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फ़रिश्ता

फ़रिश्ता

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आज सड़क किनारे फूटपाथ पर

मैंने एक फ़रिश्ता देखा,

खुद झुलस रही थी 

सूरज की आग में

आँचल की छांव में

कुछ छुपाते देखा,

सारी दुनिया की नजरों से

अंजान हो मगन थी 

दुलारने में अपने लाडले को 

मैंने एक माँ को देखा, 

न घर है न वार है

फिर भी ममता की दौलत

का असीम भंडार है

आज माँ को प्रेम की

दौलत लुटाते हुए देखा,

गरीबी बेबसी देखी 

उसके चेहरे पर

एक नूर देखा,

छोटा सा बिछौना  

मैली  सी चादर,

यही थी संपत्ति उसकी

फिर भी उसके चेहरे पर

अद्भुत सुकून देखा


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