बुद्धिपुर या बुद्धूपुर ??
बुद्धिपुर या बुद्धूपुर ??
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कुछ दो सौ साल पूर्व की बात है, कमलेश्वर गांव में हरीगंगा नाम का एक आदमी रहता था। वह बहुत परिश्रमी था। हर दिन वह जंगल में जाता और पेड़ काटता जिससे उसकी और उसके बीवी को रोजी रोटी मिलती। कुछ सालों बाद उनकी एक बेटी हुई। लेकिन बस उनका एक ही दुख था कि बेटी थोड़ी दिमाग की ढीली थी। कुछ साल बीत गए और उनकी बेटी १० की हो चुकी थी। हरीगंगा का वही लकड़हारे का ही काम था। हर दिन हरीगंगा की पत्नी सुशीला उसके लिए खाना ले जाती। वह खाना खाता और सुशीला को बाज़ार जाने के लिए अपने जेब से कुछ पैसे देता।
लेकिन एक दिन सुशीला के घर में उसकी पड़ोसन की एक दोस्त आई। उस समय हरीगंगा काम पे गया था। उसकी दोस्त सुशीला को अपने घर जाने के लिए ज़िद कर रही थी। अब सुशीला भी कुछ कर नहीं सकती। अपने घर आई है तो उसे जाना तो होगा ना। इसलिए खाना तैयार करके लगभग आठ बजे उसने अपने बेटी को खाना देकर हरीगंगा के पास भेजा और वह पड़ोसन के घर चल पड़ी।
घर से हरीगंगा के पास जंगल में चल कर जाने के लिए करीब एक घंटे का रास्ता तय करना पड़ता था। कुछ देर चलने के बाद सुशीला की बेटी मिनी पेड़ के नीचे बैठ गई और आराम करने लगी। वह खुद से बोली,"में बड़ी हो जाऊंगी, मेरी शादी की उम्र हो जाएगी और मम्मी-पापा मेरी शादी करवा देंगे। दो साल बाद हमारा एक बेटा होगा। वह बहुत शैतान होगा और एक दिन शैतानी करके वह सीढ़ियों से गिर जाएगा। ग़रीबी के कारण उसका ठीक से इलाज नहीं हो पाएगा और उसका मृत्यु हो जाएगा।" जैसे ही यह बात उसके मुंह से निकली, वह रोने लगीं। वह इस तरह रोने लगी जैसे किसी ने उसके ऊपर एक चट्टान गिरा दिया हो लेकिन अभी भी उसमें जान बची हुई है।
करीब ११ बज गए और सुशीला अपने घर आई। अपनी बेटी को न आते देख वह घबरा गई। वह सोचने लगी,"कहीं मेरी बेटी मुसीबत में तो नहीं है। वैसे भी वह थोड़ी कम दिमाग की है। अगर किसी अंजान आदमी के साथ चली जाए तो मुश्किलों का ठिकाना नहीं रहेगा।" यही सोचकर वह निकाल पड़ी अपनी बेटी को ढूंढने। कुछ देर चलने के बाद अचानक उसकी नजर में उसकी रोती हुई बेटी आई। वह बेटी के पास गई और बोली,"क्या हुआ बेटी, तुम रो क्यों रही हो।" बेटी ने सब कुछ खुलकर बताया। मंदबुद्धि माँ यह सुनकर रोने लगी। पता नहीं यह सब क्या गोलमाल चल रहा था। एक तरफ बेचारा हरिगंगा भूखा था और दूसरी तरफ यह बेवकूफ़ औरत और लड़की रो रही थी। हरिगंगा का होश अब ठिकाने पे नहीं रहा। वह अपने घर की तरफ चल पड़ा। उससे तो न चला जा रहा था लेकिन वो भी क्या कर सकता, उस तो घर जाना ही होगा। और थोड़ी देर बाद वह उसी जगह पहुंचा जहाँ उसकी स्त्री और बेटी थी। उसने उन्हें पूछा की आखिर क्या बात है। उसने उनकी बातों पर गौर किया। क्या वो भी रोएगा? नहीं, बिल्कुल नहीं। बल्कि यह सुनकर तो उसके होश ठिकाने पे न रहा। उसने जिंदगी में उनकी तरह बेवकूफ़ एवं मूर्ख कहीं नहीं देखा। क्रोध की वजह से उसका दिमाग ठिकाने पे ना रहा और वह आग - बबूला हो गया। उसने यह ठान लिया कि जब तक उसे उन से भी ज्यादा मूर्ख लोग नहीं मिलेंगे वह घर नहीं लौटेगा।
