Richa jangid

Romance

4.7  

Richa jangid

Romance

दास्तान इंतज़ार की

दास्तान इंतज़ार की

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चचेरे भाई की शादी थी जिसका मुझे पिछले दो साल से इंतजार था। 


शादी की तैयारियॉ इतनी जोरो शोरो से की कि महीने पहले ही अपना सामान उदयपुर जाने के लिए तैयार कर लिया जहाँ नेहा दीदी मेरे सबसे करीब थी। हम दोनों सगी बहनों जैसी थी।

9 वीं की परिक्षाएँ हुई और मैं उदयपुर के लिए रवाना हुई।

घर में हर जगह चहल पहल थी, गाना बजाना और शादी की ये रौनक। 


बहुत से काम मुझे भी सौंपे गए। बरतन साफ करना इनमें से एक था।एक दिन अपनी धुन में रसोई में काम करते समय नेहा दीदी मेरे पास वैभव और निधि को लाईं।उन दोनों से मेरी मुलाकात पहली बार हुई थी। 

निधि से बात करना बिलकुल साधारण सा था पर जब वैभव ने मुझसे " hi " बोला तो मैंने पहली बार अपने आप को किसी की आँखों में खोया हुआ महसुस किया।


वैभव के बारे में जानने के लिए सबसे उसके बारे में पूछा तो मालुम हुआ कि वो नेहा दीदी के परिवार से है। 


वैभव और मैं कब बहुत अच्छे दोस्त बन गए पता ही ना चला। हमारा साथ घर के पीछे बने मंदिर में जाकर नलके से पानी लाना मानो कोई बहाना सा था साथ समय बीताने का।


ये वक़्त मानो भाग रहा था और शादी का दिन आ चुका था। ढोल नगाडे़ संग बारात निकलने को तैयार थी। जब गाडी़ का horn सुनकर बाहर गई तो देखा वैभव मुझे ले जाने के लिए गाड़ी के पास खडा़ था। 


उसे उस blue shirt में देखकर उससे नजरें हटी ना थी कि अचानक उसने करीब आकर कहा -

"आज तुम बहुत अलग लग रही हो रिया और ये लहंगा तुमपे बहुत सुंदर लग रहा है।"


शायद यही सुनने के लिए मैंने पार्लर में इतना time लगाया था। मन में खुशी की लहर सी दौड़ गई थी।


आखिर कार शादी की रस्में ख़त्म हुई। अगले दिन जब रवाना होने लगी तो पीछे से आवाज आई- "Bye रिया"

मैंने मुड़कर देखा तो वैभव बाहर खडा़ था। बस एक चीज मन में थी जल्द मिलने की।


उदयपुर का रास्ता बहुत लंबा था मगर पुरे सफर में एक अलग सी खुशी थी फिर मिलने की।


वैभव और मैं दोबारा मिले। हम साथ घुमने फिरने जाते थे और हर रात उसे शतरंज की बाजी में हराकर पूरे घर में उसकी हार का ढिंढोरा पीटना मुझे बेहद पसंद था।


वैभव और दीदी जब घर जाने लगे तो मानों अजीब सी उदासी सी छा गई। मैं अपनी भावनाओं पर काबू ना कर सकी और दीदी के गले लग गई क्योंकि अगली मुलाकात का ना तो उनहें अंदाज़ा था और ना ही मुझे। 


"मैं कोई दूसरे गृह से नहीं आया यहाँ, मुझसे नहीं मिलेगी ?" - हंसते हुए वैभव ने कहा।


"ऐसी बात नहीं है" - मैंने शरमाते हुए कहा और कहकर उसके गले लग गई। 


पहली बार मैं उसके इतने करीब थी और उसे छोड़ने को दिल ना किया।


मन ही मन में मैं उसे पसंद करने लगी थी। 


New year पर सबको विश करने लगी की अचानक एक new no से message आया वो था वैभव का ।

unexpected things are always good 


ज़िंदगी में अलग सा रंग घुलने लगा था की एक अनहोनी दरवाज़े पर दस्तक दिए खड़ी थी। वो दो परिवार जिनके आपसी सम्ब्न्ध बेहद अच्छे थे एक छोटी सी बहस पर अलग हो गए । नेहा दीदी और वैभव के परिवार में झगड़ा हुआ। 


परिवारों की लड़ाई में बच्चे घुन की तरह पिस जाते हैं और यही हमारे साथ हुआ। 

ना चाहते हुए भी ठोस बनकर मुझे वैभव से बात करना बंद करना पड़ा।


 "मेरे दिल में आज भी वो आस है, 

तेरे प्यार की मन में आज भी प्यास है" 


