ट्रेन का एक- एक डिब्बा देखो कोई बचके ना जाने पाए तभी किसी दूसरी बोगी से कोई औरत निकल के भागने लगी और फिर गोलियों की तड़तड़ाहट.....
मैं समझ गया मौत मेरे सामने खड़ी है इसलिए भागना बेकार है इसलिए मैंने आंखें मूंदकर भगवान का नाम लिया और कहा हे भगवान अब मैं आ रहा हूं।
मैं आंखें मूंदे हुए था तभी खिड़की की तरफ से आवाज आई - हेलो हे भाई( धीमे से )मैंने आँँख खोल कर देखा एक आदमी सांवला सा जींस टी शर्ट पहने हुए मुझे बुला रहा है ।
ब्रज बिहारी - चलो जल्दी भागो ।
मैं जल्दी जल्दी निकलने लगा तभी मुझे अपने बैग का ख्याल आया मैंने अपना बैग उठाया और फिर भागने लगा ।
पीछे से आवाज आई पकड़ो देखो भाग के न जाने पाए तभी आगे से तीन-चार बंदूकधारियों ने हमें घेर लिया और उनमें से एक ने हमारे ऊपर गोली चलाई पर गोली न चली फिर उसने बंदूक उल्टा कर के हमारे ऊपर प्रहार किया चुकिं वह आदमी (ब्रज बिहारी ) आगे था इसलिए मैं उसे धकेल कर आगे हो गया वह चोट मुझको लगी यह देख उसने(ब्रज बिहारी) बंदूकधारी को धकेल कर गिरा दिया और फिर मुझे उठा कर खींच कर भागने लगा और फिर हम झाड़ियों में छिप गए उधर से आवाज आयी देखो यही कही होंगे बचने ना पाएंगे वे दोनों।
हम दोनों छुपे हुए थे फिर आवाज आयी चलो आगे देखते हैं।
बृज बिहारी - तुमने मुझे बचाने के लिए खुद की जान आफत में डाल दी।
मैंने कहा - आत्मा पर पहले से ही बहुत बोझ है और नहीं डाल सकता तुम मुझे बचाने आए और मैं तुम्हें मरने के लिए छोड़ देता ।
वह कुछ ना बोला बस मुस्कुराने लगा
मैंने पूछा आपका नाम क्या है उसने बताया बृज बिहारी ।
मैंने पूछा -तुम कहां रहते हो ?
बृज बिहारी -तुम्हारे साथ ही रहता हूं ।
मैंने पूछा -अच्छा तुम गोरखपुर के रहने वाले हो ! पर मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा ।
बृज बिहारी- पर तुमने मुझे खोजा ही कब ।
ठीक कहते हो मित्र वैसे भी गोरखपुर इतना बड़ा है कि अगर मैंने तुम्हें देखा भी होउंगा तो भी नहीं पहचानुंगा ।
वह कुछ नहीं बोला सिर्फ मुस्कुराने लगा
मैंने कहा- तुम इतनी मुसीबत में भी मुस्कुरा रहे हो ।
बृज बिहारी - जो इंसान मुसीबत में भी खुश रहता है वह अपनी मंजिल जरूर पाता है और फिर मुस्कुराने लगा।
उसकी मुस्कुराहट में जैसे योगियों का तेज हो जैसे सूर्य की रस्में किरणें धरती पर पड़ने से धरती सुनहरी हो जाती हैं वैसे ही उसकी मुस्कान मेरे अंदर के घाव को भर रही थी उसके मुस्कान में एक रहस्य था लग रहा था मानो वह हसँना बंद करेगा और धरती वीरान हो जाएगी मैं उसके बारे में सोच ही रहा था कि उसने कहा आओ चलते हैं वे चले गए और मेरा बैग उठाकर चलने लगा । मैं चुपचाप उसके पीछे पीछे चलता रहा। दो- तीन पगडंडियों से होते हुए हम सड़क पर आ गए।
आगे से एक बस हमारी ओर आ रही थी मैंने बस रोका फिर हम दोनों उसमें चढ़ गए ।
मैंने पूछा फिर मिलोगे उसने कहा अगर चाहो तो जरूर मिलूंगा मैं कुछ कहता इससे पहले टिकट वाला आ गया ।
टिकट वाला -टिकट- टिकट !
मैंने कहा - भैया दो टिकट दे दीजिए ।
टिकट वाला - दो टिकट दुसरा किसके लिए ?
मैंने कहा- हम दो लोग हैं ।
टिकट वाला - दो लोग पर दूसरा कहां है ?
मैंने कहा कि उस कुर्सी पर दिखाई नहीं देता ।
तब तक मैं पीछे मुड़कर देखा मेरी आंखें खुली की खुली रह गई ! उस कुर्सी पर केवल मेरा बैग रखा था । मैंने चारों तरफ देखा वह कहीं नजर नहीं आया । मैंने गाड़ी रुकवानी चाही।
मैंने कहा - भाई साहब गाड़ी रोकिये । मेरे साथ एक और आदमी था वह वही छूट गया ।
तब एक यात्री ने कहा क्यों झूठ बोल रहे हैं भाई साहब आप अकेले थे।
तो मैंने कहा नहीं मेरे साथ एक और आदमी था। वो मेरा बैग लिए था । तब पीछे से किसी ने कहा आप का बैग तो ये है । तब फिर किसी ने कहा- लगता आतंकवादियों ने जो हमला किया है उससे ये घबरा गया तभी ऐसी बातें कर रहा है । तभी पीछे से आवाज़ है अरे उन्होंने भी तो कितनी बर्बरता से हत्या की है एक बच्चे तक को नहीं छोड़ा एक भी आदमी नहीं बचा सब मारे गए । मेरी आंखों से केवल आँसू निकल रहे थे
कंडक्टर ने गाड़ी रोकने से मना कर दिया कहा खतरा है।
मैंने दो टिकट खरीदें एक अपने नाम से एक ब्रज बिहारी के नाम से और उसे ले जाकर अपने घर के मंदिर में रख दिया क्योंकि अब मैं जान चुका था कि ब्रिज बिहारी कौन है ?
- नवीन कुमार