दोस्ती का महत्व
दोस्ती का महत्व
कोमल एक शरारती, दबंग लड़की थी। स्कूल में तो उसका इतना दबदबा था लड़के भी उससे डरते थे। मुंहफट थी वो जो मन में आया वो बोल देती थी। उसे लड़ाई के अलावा कुछ आता ही नहीं था। दोस्ती क्या होती, भावनाएं क्या होती वो इन सबसे बहुत दूर थी। घर पर मां बाप के प्यार ने उसको बिगाड़ दिया था। उसको कोई कुछ कहने वाला ही नहीं थी। जो उसको उसकी गलती का अहसास करवाएं। घर में सभी की लाडली थी। स्कूल में उसकी सभी सहेलियों थी। पर कोमल इतनी मतलबी थी अपना मतलब सीधा किया उसकी इस हरकत से सभी परेशान थे। उसी क्लास में एक लड़की थी उसका नाम स्नेहा था। स्नेहा एक होशियार और समझदार लड़की थी। वो हमेशा कोमल की हरकतों को नजरंदाज करती थी उसे लगता था कोमल मतलबी नहीं है बस उसे रिश्तों की समझ नहीं है। एक बार स्कूल में लड़का कोमल से बहस कर रहा था। कोमल के पास डंडा पड़ा था। कोमल ने बिना सोचे समझे वो डंडा उस लड़के के सर पर मार दिया और उसके सर से खून बहने लगा उस समय स्नेहा भी वहीं खड़ी थी उसने सब देखा। तभी प्रिंसिपल मेम ने कोमल को ऑफिस में बुलाया और पूछा क्या हुआ था, उस लड़के को सर पर चोट आई हुई थी उसके सर पर पट्टी करवा दी गई थी।
कोमल के घर से उसके परिवार वालों को भी बुलाया गया। ये सब स्नेहा के सामने हुआ था। तो उससे प्रिंसिपल मेम ने पूछा कि क्या कोमल ने ही उस लड़के को मारा है। कोमल की सांसे रुकी हुई थी अगर प्रिंसिपल उसे स्कूल से निकाल देती। स्नेहा ने एक बार मेरी तरफ देखा। फिर प्रिंसिपल मेम से कहा नहीं कोमल ने उसे नहीं मारा। ये सुनकर कोमल की तो जैसे जान में जान आ गई हो बात वहीं रफा दफा हो गई। कोमल ने बाहर आकर स्नेहा को थैंक्यू कहा। पर स्नेहा ने कहा मैंने तुम्हें इसलिए बचाया की तुम एक अच्छी लड़की हो। बस अपने गुस्से पर काबू नहीं है। अब तुम आगे से किसी का दिल नहीं दिखाओगी। कोमल ने उसे वायदा भी किया। आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा। पर ऐसा नहीं हुआ कोमल अपने वायदे पर खरी नहीं उतरी उसे अपना अहंकार बहुत प्यारा था । ऐसे ही 12 कक्षा के इम्तहान सर पर आ गए सभी अपनी अपनी पढ़ाई में ध्यान लगा रहे थे स्कूल में विदाई समारोह था सभी विद्यार्थी आए हुए थे। सभी बच्चे हंसीं मजाक कर रहे थे। कोमल अपनी कुछ सहेलियों के साथ कैंटीन में गप्पे मार रही थी। तभी कक्षा की एक लड़की ने कोमल से पूछा स्नेहा तुम्हारी सबसे अच्छी सहेली है। इस पर कोमल ने स्नेहा का मजाक उड़ाते हुए कहा नहीं वो मेरी कोई सहेली नहीं है। सारा दिन मेरा दिमाग खाती है ये बात सुनकर सभी हँसने लगे तभी कोमल ने पीछे मुड़कर देखा तो स्नेहा ने सब सुन लिया था उसकी आंखों में आंसू थे उसके बाद वो घर चली गई। अगले दिन कोमल ने स्नेहा से माफी मांगने की कोशिश की। स्नेहा ने उससे बात नहीं की। आखिरी इम्तिहान था उस दिन कोमल ने स्नेहा से कहा की वो तो बस ऐसे ही बात कर रहे थे। उसका इरादा ऐसा नहीं था। स्नेहा ने कोमल को कहा वो एक अच्छी इंसान है पर उसे रिश्तों की कदर नहीं है मैं तुममें एक अच्छा दोस्त देखती थी पर तुम्हें दोस्ती की कदर नहीं है। स्नेहा ने कहा कोमल कभी आगे चलकर ऐसा होगा जो तुम्हारी कदर नहीं करेगा तुम उसकी दोस्ती के लिए तरसोगी पर वो तुम्हें कभी अपना दोस्त नहीं कहेगी। कोमल ने बहुत माफी मांगी की स्नेहा माफ कर दे पर स्नेहा का तो जैसे विश्वास ही टूट गया था कोमल पर से कोमल ने स्नेहा जैसी दोस्त को हमेशा हमेशा के लिए खो दिया स्नेहा को खोने के बाद कोमल को दोस्ती का महत्व समझ आया। कि अच्छी दोस्ती कितनी जरूरी है ज़िन्दगी के लिए।