बस अब ये शायरियाँ थी जो मुझे बयान करती थी। 


College का दूसरा साल था, चंडीगढ़ की हरियाली और मौसम हर वक़्त उसकी याद दिलाते थे। भले ही हम बात नहीं करते थे पर दिल आज भी उसके नाम से तेज़ धड़कता था।

परिवार की एक शादी में मुझे एक लड़के ने बेहद परेशान किया जिससे तंग आकर मैंने उसे झूठ कहा की मैं और वैभव साथ हैं। 


इसी मौके पर मेरी वैभव से बात हुई और मैंने उसे इस बारे में बताया। 


" हम दोनों साथ हैं, तुमने मुझे बताया नहीं रिया" - हँसते हुए वैभव ने कहा।


मेरे पास हँसी और शर्म के अलावा बोलने को कुछ ना था।


" चलो मैं सम्भाल लूँगा " - वैभव ने शांति से कहा।


वैभव बेहद हँसमुख था, हर समय मज़ाक़ करना सबको हँसाना उसे अच्छा लगता था। उसका यही behaviour मुझे पसंद था। उसकी DP देखकर मेरी आँखों की चमक बढ़ जाती थी। 


बातों ही बातों में एक दिन उसने mujhse relationship के बारे में पुछा तो मैंने जो दिल में था कह दिया। 


" I like you यार !तुम्हारे साथ time spend करना मुझे बहुत पसंद है। I really love this smile " - बिना हिचकिचाए मैंने उससे कहा।


वैभव हँसने लगा और बोला की उसने मज़ाक़ में पुछा था। दिल की धड़कने मानों दौड़ लगा रही थी की अचानक उसने एक audio clip भेजा जिसमें उसने कहा- 


" कुछ लोग यार कब अच्छे लगने लग जाते हैं कुछ पता ही नहीं चलता। रिया तुम भी वही हो मेरे लिए। I like that girl जिसे मैंने पहली बार kitchen में देखा था। बस हमेशा डरता था की ये प्यारी सी दोस्ती खो ना दूँ।तुम बहुत मस्त हो यार। बस यही है जो कहना है।"


इस दिन का मुझे पिछले पाँच साल से इंतज़ार था और ख़ुशी तो जैसे आसमान छूने लगी थी।


मैं उससे मिलने वाली थी और चेहरे की रौनक़ बढ़ने लगी थी। 

इंतज़ार में रात भर नींद ना आयी और पाँव ज़मीन पर बिलकुल ना थे। दस बजे उठने वाली लड़की उस दिन पाँच बजे उठकर तैयार हो गयी और junction पर उसका इंतज़ार करने लगी। 

उसे देखने को आँखे बेताब थी। ट्रेन के पहिए धीरे होने लगे और मेरे दिल की धड़कन तेज़। 

उसे इधर उधर देखते वक़्त वैभव तेज़ी से मेरी तरफ़ आया और मुझे कसके गले लगा लिया। हम दोनों अपनी ख़ुशी में इस तरह मशगूल थे की ये भी ना देखा की आस पास इतने लोग हमें देखने लगे थे। 


बारिश ने इस मुलाक़ात में चार चाँद लगा दिए थे। मैंने उसे एक diary दी जिसपर लिखा था - " you are the happy ending to my story"


वैभव को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाकर मैंने एक चीज़ सिखी की हम जैसे हैं अच्छे हैं। 


 वैभव ने मुझे हमेशा पढ़ने के लिए encourage किया और कभी हमारे रिश्ते को पढ़ाई के बीच नहीं आने दिया जोकि मैंने आजकल बहुत देखा है। 


Mid exams के बाद वैभव से मिलने का मन था तो मैंने उससे मिलने का पुछा।

जवाब मुझे अगले दिन सुबह मिला जब उसने चंडीगढ़ पहुँच के मुझे junction पर आने को कहा। इस तरह आकर उसने मेरी ख़ुशी बेहद बढ़ा दी थी। 


एक पूरा दिन कमरे में बातें करते करते निकाल दिया था। तकिये से एक दूसरे को मारने लगे की एक तकिया मुझे इतनी ज़ोर से लगा था की मैं पलंग से नीचे गिर गई। मैं और वैभव दोनों ज़मीन पर लोट पोट होकर हँसने लगे की उसने मुझे कसके गले लगा लिया।


