चर्चा: मास्टर&मार्गारीटा 26.1

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अन्तिम संस्कार

यह अध्याय बेहद दिलचस्प है। कथानक इस तरह आगे बढ़त है मानो कोई जासूसी उपन्यास , कोई आपराधिक कथा पढ़ रहे हों पाठकों की उत्सुकता हर पल बढ़ती जाती है।

अध्याय को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है:

अफ्रानी जूडा की हत्या की पृष्ठभूमि तैयार करता है

जूडा की हत्या से पहले और बाद में पिलात की मनोदशा 

जूडा की हत्या किस प्रकार की जाती है

जूडा की मृत्यु से संबंधित स्पष्टीकरण

येशुआ का अंतिम संस्कार

पिलात की लेवी मैथ्यू से मुलाक़ात।

अध्याय आरम्भ होता है पिलात की बेचैनी से। वह परेशान है, वह डर हुआ है।

“शायद इस धुँधलके के ही कारण न्यायाधीश का बाह्य रूप परिवर्तित हो गया। मानो वह देखते ही देखते बूढ़ा हो गया, उसकी कमर झुक गई। इसके साथ ही वह चिड़चिड़ा और उद्विग्न हो गया। एक बार उसने नज़र इधर-उधर दौड़ाई और न जाने क्यों उस खाली कुर्सी पर नज़र डालकर, जिसकी पीठ पर उसका कोट पड़ा था, वह सिहर उठा। त्यौहार की रात निकट आ रही थी, संध्या-छायाएँ अपना खेल खेल रही थीं, और शायद थके हुए न्यायाधीश को यह आभास हुआ कि कोई उस खाली कुर्सी पर बैठा है। डरते-डरते कोट को झटककर न्यायाधीश ने उसे वापस वहीं डाल दिया और बाल्कनी पर दौड़ने लगा कभी वह हाथ मलता, कभी जाम हाथ में लेता, कभी वह रुक जाता और बेमतलब फर्श के संगमरमर को देखने लगता, मानो उसमें कोई लिखावट पढ़ना चाहता हो।

आज दिन में दूसरी बार उसे निराशा का दौरा पड़ा था। अपनी कनपटी को सहलाते हुए, जिसमें सुबह की यमयातना की भोंथरी-सी, दर्द भरी याद थी, न्यायाधीश यह समझने की कोशिश कर रहा था कि इस निराशा का कारण क्या है। वह शीघ्र ही समझ गया, मगर अपने आपको धोखा देता रहा। उसे समझ में आ गया था कि आज दिन में वह कुछ ऐसी चीज़ खो चुका है, जिसे वापस नहीं पाया जा सकता और अब वह इस गलती को कुछ ओछी, छोटी, विलम्बित हरकतों से कुछ हद तक सुधारना चाहता था। न्यायाधीश अपने आपको यह समझाते हुए धोखे में रख रहा था कि शाम की उसकी ये हरकतें उतनी ही महत्त्वपूर्ण हैं, जितनी कि सुबह के मृत्युदण्ड की घोषणा। मगर वह इसमें सफल नहीं हो रहा था।”

बुल्गाकोव बार बार इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पिलात को इस बात का एहसास है कि येशुआ को मृत्युदण्ड देकर उसने महान भूल कर दी है और इस भूल को सुधारने के लिए ही वह जूडा की हत्या करने का हुक्म दे रहा है।

उसने सोने की कोशिश की मगर सपने में देखा कि वह चाँद वाले रास्ते पर येशुआ के साथ चल रहा है। वह येशुआ को इस बात का यक़ीन दिलाने की कोशिश कर रहा है कि वह कायर नहीं है।“ ।।।जब देव घाटी में मदमस्त जर्मनों ने विशालकाय क्रिसोबोय को लगभग टुकड़े-टुकड़े कर दिया था, तब जूडिया के वर्तमान न्यायाधीश और घुड़सवार टुकड़ी के भूतपूर्व प्रमुख ने कायरता नहीं दिखाई थी।  मुझ पर दया करो, दार्शनिक! क्या तुम, अपनी बुद्धिमत्ता से यह नहीं समझ सकते, कि सम्राट के विरुद्ध अपराध करने वाले व्यक्ति के कारण, जूडिया का न्यायाधीश अपनी नौकरी चौपट कर देता ?