फिर वह जगह - जगह घूमता रहा लेकिन उसे उनसे ज्यादा मूर्ख कहीं नहीं मिला। ३ महीने बाद वह एक गांव में आ पहुंचा। गांव के प्रवेशद्वार में गांव का सूची दिया हुआ था। सब कुछ पढ़कर उसे पता चला कि गांव का नाम बुद्धिपुर है। वह गांव के अंदर गया। सब कुछ ठीक चल रहा था कि तभी उसने देखा कि सामने भीड़ लगी हुई थी। वहां सोड़ हो रहा था। वह उस भीड़ के एकदम से अंदर गया। उसने देखा कि एक बुढ़िया अंगुठी पहनी हुई थी और एक आदमी जो उस अंगुठी का मालिक था, उस बुढ़िया को बार - बार अंगुठी खोलने का निर्देश से रहा था। लेकिन उस औरत के उंगली में अंगुठी फँस गया था। उस भीड़ में सभी आदमी चिल्ला रहे थे कि उस औरत का उंगली काट दिया जाए। इस तरह अंगुठी निकाल जाएगा। हरिगंगा हैरान रह गया। इस भीड़ - भाड़ में कोई भी उस औरत को कोई सुझाव न देकर उल्टा उंगली काटने को बोल रहा था। आखिर यह कैसी जगह हैं! वह कुछ देर के लिए ठहरा रहा और फिर उसने बोला,"क्या में आपकी कोई मदद कर सकता हूं?"मदद! वो क्या होता हैं? उसका तो जैसे हाल - बेहाल हो गया। लेकिन किसी भी तरह उसने अपने - आप को संभाला और कहा,"इसे छोड़िए, पहले आप अंगूठे को हल्का करे।" उसने निर्देशानुसार अंगूठे को हल्का किया और हरिगंगा ने उंगली में से अंगुठी निकाल ली। फिर वो आगे चल पड़ा। उसे बहुत भूख लगी थी। इस वजह से वह सामने की एक दुकान पे गया। उसने कहा,"एक चाय कितने कि मिलेगी?" दुकानदार ने जवाब दिया,"एक आना की पड़ेगी साहब।" उसने कहा,"ठीक हैं, दे दो।" उसने मजे से चाय का आनंद लिया और उसको डेढ़ आना दे दिया और अपने रास्ते चल पड़ा। तभी दुकानदार ने उसे रोका और कहा,"बाकी का!"उस आदमी ने जवाब दिया,"तुम रख लो।" तुम रख लो मतलब" दुकानदार ने शेर कि तरह दहाड़ते हुए अपनी बात को जारी रखा,"मेरे बाकी के पैसे दो।"हरिगंगा तो हक्का - बक्का रह गया। उसे इतना गुस्सा आया की उसने दुकानदार को पूरे ज़ोर से एक थप्पड़ लगा दिया। बस अब क्या होना बाकी था। वो सामने - सामने और दुकानदार पीछे - पीछे। दुकानदार चिल्ला रहा था,"पकड़ो! पकड़ो! इस चोर को पकड़ो।" वहां उपस्थित सारे लोग उसके पीछे पड़ गए। किसी तरह वह अपनी जान बचाने के लिए दुम - दबाकर भागा। वह बच गया और गांव के बाहर निकाल गया। वह यह सोचते हुए भागा की दुनिया में इतने मूर्ख लोग होते है। मेरे लिए तो घर में रहना ही सुरक्षित हैं। थोड़ी दूर जाकर उसने पीछे गांव की तरफ देखा तो उसकी आँखें खुली - की - खुली रह गयी। प्रवेश द्वार के पास ही एक दीवार में लिखा था,"यह गांव बुद्धिपुर नहीं बुद्धुपुर हैं। गांव में जाओगे तो लौटकर वापिस नहीं आओगे।" वह अपना पूरा जोर लगा के भागने लगा यह सोचकर कि शायद उसी की तरह कोई आया था इस गांव में और उसी के साथ भी ऐसा कुछ हुआ होगा। इस दुनिया में कितने रहस्यमय लोग और चीज हैं जिनका अभी तक दुनिया को पता नहीं है, यह बात उसको ज्ञात हो गया।