एक लड़की पहेली सी
एक लड़की पहेली सी
मै जब भी आफिस जाता, अक्सर बस स्टैंड पर एक लड़की मुझे नज़र आती, जैसे ही बस आकर रूकती, हम सब मे बस पे पहले चढ़ने की होड़ सी लग जाती, लेकिन वो इत्मीनान से खड़ी रह अर पहले औरों के चढ़ने देती और फिर खुद चढ़ती, और अगर बस मे जगह ना हो तो वो नीचे ही खड़ी रह जाती, अगर चढ़ जाती तो कोई बुज़ुर्ग या बच्चा होता तो बैठने के लिए पहले उसे सीट देती । अक्सर मै देखता बस मे अगर किसी का बच्चा परेशान करता या रोता तो ना जाने क्या जादू था कि वो उसे गोद मे लेकर झट से चुप भी करा देती और बैग से निकाल कर उसे चाकलेट भी देती ।मै बस उसे देखता ही रहता, कई बार मन चाहा कि उससे बात करूँ,
मैं दिल ही दिल मे उसे चाहने लगा था । लेकिन अचानक कुछ दिनो से वो नज़र नही आई, आँखे रोज़ उसे उसी बस स्टैंड पर ढुँढती,पर पुछु तो किससे, कोई भी कुछ भी नही जानता था उसके बारे में, एक दिन मै दोस्तो के साथ किसी होटल मे खाना खाने गया तो अचानक मेरी नज़र सामने के टेबल पर पड़ी वही लड़की लाल सुर्ख जोड़े में गहनों से लदी थी,
और उसके साथ एक अधेड़ उम्र का शक्स, दिखने मे कुछ अजीब सा भी था,हाव-भाव से लग रहा था कि पति-पत्नि हैं, लेकिन लड़की के हाव-भाव से पता चल रहा था कि वो खुश नही है । मैने सोचा एक बार मिला जाए लेकिन इतने मे वो उठ कर चले गए और वो लड़की मेरे दिल पर एक छाप छोड़ गई, जो हर समय हँसती रहती थी, वो आज खोई-खोई सी लग रही थी, ना जाने क्या थी उसकी कहानी, एक पहेली सी बन कर रह गई वो लड़की मेरे लिए।