एक सच्ची भक्ति गाथा।
एक सच्ची भक्ति गाथा।
"दर्दे दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को।
वरना ताअत(भजन) के लिए, कुछ कम न थे कर्रोवियाँ(देवता-गण)।।
यह एक सच्ची गाथा एक सूफी संत की है, जो बचपन से ही" रूहानी दौलत" उनके पास अपने आप चल कर खुद आई थी। बात है हजरत "बीबी राबिया बसरी"की जो काबे शरीफ के दर्शन के लिए बड़े शौक और प्रेम से खिंची हुई चली जा रही थी, कि रास्ते में एक जंगल पड़ा जिसमें एक कुआँ था और उसके पास ही एक कुत्ता प्यास के मारे जीभ निकाले हुए मरने के करीब हो रहा था। हजरत बीबी राबिया उसकी यह दुर्दशा देखकर तड़प गईं।
बीबी राबिया दिल से उस कुत्ते को पानी पिलाने की तदबीरें सोचने लगीं। निदान वृक्षों के बड़े-बड़े पत्ते तोड़कर एक डोलची सी बनाई और अपनी ओढ़नी फाड़ -फाड़ कर रस्सी बटी। अब रस्सी को डोलची में बाँध-कर पानी निकालने के लिए कुँए में डाला, तो रस्सी छोटी पड़ी ।तब उन्होंने बाकी कपड़े (छिपाने की जगहों के कपड़े के सिवा) सब फाड़ डाले और रस्सी बटी। इस पर भी रस्सी छोटी पड़ी। उधर कुत्ते की दशा देखकर यह प्रकट हो रहा था कि अब थोड़े ही समय का मेहमान है ।अंत में उन्होंने अपनी जुल्फें उखाड़-. उखाड़ कर रस्सी बटी, और उसे उस रस्सी में बांधकर कुएँ में डाला ।तो अब रस्सी पूरी हो गई जिससे वे अब बड़ी प्रसन्न हो गई और इस तरकीब से पानी निकाल कर कुत्ते को पिलाना चाहा। वह निहायत प्यासा तो था ही ,पानी के देखते ही एक बारगी उस पर टूट पड़ा और खींच कर थोड़ा सा पानी पी लिया था कि मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। तब उन्होंने उसके मुँह पर पानी के छींटे मार- मार कर सचेत किया और अच्छी तरह से पानी पिलाया ।जब कुत्ता पानी पीकर संतुष्ट हुआ तो आकाश की ओर देखकर उस जंगल में कहीं चला गया।
अब हजरत बीबी राबिया काबे शरीफ रवाना हो गईं। हालत यह है कि सर से खून के फव्वारे जारी हैं, पग -पग पर रुक रुक कर खून पोंछती जाती हैं और पीड़ा से व्याकुल होती हैं। यह देख कर खुदा ने फरिश्तों को आज्ञा दी कि मेरी एक प्रेमी बड़े प्रेम से काबे के दर्शन को जा रही है, लेकिन काबा बहुत दूर है और उसे बहुत ही कष्ट है। इसलिए "तुम लोग काबा को ही उठाकर उसके पास ले जाओ।" जिस से खुद( काबा )ही उनका दर्शन कर ले ।फरिश्तों ने पूछा कि हे दयासिन्धु!" ऐसी कृपा तो कभी किसी पर नहीं हुई थी, यह क्या बात है ?आकाश वाणी हुई कि,' उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के मेरे एक प्यासे कुत्ते को पानी पिला दिया है ।"
विचार करने की बात है कि जब एक प्यासे कुत्ते को जो बड़ा अपावन और घृणा के योग्य समझा जाता है, पानी पिलाने पर बीबी राबिया को यह ऊँचा दर्जा मिला, तो भला किसी पुरुष( सृष्टि रत्न) बल्कि सज्जन पुरुष के साथ किए हुए उपकार और नेकी को परमेश्वर कभी भुला सकता है और क्या इसका बदला कुत्ते के पानी पिलाने के बदले से भी कम दे सकता है ?
अर्थात जिस दयालु जगदीश्वर ने एक कुत्ते के साथ की हुई भलाई नहीं भुलाई, वह भला किसी सज्जन पुरुष के साथ की हुई भलाई कैसे भुला सकता है।
इसका मतलब यह है कि ईश्वर के रास्ते में काबे के दो पड़ाव पड़ते हैं। एक वही कावा शरीफ है ,जहां लोग मक्के के दर्शन करते हैं और दूसरा पड़ाव" दिल" है ।इसलिए जहाँ तक हो सके दिलवाले पड़ाव का दर्शन (दिल को खुश करना) हमेशा करते रहो, क्योंकि एक दिल हजारों काबे से बढ़कर है।
"अतः परमेश्वर ने मनुष्य को दीन दुखियों के दुख -दर्द को दूर करने के लिए पैदा किया है (न कि केवल भजन के लिए) नहीं तो भजन करने के लिए देवता गण क्या कम थे?"