दया एवं परोपकार
दया एवं परोपकार
प्रकृति के सारे जीव जंतु उस परमपिता परमेश्वर की ही देन हैं I और सब जीवो पर दया करना हमारा धर्म एवं कर्तव्य भी है I ऐसा मेरा मानना है I मुझे शुरू से ही जीव जंतुओं की सेवा करना, पालना मेरा बचपन से ही शौक है I यह कहानी जो मैं लिखने जा रहा हूं, इसको अभी शायद ही 2 वर्ष हुए होंगे जो मुझ से संबंधित है I इसे कहानी कह लो, या मेरे जीवन की सच्ची घटना I
एक दिन मैं विद्यालय से छुट्टी करके घर वापस आ रहा था I मैं अपनी कार चला रहा था I कुछ आगे चलने पर क्या देखता हूं कि एक कछुआ जो कि ना ज्यादा बड़ा था और ना ज्यादा छोटा था मेरे रास्ते के बीच में आ गया I मैंने अचानक ब्रेक लगाई और उसे मैंने अपनी गाड़ी में रख लिया I क्योंकि मेरे बच्चों को भी मछली,कछुआ आदि पालने का बहुत शौक है I मैं उसे घर पर ले आया I बच्चों ने देखा, बहुत खुश हुए I बच्चों ने कहा, पापा इसे कहां पर रखेंगे I
मैंने कूलर का डिब्बा जिसमें पानी भरा जाता है,जो काफी बड़ा था उसमें पहले रेत डालकर, उसमें पानी भर कर उस कछुए को उस में छोड़ दिया I मोबाइल पर नेट से यह देखा कछुआ क्या क्या खाता है, उसी प्रकार उसकी व्यवस्था की, कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा I लगभग 1 महीने तक उसको रखा I सुबह अचानक मेरे छोटे बच्चे ने कहा कि पापा ",आज इसने कुछ खाया ही नहीं I और उसने मुझे एक सीख यह भी सिखलाई कि पापा यदि आपको भी कोई इस प्रकार अकेला कहीं रखा जाए तो आप रह लोगे ? इसके दोस्त, माता-पिता आदि इसको कितना याद करते होंगे I मेरे अंदर अचानक ना जाने क्या समझ आया कि अंतर से आवाज आई कि कोई कैसे अपनों से दूर रह सकता है I मैंने बहुत गलत काम किया इसको यहां लाकर I
अगली सुबह मैंने बच्चे से कहा कि बेटा चलो, आज इसको इस की दुनिया में छोड़ आए I हम दोनों लोग हमारे पास में एक नदी है,वहां पर उसे ले गए जैसे ही उसे थैले से निकालकर रेत पर छोड़ा तो क्या देखते हैं कि वह बड़ी तेजी से नदी के अंदर दौड़ता हुआ चला गया I थोड़ी देर तक हम वहां खड़े हुए देखते रहे I अचानक क्या देखता हूं कि वही कछुआ, थोड़ी देर के लिए पानी से बाहर आकर रुका, और फिर पानी के अंदर चला गया I
उस समय मेरे अंदर दो बातें समझ में आई कि हर जीव जंतु चाहे वह मनुष्य ही क्यों ना हो अपनों से दूर रहकर खुश नहीं रह सकता और दूसरी बात कि यदि तुम किसी पर दया और परोपकार करोगे तो वह हृदय से तुम्हें धन्यवाद देगा I शायद वह कछुआ थोड़ी देर के लिए बाहर हमें धन्यवाद ही देने आया होगा I उसके बाद हम दोनों खुशी-खुशी घर पर लौट आए I आत्मा को बड़ी प्रसन्नता हुई I
“दया,परोपकार और सेवा ही परम धर्म है I"