Dr. Poonam Gujrani

Inspirational

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Dr. Poonam Gujrani

Inspirational

डायरी

डायरी

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टिप... टिप... टिप....जाने आँख से कितने आँसू टपके और डायरी के पन्ने भीगते चले गये। रोहिणी को जब होश आया तो लगा दिन ढलने को है, रात आने की तैयारी है ठीक उसके जीवन की तरह...। डायरी को रखा और कमरे से निकल कर बाहर आई, देखा, बरसात की बूँदों ने आँगन को भिगो दिया था।मिट्टी की सौंधी से खुशबू जब नथुनों से टकराई तो लम्बी श्वास लेते हुए वो वहीं आँगन के झूले पर बैठ गई पर ये क्या....फिर से आँखें टिप...टिप... टिप...बरसने लगी थी....बरसना लाजमी भी था, हर कोने में रीतेश के साथ बिताये पल उसकी यादों को पल- पल सुलगा जाते थे।


अचानक ही तो घटित हो गया सब कुछ....एक एक्सीडेंट और सब कुछ स्वाहा....। जीवन पल में सिमट गया।पूरा संसार उजड़ गया रोहिणी का।


बेटे का एम बी ए का फाइनल इयर ...वो नहीं जाना चाहता था पर अपने स्वार्थ के लिये उसे रोकना उचित नहीं लगा। रोहिणी ने समझा-बुझाकर ज़बरदस्ती भेज दिया था उसे। अनहोनी पर किसी का वश नहीं पर बेटे का कैरियर कैसे दाँव पर लगा सकती है वो। अपने दिल पर पत्थर रखकर कहा था उसने- साल भर तुम मन लगाकर पढ़ो बेटा, अपने पापा का सपना साकार करना है तुम्हें....पर अब...इस मन को कैसे समझाये ....कैसे जी सकेगी अकेली....।


मैडम कोरियर....आवाज़ से उसकी तंद्रा भंग हुई।

कोरियर का पुलिंदा उठाये वो फिर झूले पर आ बैठी ।

सखी पत्रिका का जुलाई अंक आया था । अरे ये क्या....पहली बार उसके रेखाचित्र प्रकाशित हुए थे। एक-एक पेज पे उसकी निगाहें रुक-रुक कर अपने रेखाचित्रों को निहार रही थी।


रोहिणी ने गीली आँखें पोंछी और अपनी डायरी उठा लाई ....। कसकर बाँहों में भर लिया और अंकुरित होने लगे कुछ सपने.... भविष्य की इबारत....। रीतेश भी तो यही चाहता था कि रोहिणी की कविता, कहानी और रेखाचित्रों का प्रकाशन हो, वो तो बस स्वांत सुखाय के लिये लिखती थी रीतेश ने ही तो भेजे थे बहुत सारी पत्र- पत्रिकाओं में....जो आज पहली बार प्रकाशित हुए है। 


उसे भी साकार करना है रीतेश का सपना.... हाँ वो अवसाद में नहीं आशा के सहारे बिताएगी अपनी जिंदगी। रीतेश के जाने से आये खालीपन को वो भरेगी शब्दों से, रेखाचित्रों से ...। पूरा न भी भर पाये पर कोशिश जारी रहेगी...उसे अपने दर्द की दवा मिल गई थी। 

उसने बालकनी से बाहर देखा तो पाया बरसात के बाद आसमान में इन्द्रधनुष इठला रहा था।

डायरी फिर उसकी बाँहों में झूल गई।



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