 “हाँ – हाँ,” नींद में ही पिलात कराहते और सिसकियाँ लेते हुए बोला। ज़ाहिर है, चौपट कर देता। दिन में शायद वह यह करता नहीं, मगर अब रात में, सब कुछ छोड़छाड़ कर, वह नौकरी चौपट करने की बात पर उतारू था, वह सब कुछ करने को तैयार था, जिससे इस सम्पूर्ण निरपराध व्यक्ति को, इस सिरफिरे दार्शनिक और चिकित्सक को मृत्यु से बचा सके 

“अब हम हमेशा साथ-साथ रहेंगे,” सपने में उस घुमक्कड़ दार्शनिक ने उससे कहा। न जाने कैसे वह सुनहरे भाले वाले घुड़सवार के रास्ते में खड़ा था। “यदि एक है तो इसका मतलब है कि दूसरा भी वहीं है! मुझे याद करेंगे तो फ़ौरन तुम्हें भी याद करेंगे। मुझे लावारिस के, अनजान माता-पिता की संतान के रूप में, और तुम्हें – भविष्यवेत्ता राजा और चक्की वाले की पुत्री, सुन्दरी पिला के पुत्र के रूप में।

चलिए, देखते हैं कि पिलात के पास से जाने के बाद अफ्रानी ने क्या क्या किया:

बुल्गाकोव अफ्रानी की गतिविधियों का बड़ा स्पष्ट विवरण देते हैं। जैसे कोई कॉमेंट्री हो, कोई संवाद नहीं, कोई अनावश्यक शब्द नहीं।

इस समय न्यायाधीश का मेहमान काफी व्यस्त था। बाल्कनी के सामने वाले उद्यान की ऊपरी मंज़िल से नीचे उतरकर वह एक और छत पर आया, दाईं ओर मुड़कर उन छावनियों की ओर मुड़ गया जो महल की सीमा के अन्दर थीं। इन्हीं छावनियों में वे दो टुकड़ियाँ थीं, जो न्यायाधीश के साथ त्यौहार के अवसर पर येरूशलम आई थीं और थी न्यायाधीश की वह गुप्त टुकड़ी जिसका प्रमुख यह अतिथि था। अतिथि ने छावनी में दस मिनट से कुछ कम समय बिताया। इन दस मिनटों के पश्चात् महल की छावनियों से तीन गाड़ियाँ निकलीं, जिन पर खाइयाँ खोदने के औज़ार और पानी की मशकें रखी हुई थीं। इन गाड़ियों के साथ भूरे रंग के ओवरकोट पहने पन्द्रह व्यक्ति घोड़ों पर चल रहे थे। उनकी निगरानी में ये गाड़ियाँ महल के पिछले द्वार से निकलीं और पश्चिम की ओर चल पड़ीं। शहर के परकोटे की दीवार में बने द्वार से बाहर निकलकर पगडंडी पर होती हुई पहले बेथलेहेम जाने वाले रास्ते पर कुछ देर चलीं और फिर उत्तर की ओर मुड़ गईं। फिर खेव्रोन्स्की चौराहे तक आकर याफा वाले रास्ते पर मुड़ गईं, जिस पर दिन में अभियुक्तों के साथ जुलूस जा रहा था।

