एक संस्मरण

एक संस्मरण

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दोस्तों,

एक ख़ुशी का पल आपसे बाँटना चाहती हूँ, आशा है आप सब को भी अच्छा लगेगा। पाँच साल पहले की बात है। रात के साढ़े आठ बज चुके थे। मैं, मेरी किताब "मैं साक्षी यह धरती की" को गोद में लेकर बैठी हुई थी कि अचानक मेरी मोबाइल बज उठी। मेरे फ़ोन उठाने से पहले ही कट गया, जब कॉल चेक किया तो वह मेरी पड़ोसन का कॉल था। मैं ने सोचा क्या बात है कि इतने देर रात फ़ोन किया। मेरे पति साथ मे बैठे हुए थे, उन्होंने पूछा "अब कौन हो सकता है।"

मैने बताया कि पड़ोसन का कॉल है। उन्होंने कहा "पूछो क्या बात है", मैने कहा, "सुबह फ़ोन कर लेती हूँ।"

उन्होंने कहा, "नहीं अभी पूछो कुछ तो बात अवश्य होगी नहीं तो अब क्यों फ़ोन करती।"

मैने कॉल किया, और पूछा, "क्या बात है लताजी, आपने फ़ोन किया था?" इत्तेफ़ाक से उनका नाम भी लता है।

उन्होंने पूछा "क्या आप फ्री हैं?" , 

मैं ने कहा "हाँ, कहिए क्या बात है।"

उन्होंने कहा, " क्या आप मेरे घर आ सकती हैं?" 

मैंने कहा, "अब नहीं सुबह आ कर मिलती हूँ।"

"नहीं अब आइये वो कल जा रही हैं।" 

मैने सोचा पता नहीं क्या बात है? मेरी कोई जरुरत पड़ गई हो, वरना कभी नहीं बुलाती। मैने कहा ठीक है "१० मिनट आ रही हूँ।"

"ठीक है।" फिर फ़ोन कट गया। 

मैं अपने सारे काम छोड़ कर जब वहाँ पहुंची एक ८०-८२ साल की वृद्धा उनके घर बैठी थीं। वो मुझे देख कर बहुत ख़ुश हुई। उनके हाथों में मेरी किताब 'नयी कविताएँ' 'मैं साक्षी यह धरती की' थी, जो की मैने मेरी सहेली को एक दिन पहले ही भेंट किया था। 

मुझे देखते ही लता जी ने बड़े प्यार से बुलाकर बिठाया और उस बुजुर्ग महिला से परिचय कराया। उनके चेहरे पर आनंद झलकने लगा, जैसे की उन्हें नमस्कार कहकर उनके पास बैठी उन्होंने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिया। वे अपने हाथों में मेरे हाथ लेकर अपने गोद में रखे जैसे कि कोई अमूल्य वस्तु उनके हाथ से छूट न जाए। खुशी उनकी चेहरे पर देखने को बनता था। वे मेरा हाथ पकड़ कर छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। ८० साल की वह वृद्धा के आँखे खुशी से गद-गद थी। वे अपने समय के माखनलाल चतुर्वेदी जी को याद करते हुए मेरी कविताओं को पढ़ कर मुझे सुनाई। और उनके लिए वह कुछ पल में बहुत खास बताया। वे कुछ समय के लिए शिक्षिका थीं और हैदराबाद में काम करती थीं। उनके समय मे पाकिस्तान भारत का ही अंश था। बाद में  पाकिस्तान अलग हो गया और वे शिक्षिका वृत्ति छोड़ कर नर्स का काम करने लगी। उनके साथ कुछ समय बिताना मेरे लिए भी बहुत स्मरणीय रहा। अपने बहुत सारे पुराने यादों को मुझसे साझा किया, उन सारे यादों को ताजा कर लिया जो उन्होंने शिक्षिका के दौर में बच्चों को माखनलाल चतुर्वेदी जी की कविताओं समझाती थीं। एक ८० साल की वृद्धा का आशीर्वाद और उनकी जिंदगी में किसी राइटर को स्वयं मिलने की खुशी उनकी चेहरे पर साफ झलक रही थी । वह अहसास जिंदगी भर मैं कभी भूल नहीं सकती। दोनों के लिए ये कुछ अविस्मरणीय पल थे। उनकी आँखें चमक उठे थे और मेरे लिए उस बृद्धा की खुशी बहुत अनमोल लगा। मुझे कुछ क्षण ऐसा लगा की मेरा जीवन सार्थक हो गया, वह कुछ पल मेरे लिए भी बहुत ही कीमती पल थे।

किताब उनकी हाथ में आना उसे देखना, पढ़ना और उनकी सहेली प्रोफ़. से उस बारे में बात करना… उन्होंने सब कुछ बताया। जब उन्हें पता चला कि मैं उसी बिल्डिंग में ही रहती हूँ जहाँ वे आई हुई थी तो तुरंत ही मुझसे मिलना चाहा। मुझे खुशी है की मेरे कारण उनकी आँखों में कुछ देर के लिए सही खुशी छाई रही और उन्हें मिलकर मुझे भी बहुत ख़ुशी हुई। उनकी आँखों की चमक ने मेरी सारी नाकामयाबी को भुला दिया। मैं तो कुछ और दे नहीं सकती थी बस एक किताब पर मेरे दस्तख़त के साथ उन्हें सादर समर्पित कर सकी। 



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