Charumati Ramdas

Drama

4.0  

Charumati Ramdas

Drama

दुब्रोव्स्की - 04

दुब्रोव्स्की - 04

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299


जहाँ मेज़ पर थे व्यंजन, वहीं रखा है आज कफ़न।

अपने आगमन के कुछ दिनों बाद युवा दुब्रोव्स्की ने काम-काज में ध्यान देने का निश्चय किया, मगर उसके पिता उसे उचित विवरण देने की स्थिति में नहीं थे।

अन्द्रेइ गवरीलविच का कोई विश्वासपात्र कर्मचारी भी नहीं था। उसके कागज़ातों को छानते हुए उसे केवल ग्राम प्रमुख का पहला पत्र एवम् स्याही से लिखा हुआ उसका जवाब ही मिल सका, उन्हें देखकर वह स्थिति की जटिलता का अंन्दाज़ न लगा सका और उसने अपने पक्ष की सच्चाई पर विश्वास रखकर यह देखने का निर्णय लिया कि परिस्थितियाँ कैसा मोड़ लेती हैं।

इस दौरान अन्द्रेइ गवरीलविच की हालत पल-पल बिगड़ती जा रही थी। व्लादीमिर देख रहा था कि अति शीघ्र ही उसका अन्त आने वाला है और वह बूढ़े के निकट से एक पल को भी नहीं हटता था, जो अब बिल्कुल बच्चों जैसी हरकतें करने लगा था।

इसी बीच निश्चित समय समाप्त हो गया और अपील दाखिल नहीं की गई। किस्तेनेव्को अब त्रोएकूरव का हो चुका था, शबाश्किन झुक-झुककर अभिवादन करता हुआ उसके पास आया और बधाइयाँ देते हुए यह निश्चित करने की विनती करने लगा कि सम्माननीय महोदय नई हासिल की गई जागीर में कब प्रवेश करना चाहते हैं – क्या वे ख़ुद यह काम करेंगे या किसी को इसके लिए अधिकृत करेंगे। किरीला पेत्रोविच लज्जित हो गया, स्वभाव से वह लालची नहीं था, बदला लेने की इच्छा उसे काफ़ी दूर तक घसीट ले गई थी, उसकी अंतरात्मा उसे कचोट रही थी। वह जानता था कि उसका प्रतिद्वन्द्वी, उसकी जवानी का पुराना मित्र किस हालत में था और इस विजय से उसके दिल को प्रसन्नता नहीं हो रही थी। उसने क्रोधित, धमकाती नज़रों से शबाश्किन की ओर देखा और उसे गालियाँ देने का बहाना ढूँढ़ने लगा, मगर तुरन्त ऐसा कोई कारण न मिलने से गुस्से में भरकर बोला, “भाग जाओ, तुम्हें इससे कोई मतलब नहीं।”

यह देखकर कि उसका मिजाज़ अच्छा नहीं है, शबाश्किन ने झुककर सलाम किया और शीघ्रतापूर्वक वहाँ से चला गया। अकेला रह जाने पर किरीला पेत्रोविच चहल-कदमी करते हुए सीटी बजाने लगा “जय भेरी पुकारो !” जो हमेशा उसकी उत्तेजित मनोदशा को प्रकट करता था।

आख़िर उसने अपने लिए गाड़ी जुतवाने की आज्ञा दी, गर्म कपड़े पहने (यह सितम्बर के अन्त की बात है) और ख़ुद ही गाड़ी चलाते हुए आँगन से निकला।

जल्दी ही अन्द्रेइ गवरीलविच के छोटे-से घर पर उसकी नज़र पड़ी और परस्पर विरोधी विचारों से मन भर गया। प्रसन्नतादायक बदला और सत्ता के लोभ ने भले विचारों का गला घोटना चाहा मगर अन्त में विजय उन्हीं की हुई। उसने अपने पुराने बूढ़े पडोसी से समझौता करने का निश्चय किया, उसे उसकी सम्पत्ति लौटाकर झगड़े का नामोनिशान मिटा देना चाहा। इस निश्चय से दिल में कुछ राहत महसूस करते हुए किरीला पेत्रोविच तेज़ी से अपने पड़ोसी के घर की ओर चला और सीधे आँगन में गाड़ी ले आया।

