकना पड़ा और तुमसे शादी कर ली।
- वो थोड़ी देर शून्य में घूरता रहा फिर बोला - मैं जानता हूँ मेरा अपराध क्षम्य नहीं है और होना भी नहीं चाहिए किसी लड़की की ज़िन्दगी से खेलना कोई छोटा अपराध नहीं है।
- उसकी यह बात सुनकर मोनिका बोली - आप किसी और को चाहते हो तो कोई बात नहीं है हम दोनों साथ रह लेंगी।
मोनिका की बात सुनकर वो बोला
-नहीं मोनिका मेरी ज़िन्दगी में तुम पहली लड़की हो। सच तो यह है कि तुम पहली लड़की हो जिसे मैंने छुआ है अपने जीवन में लेकिन मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता हूँ क्योंकि मैं जो कर रहा हूँ वो मुझे तुम्हारे साथ रहने की इज़ाज़त नहीं देता है और मैं अपने उस कर्म को नहीं छोड़ सकता हूँ।
वो बोली आप ऐसा क्या कर रहे हैं जो छोड़ नहीं सकते हैं।
- वो मैं नहीं बता सकता हूँ
- तो मैं क्या समझूं इसे
- तुम चाहो तो मुझसे तलाक लेकर दूसरी शादी कर सकती हो।
- क्या ? और ये जो मेरे पेट मे पल रहा है तुम्हारा अंश इसको भी तलाक दे दूं मैं।
वो कुछ नहीं बोल पाया था। बस चुप बैठा फर्श को नाखून से कुरेदने लगा था। अचानक ही वो खड़ी हुई और नीलोत्पल के सामने आकर बोली तुम सच सच बताओ क्या करते हो ---- कोई ग़ैर कानूनी काम, कोई जुर्म ?
- नहीं ऐसा कुछ नहीं है। वो तपाक से बोला
- तो फिर क्या करते हो ?
थोड़ी देर फिर चुप्पी छा गई। चुप्पी के बाद वो धीरे से मोनिका को लेकर पलंग पर बैठ गया और बोला
- देखो मोनिका सच यह है कि मैं आई बी में अफसर हूँ और मेरा कोई ठिकाना नहीं होता है कि मैं कहां किस देश में कब रहूँगा। हर दिन नए से नया मिशन मिलता है और अनजानी सी डगर पर चलता रहता हूँ। मुझे नहीं मालूम अगला पल मेरे जीवन का आखिरी पल होगा या उसके आगे भी जीवन है। अभी मैं एक बेहद ख़तरनाक मिशन पर जा रहा हूँ जहां से जीवित आ पाना लगभग नामुमकिन है। इसीलिए आखिरी बार तुमसे कह रहा हूँ तलाक लेकर अपना जीवन तुम अपने तरीके से जियो ।
- तो तुम क्या चाहते हो ?
- मैं तो यही चाहता हूँ कि मेरे मिशन में जो भी बाधक बनेगा मैं उस बाधा को तोड़ दूंगा। सच तो यह है कि तुमसे विवाह बन्धन में बंधने के बाद मैं एक बन्धक सा बन गया हूँ अपने आप में। जब भी किसी मिशन में खतरे उठाने की बारी आती है तुम्हारा मासूम सा यह चेहरा सामने आ जाता है और मैं कमज़ोर पड़ जाता हूँ। मैं टूट सा गया हूँ भीतर ही भीतर। ---- लगता है अब मैं कायर हो गया हूँ। शायद मुझे मरने का डर लगने लग गया है और यही टूटन अब मुझे धीरे धीरे कमज़ोर बना रही है।