इस समय तक अँधेरा हो चुका था और आसमान में चाँद गाड़ियों के प्रस्थान करने के कुछ देर बाद ही महल की सीमा से घोड़े पर सवार होकर न्यायाधीश का मेहमान भी निकला। उसने अब काला पुराना चोगा पहन रखा था। मेहमान शहर से बाहर न जाकर शहर के अन्दर गया। कुछ देर बाद उसे अन्तोनियो की मीनार के निकट देखा गया, जो उत्तर की ओर, मन्दिर के काफी निकट थी। इस मीनार में भी मेहमान कुछ ही देर रुका, फिर उसके पदचिह्न शहर के निचले भाग की तंग, टेढ़ी-मेढ़ी, भूलभुलैया गलियों में दिखाई दिए। यहाँ तक मेहमान टट्टू पर सवार होकर आया। शहर से भली-भाँति परिचित मेहमान ने उस गली को ढूँढ़ निकाला जिसकी उसे ज़रूरत थी। उसका नाम ‘ग्रीक गली’ था, क्योंकि यहाँ कुछ ग्रीक लोगों की दुकानें थीं, जिनमें एक दुकान वह भी थी, जहाँ कालीन बेचे जाते थे। इसी दुकान के सामने उसने टट्टू रोका, उतरकर उसे सामने के दरवाज़े की एक गोल कड़ी से बाँध दिया। दुकान बन्द हो चुकी थी। मेहमान उस दरवाज़े में आ गया, जो दुकान के प्रवेश द्वार की बगल में था और एक छोटे-से चौरस आँगन में आ गया, जिसमें एक सराय थी। आँगन के कोने में मुड़कर, मेहमान एक मकान की पत्थर से बनी छत पर आ गया, जिस पर सदाबहार की बेल चढ़ी थी। उसने इधर-उधर देखा। घर और सराय में अँधेरा था। अभी तक रोशनी नहीं की गई थी। मेहमान ने हौले से पुकारा, “नीज़ा !"

इस पुकार के जवाब में दरवाज़ा चरमराया और शाम के धुँधलके में एक बेपरदा तरुणी छत पर आई। वह छत की मुँडॆर पर झुककर उत्सुकतावश देखने लगी कि कौन आया है। आगंतुक को पहचानकर वह उसके स्वागत में मुस्कुराई। सिर झुकाकर और हाथ हिलाकर उसने उसका अभिवादन किया। “तुम अकेली हो?” अफ्रानी ने धीरे से ग्रीक में पूछा।

 “अकेली हूँ,” छत पर खड़ी औरत फुसफुसाई, “पति सुबह केसारिया चला गया।” तरुणी ने दरवाज़े की ओर नज़र दौड़ाते हुए, फुसफुसाहट से आगे कहा, “मगर नौकरानी है घर पर।” उसने इशारा किया, जिसका मतलब था – ‘अन्दर आओ’अफ्रानी इधर-उधर देखकर पत्थर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। इसके बाद वह उस तरुणी के साथ घर के अन्दर छिप गया।

इस तरुणी के पास अफ्रानी कुछ ही देर को रुका – पाँच मिनट से भी कम। इसके बाद उसने छत से उतरकर टोपी आँखों पर और नीचे सरका ली और सड़क पर निकल आया। इस समय तक घरों में रोशनियाँ जल उठी थीं। त्यौहार के लिए आई भीड़ अभी भी थी और आने-जाने वालों और घोड़ों पर सवार लोगों की रेलमपेल में अफ्रानी अपने टट्टू पर बैठा खो गया। आगे वह कहाँ गया, किसी को पता नहीं।

नीज़ा वस्त्र बदलती है और बुरक़ा पहनकर भीड़ भाड़ वाली सड़क पर आती है। फिर वह चल पड़ती है।