इस समय मरीज़ अपने शयन-कक्ष की खिड़की के पास बैठा था। उसने किरीला पेत्रोविच को पहचान लिया और उसके चेहरे पर भयानक उलझन के लक्षण प्रकट हो गए, हमेशा के पीतवर्ण का स्थान लाली ने ले लिया, आँखें चमकने लगीं, वह मुख से असंबद्ध-सी आवाज़ें निकालने लगा। उसके बेटे ने, जो वहीं बैठकर जायदाद के बही-खातों का अध्ययन कर रहा था, सिर उठाकर देखा और उसकी हालत देखकर सकते में आ गया। मरीज़ ने भय और क्रोधपूर्ण भाव से ऊँगली उठाकर आँगन की ओर इशारा किया। उसने जल्दी-जल्दी अपने गाउन के पल्लों को समेटते हुए कुर्सी से उठना चाहा, कुछ उठा...और अचानक गिर पड़ा। बेटा उसकी ओर लपका, बूढ़ा बेहोश पड़ा था, उसकी साँस भी नहीं चल रही थी, उसे पक्षाघात हो गया था। “जल्दी-जल्दी शहर जाओ डॉक्टर के लिए !” व्लादीमिर चीखा।

“किरीला पेत्रोविच आपसे मिलना चाहते हैं,” अन्दर आता हुआ सेवक बोला, व्लादीमिर ने उस पर ख़ौफ़नाक नज़र डाली।

“कह दे किरीला पेत्रोविच से, कि इससे पहले, कि मैं उसे धक्के मारकर निकलवाऊँ, वह फ़ौरन यहाँ से दफ़ा हो जाए भाग जा।” सेवक ख़ुशी-ख़ुशी अपने मालिक की आज्ञा का पालन करने दौड़ा, इगोरोव्ना ने हाथ नचाए।

“मालिक हमारे”, उसने तारस्प्तक में कहा, “अपना सिर कटवाओगे, किरीला पेत्रोविच हमें खा जाएगा।”

“चुप करो, आया माँ,” व्लादीमिर ने आर्तता से कहा, “अब अन्तोन को शहर भेजो डॉक्टर के लिए” इगोरोव्ना बाहर निकल गई।

मेहमानखाने में कोई भी नहीं था, सब लोग आँगन में भाग गए थे– किरीला पेत्रोविच को देखने के लिए. वह बाहर ड्योढ़ी में आई और उसने नौकर को युवा मालिक का संदेश देते हुए सुना। किरीला पेत्रोविच ने उसे गाड़ी में बैठे-बैठे सुना, उसका चेहरा रात से भी ज़्यादा स्याह हो गया, वह घृणा से मुस्कुराया, सेवकों पर धमकी भरी नज़र डाली और आँगन के गिर्द धीरे-धीरे चक्कर लगाने लगा। उसने उस खिड़की की ओर भी नज़र डाली, जहाँ एक मिनट पहले अन्द्रेइ गवरीलोविच बैठा था, मगर जो अब वहाँ नहीं था।

आया मालिक की आज्ञा भूलकर ड्योढ़ी में खड़ी थी। नौकर-चाकर शोर मचाते हुए इस घटना का अपने-अपने तरीके से मतलब निकाल रहे थे। अचानक व्लादीमिर लोगों के बीच प्रकट हुआ और फटी-फटी आवाज़ में बोला, “डॉक्टर की ज़रूरत नहीं है, पिताजी गुज़र गए।”

भगदड़ मच गई। लोग बूढ़े मालिक के कमरे में भागे, वह कुर्सी पर लेटा था, जहाँ व्लादीमिर ने उसे उठाकर रखा था, बायाँ हाथ ज़मीन पर लटक रहा था, सिर सीने पर लुढ़क गया था– इस शरीर में, जो अब तक ठण्ड़ा नहीं पड़ा था, मगर अस्त-व्यस्त पड़ा था, जीवन का कोई भी लक्षण नहीं था। इगोरोव्ना विलाप करने लगी, नौकर मृत शरीर को घेरकर खड़े हो गए, जो उनके सुपुर्द कर दिया गया था– उन्होंने उसे नहलाया, कोट पहनाया जो 1797 में सिलवाया गया था और उसे उसी मेज़ पर लिटा दिया, जहाँ इतने साल उन्होंने अपने मालिक को भोजन परोसा था।


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