कहाँ छुपुं, कहाँ जाऊँ
कहाँ छुपुं, कहाँ जाऊँ
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दफ़्तर, घर, सड़क, मंदिर
हर जगह यह घूमता है,
कोई जहरीला सा कीड़ा
शरीर पर रेंगता है
जब शिकारी नजरों से कोई घूरता है!
जाने क्या हो जाता है इनको हासिल
दिल अंदर तक दहल जाता है,
नजरों की ललक
जहरीली है इस कदर
मन मेरा सिहर जाता है,
कोई खौफ़ न लिहाज इनको
इत्मीनान से घूमता है!
