बंदिश
बंदिश
मुझे बंदिशों में रखने की, हिमायत ना किया कर
मैं खुदा नहीं तेरा, इतनी भी मेरी इबादत ना किया कर
हे जाम भरा तेरे सामने तो पी ले
हाथ में लेकर, छोड़ने की उसे हिमाकत ना किया कर।
जिंदगी हे ये चार दिन की, ये भी बीत जायेगी
यूँ हर वक़्त, तू शराफत ना किया कर
अब मुझे अपने हाल पे छोड़ दो
ज़ख्म देकर मरहम लगाने की, इनायत ना किया कर।
वह् मेरी कब्र पर आकर अब कह रहे हैं
घायल उठ जाना, मुझ से ऐसी शरारत ना किया कर।