Rajeev Upadhyay

Comedy

3  

Rajeev Upadhyay

Comedy

चोलबे ना

चोलबे ना

3 mins
220


चच्चा खीस से एकमुस्त लाल-पीला हो भुनभुनाए जा रहे थे मगर बोल कुछ भी नहीं रहे थे। मतलब एकदम चुप्प! बहुत देर तक उनका भ्रमर गान सुनने के बाद जब मेरे अन्दर का कीड़ा कुलबुलाने लगा। अन्त में वो अद्भुत परन्तु सुदर्शन कीड़ा थककर बाहर निकल ही पड़ा।


‘चच्चा! कुछ बोलोगे भी कि बस गाते ही रहोगे? मेरे कान में शहनाई बजने लगी है, पकड़कर शादी करा दूँगा आपकी अब!’

चच्चा हैरान होकर मेरी तरफ देखने लगे। जब मैंने एक बुद्धिजीवी की तरह प्रश्नात्मक मुद्रा में उनकी ओर देखा तो वो पूछे

‘मतलब तुमने सुन ही लिया जो मैं बोल रहा था?’

मैंने वापसी की बस पकड़कर बोला, ‘आपकी चीख सुनाई नहीं दी, बस सूँघा हूँ! अब बोल भी दीजिए नहीं तो बदहजमी हो जाएगी’

ये सुनकर उनका दाँत बाहर निपोड़कर कैटवॉक करना ही चाहते थे परन्तु गंभीरता भी कोई चीज है। उसे बनाए रखना पड़ता है। इस महान उद्देश्य के पूर्ति में मग्न होकर जॉनी वॉकर वाली गंभीरता धारणकर चच्चा बोले,

‘अच्छा एक बात बताओ, तुम तो पढ़े-लिखे हो। कपड़े लत्ते से देखने में बुद्धिजीवी जैसे लगते भी हो। बताओ ये भी कोई बात हुई कि अकेले एक प्रधानमंत्री की सुरक्षा पर रोज 1.62 करोड़ रुपये खर्च किया जाए! कितना डरावना और ओप्रेसिव है। ये लोकतंत्र है भाई ऐसे कैसे चलेगा? चोलबे ना!’


उनकी इस बौद्धिक चिन्ता को सुनकर मेरा मन गुड़गुड़ी मारने लगा। बाकी सारी चूल को अन्डरग्राउण्ड कर शान्त एवं अहिंसक भाव से मैंने पूछ मारा जैसे कि बहुत ही चिन्तित हूँ, ‘तो फिर क्या किया जाए?’

वो छूटते ही बोल पड़े जैसे वो चाहते थे कि मैं उनकी राय माँगूँ, ‘कुछ तो करना ही होगा! एक जागरूक व लोकतांत्रिक नागरिक होने के नाते कुछ ना कुछ तो करना ही होगा। बुद्धिजीवी होने के नाते हमारी कुछ तो जिम्मेवारी बनती है!’

उनके अन्दर के बौद्धिक खुदबुदाहट देखकर मेरे अन्दर का बुद्धिजीवी हिरन की तरह कुलाचे मारने लगा।


‘तो फिर चलिए एक धरना पर बैठते हैं कि प्रधानमंत्री की दी गई एनएसजी सुरक्षा के साथ साथ पुलिस और सेना विभाग को सदा के लिए ही बंद कर देते हैं। बताइए चिच्चा लाखों करोड़ रुपये खर्च होते हैं। क्यों खर्चना? आम जनता का पैसा है और आम जनता अपनी सुरक्षा भी कर ही लेगी। पैसा जो है उसके पास!!!’

चच्चा चिड़ियों की तरह चहक उठे और फूलों की तरह मुस्कराकर बोले, ‘ठीक कह रहे हो।’

‘हाँ चच्चा यहाँ सब कुछ यूटोपियन ही तो है।‘

‘हाँ बच्चा ये देश स्वप्न देश बनकर रह गया है।’

यह सुनकर मैं सचमुच ही गहन विचार समुद्री विचरण में चला गया परन्तु तैरना नहीं आता इसलिए जल्दी ही बाहर चला आया,

‘तो चच्चा! जब क्रांति करनी ही है तो क्यों नहीं हर आदमी को स्वतंत्र देश घोषित कर देते हैं? सब आजाद हो जाएंगे। संविधान से, मनुवाद से और हर तरह के विवाद से आजाद हो जाएंगे। ये ज्यादा किरान्तिकारी होगा!! है कि नहीं!! तो लगाएं नारा!! ले के रहेंगे आजादी.....’


चच्चा इतना सुनते ही भड़ककर बिदके घोड़े की तरह निकल लिए।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy