बुढ़ापा

बुढ़ापा

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जब से बच्चे बड़े होने लगे हैं 
बुढ़ापे के संकेत मिलने लगे हैं
तब से सिहर उठता है मन मेरा
जाने कैसा निकलेगा मेरा बेटा

बेटी को बोझ समझने लगे हैं जब से
दहेज़ का दानव निगलने लगा है जब से 
कितने आँगन की किलकारी सुनी हुई है 
मरने लगी है बिटिया जब से गर्भ में 

आती है याद बिटिया वो अजन्मी 
अब बुढ़ापे में अक्सर, मुझे देखती है 
अपलक, न आँसू है गिरते न मैं जी पाती 

अब सोचती हूँ अक्सर रातों को में बैठी 

कैसी आयेगी बहू, घर बर्बाद होगा, या हो जाएगा आबाद 
इसी सोच में दिन-रात जलने लगे हैं जब से
खुद को मन के आईना में देखने लगे हैं जब से 
शायद बुढ़ापा आने लगा है तब से...

 


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