चार दीवारों के बीच
चार दीवारों के बीच
कहते हैं ज़िन्दगी बंद कमरों में खूबसूरत होती है,
पता है क्यों ?
क्योंकि बंद कमरों में जज़्बात खुले होते हैं ,
अलफ़ाज़ सहमे नहीं होते हैं और,
मुश्किलें सुलझी हुई लगती हैं।
ना डर होता है किसी का ना खौफ़
क्योंकि बंद कमरे में सिर्फ हम होते हैं
खुली किताबों की तरह हम होते हैं ,
उड़ते पंखों की तरह अलफ़ाज़ होते हैं ,
बहती नदियों की तरह अश्क़ होते हैं
सीमित नदियों के किनारों के जैसे वक़्त होते हैं
और, असीमित किनारों के जैसे जज़्बात होते हैं।
फिलहाल तो यह सुहाना होता है मगर,
चार दीवारों का साथ लंबा नहीं होता
कहते हैं ,
यहाँ पलों को सिर्फ नाम का याद रखते हैं
जज़्बात तो वहीं छूट जाते हैं ,
उन चार दीवारों के बीच!