उसके दिल की धड़कन तक मुझे महसूस होने लगी थी। उसने नज़दीक आकर धीरे से मुझसे कहा -" I Love You" जिसे सुनकर मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और बस उस पल को महसूस किया। उसकी साँसों की आहत महसूस हुई जब मेरे लब उसके लबों की करवट में कहीं गुम से थे।

और मैंने पहली बार उसे " I love you " कहा।


 " चलो आज कह ही देते हैं, की तुमसे प्यार करते हैं,

  इन बेगानों की महफ़िल में, तुम्हें खोने से डरते हैं "


हमारी सोच ये कहती थी की प्यार जताने के लिए sex ज़रूरी नहीं होता, care करना, respect करना, बातें करना ये सब इससे ज़रूरी है। और छोटे छोटे पल जो हमने साथ बिताए थे। 


   " इस तन को छूना ज़रूरी नहीं, 

    इस मन को छूना ज़रूरी है "। 


कमरे में जलती हुई मोमबत्ती , ये शांति भरा पल जिसमें सिर्फ़ सुकून था, और वो dance था जो हम दोंनो को ही नहीं आता था।


हम दोनों same caste से थे जो की हमारी society में एक शादी के लिए बेहद ज़रूरी होता है और मेरे परिवार में सब वैभव को जानते भी थे। सुनने में लगता था की हमारे साथ सब सही था पर कोई भी रास्ता इतना आसान नहीं होता। 


वो लडाई जो पहले ही पनप चुकी थी अब और ज़्यादा बढ़ गयी थी जिसका सही होना नामुमकिन सा था। 


मैं और मेरे बड़े भैया हमेशा एक दूसरे को अपनी हर बात बताया करते थे तो मैंने वैभव के बारे में उनसे पुछना सही समझा। 


 मैंने हिम्मत से बड़े भाई से अपनी बात कही और उन्होंने मेरी हर बात ध्यान से सुनी और समझी। मुझे कहीं ना कहीं आस थी की वो हाँ कर देंगे।


" वैभव एक अच्छा लड़का है, उससे मुझे कोई दिक़्क़त नहीं पर जिस परिवार से हमारी कोई बात ही नहीं होती उस परिवार का हिस्सा हम तुझे कैसे बना सकते हैं। भले ही तुम दोनों कल अपने पाँव पर खड़े हो जाओ पर परिवार वही रहेगा और रिश्ते भी।ये possible नहीं है।" - भैया ने कहा.


ये होने का डर तो हमेशा से मन में था मगर फिर भी एक आस थी जो की इन शब्दों के साथ ख़त्म हो गयी।


अब सिर्फ़ आँसु थे जिनमे वैभव की वो कोशिश थी जिसमें उसने अपने परिवार से दूर जाकर पढ़कर कुछ बनने की सोची ताकी हम साथ हो सकें।


मैंने वैभव को इस बारे में बताया और उस रात फ़ोन पर सिर्फ़ सन्नाटा था। वो मस्ती वो मज़ाक़ वो हँसी सब धुँधला सा पड़ गया। सब कुछ बिखर सा गया और वैभव की रोने की आवाज़ ने मुझे निशब्द कर दिया।


एक तरफ़ परिवार था तो दूसरी तरफ़ छह साल का इंतज़ार। परिवार के लिए अपने प्यार को छोड़ देने के इस फ़ैसले ने मुझे चुर चुर कर दिया था। 


वैभव को मुझे एक तौफा देना था तो हम वही उसी junction पर मिले apni यादों के साथ। ये मुलाक़ात आख़िरी मुलाक़ात थी ये सोच कर दिल बैठा जा रहा था। वैभव ने मुझे एक diary दी जिसपर लिखा था - " ONLY YOU "


" चाहे कुछ हो या ना हो, मेरे लिए हमेशा तुम ही थे यार और रहोगे, मैं उन यादों को ख़ुद से अलग नहीं कर सकता। मुझे बहुत अच्छा लगा की तुमने हमारे रिश्ते के लिए एक कोशिश की वरना बहुत से लोग वक़्त बिताकर साथ छोड़ देते हैं। मैं बहुत lucky हुँ की मेरे साथ तुम थे। और तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता, ना आज और ना ही कल। " - वैभव ने वो diary देते हुए कहा। 


उसकी आवाज़ में वो दर्द साफ़ झलक रहा था। और ये सुन कर मैं ख़ुद को रोक ना पाई और रोते बिलखते बस एक सवाल पुछा - " क्यूँ ! ऐसा क्यूँ होता है ? "