- नहीं नीलोत्पल औरत पुरुष की कमजोरी नहीं है वो तो उसकी ताक़त होती है मैं भी तुम्हारी कमजोरी कभी नहीं बन सकती हूँ। चलो जाओ आज मैं ही तुम्हें हर बन्धन से मुक्त करती हूँ। तुम एक ऐसा काम कर रहे हो जो देश भक्ति का है इसलिए आज से तुम अपने कर्मक्षेत्र के लिए मुक्त हो। आज़ाद हो तुम - सुना तुमने आज़ाद हो तुम। तुम्हें जहां जाना है मुक्त होकर जाओ। और हाँ कमज़ोर और डरपोक पुरुष होकर नहीं बल्कि एक निडर और जांबाज सिपाही बनकर जाओ। मैं खुद तुम्हारा परित्याग करती हूँ आज। यह वचन है मेरा मेरे जीवन में कोई दूसरा पुरुष कभी नहीं आएगा। तुम्हारा वरण किया है आज तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हारा परित्याग करती हूँ।
इतना बोलकर वो एक दम बाहर निकली तो बाहर दरवाजे पर ही सास और ससुर दोनों ही उनकी बातें सुन रहे थे। जैसे ही वो बाहर निकली ठीक उसके पीछे ही नीलोत्पल भी निकला और चला गया था अपने मिशन पर। उसे जाता देख अचानक ही उसके पिताजी को दिल का दौरा पड़ा और प्राण पखेरू उड़ गए। बेटा लौटकर नहीं आया बहु ने ही अन्तिम क्रिया कर्म संपन्न करवाया था जैसे ही क्रिया कर्म कर वापस आई थी सास भी चल बसी एक ही दिन दो-दो चिताओं को अग्नि अपने ही हाथों से देकर वो भी हमेशा के लिए उस घर को छोड़कर चली गई थी।
अचानक ही दरवाजे पर ज़ोर ज़ोर से दस्तक हो रही थी और बेटी आवाज लगा रही थी। मीनल की आवाज़ सुनकर वो सोते से जागी। उसकी तन्द्रा टूटी। उसने दरवाज़ा खोला और बेटी के सीने से लग गई। वो बोली - मां क्या हुआ आप कहां थी।
- कुछ नहीं बेटा बस यूँ ही
- नहीं मां सच बताओ
- बेटा कल रात तेरे विदाई के बाद एक आदमी जो शक्ल से भिखारी जैसे दिखता था वो आया था।
बीच में ही मीनल बोली
- हाँ मां एक आदमी लगातार हम सबको देख तो रहा था और वो बार-बार अपने आँसू भी पोंछ रहा था।
- हाँ बेटा वही -----। वो अशरफ भाई थे तेरे पापा के साथ आई बी में ही नौकरी करता था और तेरे पापा का दायां हाथ था
- तो मेरे पापा आई बी में हैं
- है नहीं बेटा, वो आई बी में थे
- तो क्या
- नहीं अभी ज़िन्दा है और पाकिस्तान की जेल में बन्द हैं।
- मां जिस आदमी को अपने मां बाप की, पत्नी की, बेटी की परवाह तक नहीं उस आदमी के लिए -----
- नहीं बेटा उस आदमी के लिए नहीं बल्कि एक सच्चे सिपाही के लिए मेरा मन विचलित है क्योंकि भारत सरकार ने भी उसे अपना मानने से इनकार कर दिया है। सरकार की अपनी मजबूरी हो सकती है लेकिन मैं मजबूर नहीं हूँ। मैं अपनी पूरी ताकत लगा दूंगी उसे वापस लाने में।
- तो क्या आप अब भी उनके साथ रहना चाहती हो।
- नहीं बेटा मैंने खुद परित्याग किया था उसका सिर्फ उसकी खुशी के लिए और आज तक सरकार से मैंने किसी प्रकार की कोई मदद या मुआवजा नहीं मांगा है लेकिन उसकी ज़िन्दगी के लिए एक कोशिश ज़रूर करूंगी अब।
- और अगर वो वापस आ गए तो फिर साथ रहोगी उनके ?
- नहीं, मैंने पूरा जीवन एक तपस्विनी की तरह बिताया है अब वापस उस जीवन में मैं नहीं लौट सकती हूँ लेकिन यह सच है वो तेरा पिता है और मेरा पति भी।
- मां तुम सचमुच ग्रेट हो एकदम आइरन लेडी।
और फिर दोनों मां बेटी एक दूसरे के गले लग गई।