इसी समय आड़ी-तिरछी होते हुए तालाब की ओर जाने वाली एक और गली के एक भद्दे-से मकान के दरावाज़े से एक नौजवान निकला। मकान का पिछवाड़ा इस गली में खुलता था और खिड़कियाँ खुलती थीं आँगन में। नौजवान की दाढ़ी करीने से कटी थी। कन्धों तक आती सफेद टोपी, नया नीला, कौड़ियाँ टँका चोगा और नए चरमराते जूते पहन रखे थे उसने। तोते जैसी नाक वाला यह खूबसूरत नौजवान त्यौहार की खुशी में तैयार हुआ था। वह आगे जाने वालों को पीछे छोड़ते हुए जल्दी-जल्दी बेधड़क जा रहा था, जो त्यौहार के लिए घर लौटने की जल्दी में थे। वह देखता हुआ चल रहा था कि कैसे एक के बाद एक खिड़कियों में रोशनी होती जा रही है। नौजवान बाज़ार से धर्मगुरु कैफ के महल को जाने वाले रास्ते पर चल रहा था जो मन्दिर वाले टीले केकुछ ही देर बाद वह कैफ के महल के आँगन में प्रवेश करता देखा गया। कुछ और देर बाद उसे देखा गया इस आँगन से बाहर आते।                                                   

उस महल से आने के बाद, जिसमें झाड़फानूस, आकाशदीप जल रहे थे, और त्यौहार की गहमागहमी चल रही थी, यह नौजवान और भी बेधड़क, निडर और खुशी-खुशी वापस निचले शहर को लौट रहा था। उस कोने पर जहाँ यह सड़क बाज़ार के चौक से मिलती थी, बुर्का पहनी, फुदकती चाल से चलती एक औरत ने, उस रेलपेल के बीच उसे पीछे छोड़ दिया। इस खूबसूरत नौजवान के निकट से गुज़रते हुए उसने अपने बुर्के का नकाब क्षण भर के लिए ऊपर उठाकर इस नौजवान को आँखों से इशारा किया, मगर अपनी चाल धीमी नहीं की, बल्कि और तेज़ कर दी, मानो उससे भागकर छिप जाना चाहती हो, जिसे उसने पीछे छोड़ दिया। नौजवान ने इस औरत को न सिर्फ देखा, बल्कि पहचान भी लिया, और पहचान कर वह काँपते हुए रुक गया और बदहवास होकर उसे जाते देखता रहा। मगर तभी वह सँभलकर उसे पकड़ने दौड़ा। हाथों में सुराही लेकर जाते हुए एक राही से वह टकराया लेकिन फौरन ही लपककर वह उस महिला के निकट पहुँच गया और हाँफते हुए गहरी साँसें लेते परेशान स्वर में उसने पुकारा, “नीज़ा !"

नीज़ा एक शादी शुदा औरत है जिससे जूडा प्यार करता है। वे उसके पति से छुप छुपके मिला करते हैं।नीज़ा जूडा से कहती है कि वह तेलियों वाले मोहल्ले में आए:

 “तेलियों वाले मोहल्ले में चलो,” नीज़ा ने नकाब चेहरे पर डालते हुए और किसी आदमी से बचने के लिए मुड़ते हुए कहा, जो बाल्टी लेकर वहाँ आया था, “केद्रोन के पीछे, गेफसिमान में। समझ गए? “हाँ, हाँ, हाँ।”

 “मैं आगे चलती हूँ,” नीज़ा आगे बोली, “मगर तुम मेरे पीछे-पीछे मत आओ, मुझसे दूर रहो। मैं आगे जाऊँगी। जब झरना पार करोगे। तुम्हें मालूम है गुफा कहाँ है?” “मालूम है, मालूम है।”

 “तेलियों के कोल्हू की बगल से ऊपर की ओर जाकर गुफा की ओर मुड़ जाना। मैं वहीं रहूँगी। मगर इस समय मेरे पीछे मत आना, थोड़ा धीरज रखो, यहाँ कुछ देर रुको।” इतना कहकर नीज़ा उस गली से निकलकर यूँ चली गई जैसे उसने जूडा से बात ही न की हो।


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