Akanksha Gupta

Drama

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Akanksha Gupta

Drama

एक लड़की भीगी भागी सी

एक लड़की भीगी भागी सी

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“एक लड़की भीगी-भागी सी”

“सोती रातों में जागी सी”

“मिली एक अजनबी से”

“कोई आगे ना पीछे”

“तुम्हीं कहो ये कोई बात है........ओ”

“एक लड़की भीगी-भागी सी.......”

मॉनसून कैफे में किशोर कुमार का यह सुरीला गीत कैफे के माहौल को खुशनुमा बना रहा था। बाहर झमाझम बारिश हो रही थीं। हवा का रुख कैफे की ओर होने की वजह से बारिश का पानी कैफे के दरवाजे पर आ रहा था जिसकी बूंदे दरवाजे पर एक अलग ही दर्पण बना रही थी।

वेदान्तिका उसी कैफे में एक जगह बैठकर कॉफी पीते हुए बाहर का नजारा देख रही थीं। वह कल रात को हुई घटना के बारे में सोच रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कल उसकी जान बचाने वाले और मदद करने वाले इंसान नही बल्कि दो दुखी आत्माएं थीं। वो उनकी मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी।

वो ये सब सोच ही रही थीं कि उसने देखा कि एक लड़की भागते हुए कैफे के अंदर आई। वो पूरी तरह भीग चुकी थीं। उसके पास एक छाता और एक लेडीज बैग था। उसने लाल रंग का कुर्ता और सफेद रंग का पलाज़ो पहन रखा था। उसकी कलाई पर एक सिल्वर कलर की एक लेडीज घड़ी बंधी हुई थी।

वो भागते हुए वेदान्तिका की मेज की ओर आई और झट से अपना बैग और छाता मेज पर रख अपने बाल खोल कर ठीक करने लगी। उसके बालों से पानी टपक रहा था। अपने बालों को ठीक करने के बाद वो अपने बाल बांधने जा रही थी कि वेदान्तिका ने उसे रोक दिया- “एक्सक्यूज मी, रहने दीजिए वरना सिरदर्द हो सकता हैं।”

वो लड़की सकपका गई। “ओ.... आई एम सो सॉरी मैम। इफ यू डोंट माइंड, मैं यहां बैठ सकती हूँ?” उसने पूछा तो वेदान्तिका ने आँखों से इशारा कर उसे कुर्सी पर बैठने के लिए कहा।

“ओ थैंक यू सो मच मैम।” कहते हुए वो कुर्सी पर बैठ गई और बैग में से अपना फोन निकाल लिया। उसकी कंपकपी छूट रही थीं। वेदान्तिका ने उसके लिये दूर से गुजर रहे एक वेटर को कॉफी को ऑर्डर दिया तो उसने उसकी ओर ऐसे देखा जैसे वो कोई अजूबा हो।

“अरे मैम, मैं ऑर्डर करने ही वाली थी। वो मेरा पर्स नही मिल रहा है ना इसलिए ऑर्डर नही किया।” कहकर उसने बैग मे हाथ डाला।

वेदान्तिका समझ गई कि उसके पास पैसे नहीं है और वो झूठ बोल रही हैं, इसलिए उसने कहा- “कोई बात नहीं। आज की कॉफी पार्टी मेरी तरफ से, ठीक है। वैसे नाम क्या है तुम्हारा?

वेदान्तिका की बातें सुनकर वो लड़की बहुत खुश हुई। उसके चेहरे से लग रहा था मानो उसकी चोरी पकड़ी नही गई। मेरा नाम....... मेरा नाम तान्या है। यही पीछे वाले गर्ल्स हॉस्टल में पढ़ाई करते हैं हम।” इतने में वेटर कॉफी लाकर रख चुका था और चला भी गया था।

“अच्छा, तो इतनी तेज बारिश में पैदल चलकर यहाँ तक आ गई? किसी ने रोका नहीं तुम्हें?” वेदान्तिका ने उसकी आंखों में देखकर पूछा तो उसका चेहरा लटक गया। फिर उसने वेदान्तिका की ओर देखा और कहना शुरू किया- “नही मैम, वार्डन ने बड़ी रिकवेस्ट के बाद तो यहां आने की परमिशन दी हैं और हम इसी खुशी के चक्कर में पैसे लाना भूल गए।”

वेदान्तिका को उसकी बात सुनकर बहुत दुःख हुआ। उसने तान्या से सहानुभूति जताते हुए कहा- “तो बारिश के बाद आ जाती यहां।” वेदान्तिका ने तान्या की ओर कॉफी का कप बढ़ाया।

तान्या ने कप उठाया और फूंक मारकर कॉफी पीने लगी। एक-दो घूंट भरने के बाद उसने बोलना शुरू किया -“वो क्या है ना मैम, मुझे बचपन से ही बारिश में भीगना बहुत अच्छा लगता हैं। बचपन में तो मम्मी भेज दिया करती थीं छत पर भीगने के लिए लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई, मम्मी ने छत पर जाना रुकवा दिया।”

उसने एक लंबी सांस ली। उसकी कॉफी भी खत्म होने वाली थी और शायद बारिश भी रुकने वाली थी। उसने आगे कहना शुरू किया- “मम्मी कहती हैं कि लड़कियों का ऐसे भीगना अच्छा नहीं होता। पता नही कौन किन नज़रों से देख रहा हो। इस बात पर मेरी लड़ाई भी हो गई थी उनसे। फिर लगा कि उनकी बात भी तो सही है। आजकल तो छोटे बच्चे भी सेफ नहीं है फिर हम तो बड़े हो चुके है मैम।”

उसकी बात खत्म हो गई थी और कॉफी भी। उसने बाहर देखा तो बारिश थम गई थी। उसने जल्दी से अपना बैग और छाता उठाया और जाने लगी। फिर वो अचानक से रुकी और वेदान्तिका से कहा- “कभी कभी तो लगता है कि हम बच्चे बनकर ही खुश थे। एनीवे, कॉफी पार्टी के लिए थैंक्स। आपसे मिलकर अच्छा लगा।”

इतना कहकर वो वहां से चली हैं और वेदान्तिका सोच में पड़ जाती हैं-“सच ही तो कहा है तान्या ने, बारिश की बूंदें भी किसी की नजर से मैली हो जाए तो जिंदगी और बचपन कहाँ लौट कर आता हैं।

वेदान्तिका भी बिल अदा कर के बाहर निकल आई थी और ऑटो को रोक कर उसमें बैठ गई। अब उसके होठों पर किशोर कुमार का वहीं गीत ठहर गया-

“एक लड़की भीगी-भागी सी”

“सोती रातों में जागी सी”

“मिली एक अजनबी से”

“कोई आगे ना पीछे”

“तुम्हीं कहो ये कोई बात है........ओ”

“एक लड़की भीगी-भागी सी.......”



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