Akanksha Gupta

Drama

0.2  

Akanksha Gupta

Drama

डरावनी जिंदगी।

डरावनी जिंदगी।

4 mins
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मनीष पसीने मे तरबतर था। उसने जो कुछ भी देखा था वह एक सपना था या हकीक़त, उसे समझ में नहीं आ रहा था। वह बिस्तर से उठा ही था कि उसे लगा कि किसी ने उसका हाथ पकड़ रखा है। जैसे ही उसने हाथ छुड़ाने के लिए पीछे की ओर देखा, उसके चेहरे का रंग उड़ गया।

पीछे कोई भी नहीं था। किसी ने भी उसका हाथ नहीं पकड़ रखा था। वह बुरी तरह घबरा गया और भागकर रसोई में आ गया। उसका गला सूख रहा था, धड़कनें तेज़ होती जा रही थी। जैसे ही उसने पानी पीने के लिए फ्रिज़ खोला वैसे ही एक लाश उसके पास गिर पड़ी। वह तेजी से अंदर की तरफ भागा।

उसने ध्यान दिया कि पानी की बोतल वही साइड टेबल पर रखी हुई थी। उसने अपने पास रखी हुई नींद की गोलियों में से एक गोली खा ली और चादर ओढ़ कर लेट गया। उसे बाहर अजीबोगरीब आवाज़ सुनाई दे रही थी लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया। कुछ देर बाद आवाज़ आनी बंद हो गई और वह गहरी नींद में सो गया।

अगले ही दिन वह डॉक्टर बैनर्जी से मिलने पहुँचा। डॉक्टर बैनर्जी मनीष के घनिष्ठ मित्र थे। मनीष को इस तरह के भ्रम बहुत दिनों से हो रहे थे। मनीष और डॉक्टर बैनर्जी को लग रहा था कि यह सब डरावनी फिल्मों के ज्यादा देखने से हो रहा था, लेकिन अब पानी सिर से ऊपर जा रहा था। अब दोनों को यह आभास हो रहा था कि यह कोई और ही बात थी।

डॉक्टर बैनर्जी ने उसके पिछले जीवन के बारे में पता किया और फिर मनीष के साथ हो रही घटनाओं की जो असल वजह सामने आई, वह काफी चौंकाने वाली थी।

आज से लगभग पन्द्रह साल पहले जब मनीष अपने कॉलेज में पढ़ रहा था तो उसकी दोस्ती कुछ बिगड़ैल लड़कों से हो गई थी। वह उनकी देखा देखी शराब पीने लगा था। तेज़ रफ्तार कार चलाना उसकी लत बन चुकी थी।

ऐसे ही एक रात को जब मनीष और उसके दोस्त शराब के नशे में तेज़ रफ्तार कार का मज़ा ले रहे थे तभी एक धड़ाम की आवाज़ के साथ कार रुकी। कार मनीष चला रहा था।उसने कार से नीचे उतरकर देखा तो सुन्न हो गया। एक महिला अपनी नवजात बच्ची के साथ उसकी कार की नीचे आ गई थी।

यह सब देखकर मनीष के दोस्त बहुत घबरा गए। मनीष उन दोनों की मदद करना चाहता था लेकिन उसके दोस्त उसे जबरदस्ती कार में बिठाकर घर ले गए। उन्होंने उस घटना का जिक्र किसी से नहीं किया।

उस दिन के बाद मनीष घबराया हुआ रहने लगा। उसका मन पढ़ाई में नहीं लग पा रहा था। धीरे धीरे उसे वह महिला और उसकी बच्ची हर जगह दिखाई देने लगी।

धीरे धीरे दवाओं के सहारे पन्द्रह साल निकल गए और आज तो हद ही हो गई। अब मनीष को कुछ न कुछ तो करना ही था। उसने तय किया कि वह अपने अंदर पल रहे इस गुबार को निकाल देगा।

वह पुलिस थाने पहुंचा और पन्द्रह साल पहले की सारी घटना पुलिस को बता दी। पुलिस ने बिना किसी ठोस सबूत के कोई कार्यवाही करने से इंकार कर दिया।

कुछ दिनों बाद पुलिस ने मनीष को बताया कि पन्द्रह साल पहले जो एक्सीडेंट उस सड़क पर हुआ था, वह एक्सीडेंट नहीं था क्योंकि वह महिला अपनी बच्ची के साथ आत्महत्या करने के लिए जानबूझकर कार के सामने आई थी। वहाँ मौजूद लोग उसे अस्पताल ले गए थे जहाँ उसे बचा लिया गया। लेकिन पुलिस ने यह भी कहा कि शराब पीकर गाड़ी चलाना एक कानूनी अपराध है और वह आगे से इस तरह का कोई काम न करें।

अब जाकर मनीष को सुकून मिला कि उसके हाथ किसी के खून से नहीं रंगे हुए थे लेकिन ऐसा हो भी सकता था। पन्द्रह साल पहले की उस घटना ने मनीष को फिर कभी भटकने नहीं दिया।





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