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Shwet Kumar Sinha

Comedy

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Shwet Kumar Sinha

Comedy

दो समधी

दो समधी

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घर नजदीक होने के कारण सप्ताहांत में मैं लोकल बस पकड़कर घर चला जाया करता था ।इस शनिवार भी घर जाने को बस पकड़ा और खिड़की वाली सीट पर आकर बैठ गया ।बस खुली । कुछेक किलोमीटर आगे जाकर एक रेलवे फाटक पर खड़ी हो गयी । शायद कोई ट्रेन आनेवाली थी । आसपास में अन्य गाड़ियों की भी भीड़ लग गई थी ।

तभी, करीब 65-70 साल की उम्र के दो वृद्ध बस में चढ़ने को उसके दरवाजे के पास आकर खड़े हो गएँ और वहीं खड़े-खड़े बतियाने लगें । उन्हे बस के बाहर खड़ा देख बस कंडक्टर ने बस का दरवाजा खोल दिया ।उन दोनो वृद्धों की बातचीत सुन समझ में आ गया था कि रिश्ते में वे दोनों समधी हैं ।

उनमें से एक अपनी बेटी के ससुराल आया था और घर को वापस लौट रहा था । जबकि, दूसरा तो मात्र उन्हे बस तक छोडने के लिए आया था ।

शिष्टाचार के नाते घर लौट रहे समधी ने दूसरे को भी अपने साथ चलने का निवेदन किया । उसी शिष्टता से दूसरे समधी ने भी विनम्रतापूर्वक मना कर दिया ।

बस के दरवाजे पर अभी दोनों समधियों का मान-मनौवल चल ही रहा था कि रेलवे फाटक खुल गई और बस चलने को हुई ।

“जाना है कि नही”–बस कंडक्टर ने हड़बड़ी में उस वृद्ध से पूछा और जैसे ही उन्होने चलने की हामी भरी । बिना कुछ सोचे-समझे कंडक्टर ने उन दोनों समधियों को पकड़कर बस में खींच लिया । बस ने भी तुरंत अपनी रफ्तार पकड़ ली । फिर, कंडक्टर बस में भीतर की ओर आकर अन्य यात्रियों से किराये लेने में व्यस्त हो गया ।

दोनों समधियों ने उस कंडक्टर को बताने का लाख प्रयास किया कि उनमे से केवल एक को ही जाना है, दूसरे को नही । लेकिन, खचाखच भरे उस बस में एक ही जगह फंस कर खड़े वे बेचारे टस-से-मस भी न हो पाये ।

अपने सीट पर बैठा मैं और कुछ सहयात्री बस में चल रहा यह परिदृश्य देख मुस्कुरा रहें थें ।थोड़े ही देर बाद जब कंडक्टर बस का किराया लेने उन समधियों के पास पहुंचा । दोनों एक साथ उसपर चिल्ला पड़े ।

“एक तो जबर्दस्ती हमें बस में चढ़ा लिया और ऊपर से पैसे मांग रहा है ! कोई पैसा-वैसा नही मिलेगा..... । कब से समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि हमदोनों में से केवल एक को ही जाना है । लेकिन सुनता ही नहीं....जैसे बहरा हो गया है । नही देंगे, पैसा ! जाओ, जो करना है कर लो ।” - दोनों समधी एक स्वर में उस कंडक्टर पर चिल्ला कर बोले।तब जाकर उस कंडक्टर को भी अपनी गलती का अहसास हुआ ।

“हमें जाना ही नहीं था । बस घुमाओ और हमें वापस पहुंचाओ ।” – दोनों समधी उस सहमे कंडक्टर पर अपनी सारी भड़ास निकालते रहें ।

समधी बंधू का तमतमाया हुआ चेहरा और उस असहाय बस कंडक्टर का उतरा हुआ शक्ल देखने लायक था, जिसे देख बस में बैठे अधिकांश यात्री अपनी हंसी रोके बिना न रह सकें ।

एक बस स्टॉप पर बस रोककर उस कंडक्टर ने विपरीत दिशा से आ रही बस में एक समधी को बिठाकर वापस भेजा ।परन्तू, गाँव में रहने वाले एवं शक्ल से भोले दिखने वाले दोनों समधी भी कम थोड़े ही न थें ! उन्होने भी मौका देखकर चौका मारा और हरजाने के रूप में किराया न देने की बात उस बस कंडक्टर से मनवाकर ही अपना आगे का सफर जारी किया ।

   


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