 " ऐसा ज़रूरी नहीं हमें life में सब कुछ मिले,, बस reality को accept करना पड़ेगा and i know की तुम बहुत strong हो " -वैभव ख़ुद को सम्भालते हुए मुझे समझाने लगा। 


" चलो अब मुझे एक गाना गाकर सुनाओ please, फिर क्या पता कब मौक़ा मिलेगा " - उसने हँसते हुए कहा।


मैं गाना गाने लगी थी की उसने मेरा हाथ पकड़कर मुझसे एक वादा करने को कहा। 


" यार ! वो time भी आएगा जब हम बूढ़े होंगे, मेरे उस time में मैं तुम्हें देखना चाहता हुँ। मैं तो तब भी smart लागूँगा हा! हा! हा! मगर तुम तुम्हारे fifties में कैसे लगोगे i want to see। इसीलिए please मुझसे एक बार तो मिल ही लेना यार। " - उसने हँसते हुए कहा .


मैंने उससे " हाँ " कह दिया और उसके गले लग गई। 


जाते समय मैंने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा क्यूँकि अगर मैं ऐसा करती तो मैं कमज़ोर पड़ जाती।


    " पल पल की बात है,

   के अब पल पल में बात ना होगी"   

      रात तो होगी,

    पर नींदों भरी रात ना होगी "।


हर रात वैभव का ख़्याल मन में था। फ़ोन की gallery में नजाने कितनी खट्टी मिट्ठि यादें थी। ये यादें चेहरे पर मुस्कान लाती थी पर आँसु याद दिला देते थे की सब टूटे हुए सपने है। 

हम दोनों अपनी carrier में busy थे की वैभव ने विदेश जाने का फ़ैसला किया। 


" मैं अमेरिका जा रहा हुँ हमेशा के लिए। तो सोचा तुझसे best wishes लेलूँ। " - फ़ोन पर वैभव ने कहा। 


" all the best यार " - मैंने सोचते हुए कहा।


"अगर busy नहीं हो तो, बाहर जाने से पहले आख़िरी बार तुमसे मिलना था, मिलें? "- वैभव ने पूछा। 


" हाँ ! क्यूँ नहीं " -मैंने कहा। 


उसका हमेशा के लिए जाने का सुनकर मेरी सुध बुध खो सी गई थी।


सोचा ख़ुशी ख़ुशी उसे भेजती हूँ इसीलिए जैसे पहली बार जल्दी उठकर तैयार होकर गई वैसे ही जाने का मन बनाया। 


वैभव उसी station पर खड़ा इंतज़ार कर रहा था और मैं निकलने लगी थी की क़िस्मत को कुछ और मंज़ूर था। मुझे फ़ोन आया और पता चला की मेरी दोस्त hospital में है उसका accident हो गया। मैं तुरन्त hospital के लिए रवाना हो गयी।


वैभव junction पर शाम तक खड़ा था इस इंतज़ार में की मैं ज़रूर आऊँगी। 


" मैं नहीं आपाऊँगी sorry यार" - मैंने उससे कहा और उसे सब कुछ बताया।


"जो हुआ सब सही हो जाएगा, तुम अपनी दोस्त का ख़याल रखना और अपना भी"- उसने कहा 


"हाँ" - मैंने रोते हुए कहा।


" रो मत यार, tension मत ले सब सही हो जाएगा, और हाँ मैं कल सुबह जा रहा हुँ और मैं हमेशा तेरे साथ हुँ, तेरा जब भी मन हो बात कर लेना। i love you ध्यान रखना अपना" - उसने शांति से कहा।


मैंने बस इतना कहा -

"ध्यान रखना अपना,bye"


वैभव के साथ मेरे सपने,वो ख़ुशी सब कहीं दूर चला गया था। 


वो इंतज़ार जो बहुत मुश्किल से पुरा हुआ था, अब उम्र भर का इंतज़ार बन गया था। 


  " वो हसीन पल आज बस यादें हैं,

  और वो इंतज़ार अब सिर्फ़ इंतज़ार है"


मुझे ये तो नहीं पता की हम कभी मिलेंगे या नहीं पर एक दूसरे को 50s में देखने की आरज़ू दिल में हमेशा रहेगी और इस वादे को पूरा करने की कोशिश ज़रूर करेगी तुम्हारी रिया। 


  " तुझसे किए वो वादे अधूरे रह गये,

   कुछ पन्ने इस कहानी के कोरे रह गये।" 


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