एक दिलचस्प कहानी
एक दिलचस्प कहानी
जब द्वितीय महायुद्ध शुरू हुआ, तो कोल्या सोकोलोव दस तक गिन सकता था। बेशक, दस तक गिनना तो बहुत कम होता है, मगर ऐसे भी बच्चे होते हैं, जिन्हें दस तक गिनती भी नहीं आती है।
मिसाल के तौर पर, मैं एक छोटी बच्ची ल्याल्या को जानता था, जो सिर्फ पाँच तक गिन सकती थी। और वो भी कैसे गिनती थी ? वह कहती: “एक, दो, चार, पाँच।” और “तीन” छोड़ देती थी। ये कोई गिनती हुई ? ये तो बड़ी बेवकूफ़ी की बात है। नहीं, मुश्किल से ही ऐसी बच्ची कोई वैज्ञानिक या गणित की प्रोफेसर बनेगी। बल्कि, ऐसा लगता है कि वह कोई घरेलू नौकरानी या झाडू लगने वाली बनेगी। क्योंकि वह अंकों के बारे में कुछ भी नहीं सीख सकती है। मगर हमारा कोल्या, मैं कहता हूँ, दस तक गिन सकता था। और इसकी बदौलत वह अपने घर के दरवाज़े से दस कदम गिन सकता था। और इतने कदम गिन कर, वो फ़ावड़े से एक गड्ढा खोदने लगा।
लीजिए, उसने गड्ढा खोद लिया है। इस गड्ढे में लकड़ी का एक बक्सा रख दिया, जिसमें उसकी कई चीज़ें थीं – स्केट्स, छोटी सी कुल्हाड़ी, छोटी सी आरी, जेब में रखने वाला फोल्डिंग-चाकू, चीनी मिट्टी का छोटा सा हिरन, और दूसरी छोटी-छोटी चीज़ें।
उसने यह बक्सा गड्ढे में रखा। उस पर मिट्टी डाल दी। पैरों से उसे अच्छी तरह दबाया। और ऊपर से पीली रेत भी उस पर डाल दी, जिससे कि यह पता न चल सके कि वहाँ कोई गड्ढा है और उसमें कुछ रखा है।
अब मैं आपको बताऊँगा कि कोल्या ने अपनी चीज़ें, जिनकी उसे हमेशा ज़रूरत पड़ती थी, ज़मीन के अन्दर क्यों गाड़ दीं।
वह अपनी मम्मा और दादी के साथ कज़ान शहर जा रहा था। क्योंकि उस समय फ़ासिस्टों ने हमला कर दिया था। वे उनके गाँव के बिल्कुल नज़दीक आ गए थे। और सारे गाँव वाले फ़ौरन गाँव छोडकर जाने लगे थे। और, मतलब, कोल्या ने भी अपनी मम्मा और दादी के साथ जाने का फ़ैसला कर लिया।
ज़ाहिर है, सारी चीज़ें तो अपने साथ नहीं ना ले जा सकते। इसलिए मम्मा ने कुछ चीज़ें सन्दूक में रखीं और उन्हें ज़मीन में गाड़ दिया,जिससे कि वे फ़ासिस्टों के हाथ न पड़ें। मम्मा ने दरवाज़े से तीस कदम गिने। और वहाँ सन्दूक गाड़ दिया। उसने तीस कदम इसलिए गिने, जिससे कि वह जगह याद रख सके, जहाँ सन्दूक गाड़ा है। बाद में सन्दूक ढूँढ़ने के लिए पूरे आँगन को नहीं खोदना पड़ेगा। जब फ़ासिस्टों को गाँव से बाहर खदेड़ दिया जाएगा तो बस, बगीचे की दिशा में तीस कदम गिनना पड़ेगा, और सन्दूक फ़ौरन मिल जाएगा। इसलिए मम्मा ने दरवाज़े से तीस कदम की दूरी पर सन्दूक को ज़मीन में गाड़ दिया। और कोल्या ने, जिसे सिर्फ दस तक गिनना आता था, दस कदम गिने। और वहाँ अपना बक्सा गाड़ दिया। और उसी दिन मम्मा, कोल्या और दादी कज़ान चले गए। और इस शहर में वे क़रीब-क़रीब चार साल रहे। कोल्या यहीं बड़ा हुआ, वह स्कूल जाने लगा। और सौ से ज़्यादा तक की गिनती सीख गया।
आख़िरकार ये पता चला कि फ़ासिस्टों को उस गाँव से खदेड़ दिया गया है जहाँ पहले कोल्या रहता था। और न सिर्फ उस गाँव से, बल्कि हमारे देश से ही खदेड़ दिया गया है। और तब कोल्या अपनी मम्मा और दादी के साथ अपने गाँव लौट आया।
आह, अपने गाँव की ओर लौटते हुए वे परेशान थे ! सोच रहे थे, ‘ हमारा घर सही-सलामत तो है ? कहीं फ़ासिस्टों ने उसे जला तो नहीं दिया ? और ज़मीन में गड़ी हुई हमारी चीज़ें तो सही-सलामत हैं ? या, हो सकता है कि फ़ासिस्टों ने इन गड्ढों को खोदा हो और उनमें रखी चीज़ें ले ली हों ? आह, ये तो बहुत बुरा होगा, अगर उन्होंने स्केट्स, आरी और कुल्हाड़ी ले ली हो।’
तो, आख़िरकार, कोल्या अपने घर आ गया। घर तो सही-सलामत है, मगर थोडी बहुत तोड़-फ़ोड़ हुई है। और सारी चीज़ें जो घर में रह गई थीं, ग़ायब हो गई थीं। फ़ासिस्टों ने उन्हें चुरा लिया था। मगर मम्मा ने कहा, “कोई बात नहीं। हमारे पास और भी कई चीज़ें बची हैं, जिन्हें हमने ज़मीन में गाड़ा था।”
इतना कहकर मम्मा ने तीस कदम गिने और फ़ावड़े से ज़मीन खोदने लगी। और जल्दी ही उसे इत्मीनान हो गया कि सन्दूक वहीं था। तब कोल्या ने मम्मा से कहा: “ये होती है अंकगणित। अगर हमने सन्दूक को यूँ ही गाड़ दिया होता, तीस कदम गिने बगैर, तो अब पता भी नहीं चलता कि कहाँ खोदा जाए। आख़िरकार मम्मा ने सन्दूक खोला। वहाँ सब कुछ साबुत और ठीक-ठाक था। और चीज़ों में सीलन भी नहीं लगी थी, क्योंकि सन्दूक के ऊपर ऑइल-क्लॉथ डला हुआ था। चीज़ों के सुरक्षित होने से मम्मा और दादी तो इतनी ख़ुश थीं कि वो गाना भी गाने लगीं: “चमके चाँद, ख़ूब चमके”।
और तब कोल्या ने भी फ़ावड़ा उठाया, दस कदम गिने और पड़ोस के बच्चों से, जो उसके चारों ओर इकट्ठे हो गए थे, बोला, “ अगर मैं अपनी चीज़ें कहीं भी गाड़ देता, अगर मैंने दस कदम न गिने होते, तो अब मुझे पता भी नहीं चलता कि वे कहाँ पड़ी हैं। मगर गिनती से लोगों को कई फ़ायदे होते हैं। अंकगणित की बदौलत मैं ये जानता हूँ कि मुझे कहाँ खोदना चाहिए।”
इतना कह कर कोल्या ज़मीन खोदने लगा। खोदता है, खोदता है, मगर अपना बक्सा उसे नहीं मिल रहा है। काफ़ी गहरा गढ़ा खोद लिया। बक्सा नहीं मिलता। थोड़ा बाएँ खोदा, थोड़ा दाएँ भी खोदा। कहीं भी नहीं है।
बच्चे निकोलाय पर हँसने लगे। “ओय, ओय, तेरी अंकगणित ने तो तेरी कोई मदद ही नहीं की। हो सकता है कि फासिस्टों ने तेरी चीज़ें खोद कर निकाल ली हों ?”
कोल्या ने कहा: “नहीं, अगर वे हमारा भारी-भरकम सन्दूक नहीं ढूँढ पाए, तो मेरी चीज़ें भी उन्हें नहीं मिली होंगी। यहाँ बात ये नहीं है।”
कोल्या ने फ़ावड़ा फेंक दिया। वह ड्योढ़ी की सीढ़ियों पर बैठ गया। और दुखी और उकताया हुआ बैठा रहा। सोच रहा है। माथे पर हाथ फेर रहा है। और, अचानक, हँसते हुए वह बोला, “ स्टॉप, बच्चों ! मुझे मालूम है कि मेरी चीज़ें कहाँ रखी हैं।”
इतना कहकर कोल्या ने सिर्फ पाँच कदम गिने और कहा, “ये यहाँ पर पड़ी हैं मेरी चीज़ें।” और, फ़ावड़ा लेकर वह खोदने लगा। और वाक़ई में उसका बक्सा दिखाई देने लगा।
तब सारे बच्चे बोले, “अजीब बात है। तूने तो अपना बक्सा दरवाज़े से दस कदम की दूरी पर गाड़ा था, मगर अब वह पाँच कदम की दूरी पर कैसे मिला ? कहीं युद्ध के दौरान तेरी चीज़ें अपने आप तो तेरे घर के पास नहीं खिसक गईं ?”
“नहीं,” कोल्या ने कहा, “बक्से अपने आप नहीं चल सकते। यहाँ बात ऐसी हुई है : जब मैंने अपना सन्दूक गाड़ा था, तब मैं बिल्कुल छोटा बच्चा था। मैं बस पाँच साल का ही तो था। और तब मेरे कदम भी बिल्कुल छोटे-छोटे थे। और अब मैं नौ साल का हूँ, दसवाँ चल रहा है। और देखो, मेरे कदम कैसे बड़े-बड़े हो गए हैं। इसीलिए, मैंने दस के बदले पाँच ही कदम गिने। अंकगणित उन लोगों के लिए फ़ायदेमन्द है, जो ये समझ सकते हैं कि ज़िन्दगी में क्या हो रहा है। और होता ये है कि समय आगे भागता है। लोग बड़े होते हैं। उनके कदम बदलते हैं। ज़िन्दगी में कोई भी चीज़ बिना बदले नहीं रह सकती।”
अब कोल्या ने अपना बक्सा खोला। सब चीज़ें जहाँ की तहाँ थीं। यहाँ तक की लोहे की चीज़ों को भी ज़ंग नहीं लगा था, क्योंकि कोल्या ने उन पर तेल मल दिया था। और ऐसी चीज़ों पर ज़ंग लग ही नहीं सकता।
जल्दी ही कोल्या के पापा भी आ गए। वे सार्जेंट थे, उन्हें बहादुरी के लिए मेडल मिला था। और कोल्या ने उन्हें सारी बात सुनाई। और पापा ने कोल्या की खूब तारीफ़ की उसकी अकलमन्दी और योग्यता के लिए।
और वे सब बड़े ख़ुश और सुखी थे। गा रहे थे, ख़ुशियाँ मना रहे थे और डान्स भी कर रहे थे।