एक औऱत क़ी चीख़
एक औऱत क़ी चीख़
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एक औरत की चीख अगर
ख़ुशी से निकले तो होती घर में रौनक है,
ग़र जो निकले उसकी चीख रौंद्र में,
तो रूठती घर की लक्ष्मी है!
ऐ इंसान मत समझ औरत को कमजोर,
ग़र वो बन गयी काली तो पढ़ जायगी वो सबपर भारी!
जैसे खूब लड़ी मर्दानी वो झाँसी वाली मर्दानी थी,
ग़र वो बन गयी काली तो
ना फिर सोचेगी वो किसी की रानी थी!
औरत की चीख़ जो देती जन्म एक प्राणी को,
उसी पर सारा जन्म है फूंकती ऐसी उसकी कहानी जो!
एक चीख में रौनक है उसके परिवार के लिए,
एक चींख है रौंद्र उसके खुद के लिए!
किस को दर्द है करे वो बयां,
एक पल के लिए पराया होता उसका खुद का जंहा!
सबके लिए है जीती,सबके लिए है वो मरती,
ऐसी उसकी एक कहानी है
औरत की यही जुबानी है!
लेकिन ऐ इंसान ग़र वो लेले काली का रुप तो
दोहराती वो इतिहास है,जैसे खूब लड़ी मर्दानी वो झाँसी वाली रानी है!
ग़र वो लक्ष्मी बन जाये तो करती सबका कल्याण है,
ऐसी एक औरत की कहानी है,
ऐसी उसकी चीख की ज़ुबानी है!