छठीं इंद्रिय

छठीं इंद्रिय

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"अरे ! तू तो बड़ी हो गई है और बहुत खूबसूरत भी ... "

राघव चाचा ने लपक कर उसे गोद में उठा लिया ! .... कुछ अजीब सा लगा था मिंटू को ! जानती है कि पहले भी चाचा उसको ऐसे ही प्यार करते थे, पर उससे क्या हुआ ? अब तो वह अपने को इतना बड़ा मानती है कि उसको बगल में बिठा कर बराबरी से बातें करना चाहिये न कि गोद में उठा कर उछाला जाय !

चाचा इतने दिन बाद मिले हैं न, शायद उनको ये बात पता नहीं होगी ... चलो, कोई बात नहीं .... मिंटू हाथ पैर मार कर नीचे उतर आई।

"चाचा मेरी किताब में लंदन ब्रिज पर कविता है, जब मैं उसे पढ़ती हूँ न, तो सोचती हूँ कि शायद इस समय आप वहीं घूम रहे हों। बताइये न, कैसा दिखाई देता है वो ?"

उत्साह से उसका मन उमगा जा रहा था, कितना कुछ पूछना था उसे उनसे, फिर कल क्लास में सबको बताएगी कि लंदन से उसके जो चाचा आए हैं, वो कितने इम्पाॅर्टेंट आदमी हैं... कितना कुछ बताना भी था उनको, दोस्ती भी करनी थी उनसे, इसी से तो जैसे ही वो घर के बाकी लोगों की बातों से छुट्टी पा जरा सी देर को अकेले हुए, दौड़ी आई थी वह ! नन्हीं सी मिंटू को अपनी बाँहों मे घेर लिया था उन्होंने .... "अरे, आप तो बातें भी खूब करने लगी हैं" "आईसक्रीम खानी है ?" चाचा ने उसके गाल पर अपने होंठ दबा कर चुम्मा लिया तो उनके मुँह की बदबू का एक तेज भभका उसकी नाक में आ घुसा था। अचानक मिंटू का मूड खराब हो गया, लगा, जैसे किसी वन मानुस ने छू लिया हो उसे ! उसने अपनी सारी ताकत लगा कर स्वयं को उनसे आजाद किया और नाक चढ़ा कर बोली...मुझे खाँसी होती है ! मम्मी ने मना किया है !


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