भूल सुधार
भूल सुधार
"सुनो बहू ! कुंदन व रमा ने अपनी तरफ से तो बहुतेरी कोशिश की थी"
वो तो संजोग से मैं यहीं थी बड़े बेटे के पास वर्ना..."
आज बहुत दिनों के बाद ललिता जी की देवानी मधु अपनी जिठानी के विशेषकर उनके छोटे बेटे की गाथा सुनने आई थीं।
"वर्ना क्या भाभी जी ?" मधु ने आश्चर्य से आँखें फैला कर पूछा।
"अजी ! क्या बताऊँ। बड़े भाई की बात तो रत्ती भर भी न माने है नालायक। बेचारा बड़ा भाई भलाई कर- करके आधा हो गया और भाभी का तो लल्ला जी.. लल्ला जी.. कहते कहते मुंह सूखे है।"
"और एक ये है चंदन कि सातवें आसमान पर पारा रखता है। "
बोलते-बोलते हांफ गईं ललिता जी और बहुत दुखी भी।
उनके पति के देहांत के पश्चात् बड़े बेटे ने और बहू के आने के बाद दोनों ने मिल कर घर को बहुत अच्छे से संभाल लिया था।
जितना गुणी ललिता जी का बड़ा बेटा कुंदन था, उतना ही छोटा बेटा अवगुणों की खान था। एकदम जिद्दी, अशिक्षित व झगड़ालू।
न जाने कहाँ से एक लड़की पसंद कर ली। बाप ठेले पर कबाड़ का काम करता था और माँ मजदूरी।
चलो यहाँ तक भी ठीक। लड़की के विषय में लोगों के विचार कुछ ठीक नहीं थे, साथ ही चंदन की बेरोजगारी के कारण आने वाले एक नये सदस्य के गुज़ारे की सभी को चिन्ता थी।
कुंदन एक तृतीय श्रेणी कर्मचारी था जो कि अपनी तनख्वाह में से बच्चे के स्कूल की फीस के साथ साथ पांच सदस्यों के पूरे परिवार का भरण-पोषण कर रहा था।
परन्तु वह मूढ़ बुद्धि कहाँ मानने वाला।
माँ के संदूक में रखे उनकी बचत के रु 25000/-लेकर एक रात को चंपत ही हो गया।
बेचारे कुंदन की हालत खराब। माँ का रो-रोकर बुरा हाल था।
बदनामी का डर सो अलग।
सब रिश्तेदारों व परिचितों में पता किया। कहीं न मिला। पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट भी लिखा दी गई मगर वह कहीं न मिला।
दस दिन पश्चात्....
शाम का समय... किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी।
अंशु बिटिया ने दरवाज़ा खोला तो सामने चाचू को देखकर खुशी से पुकार उठी_"चाचू आ गए, चाचू आ गए "
यह सुनकर सब दरवाज़े की तरफ दौड़ पड़े।
फटे कपड़ों में बदहवास-सा चंदन अंदर आते ही बड़े भाई कुंदन के पैरों में गिर कर फूट-फूट कर रोने लगा।
कुंदन ने उसे उठा कर गले से लगाया और पलंग पर बैठाया। रमा पानी लेकर आई। चंदन के हाथ- मुंह धुलवाकर भोजन करवाया तत्पश्चात् तसल्ली से सारा हाल जाना।
हुआ यह था कि वह लड़की शातिर थी व इसको पसंद भी नहीं करती थी। चरित्र अच्छा न था। दूसरे दिन विवाह कर लेंगे कहकर किसी अन्य व्यक्ति के साथ खाना व देशी शराब लेकर आई और इसे नशे में धुत्त करके 25000/-रु और घड़ी व मोबाइल ले कर चंपत हो गई। उस दिन के बाद ढूंढ रहा हूँ कहीं नहीं मिल रही। भूख व प्यास से बदहवास हो गया लेकिन यहाँ आने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
"भाई मुझे माफ कर दो। मैं आप सभी का गुनहगार हूँ माँ, भाभी"
"अरे पगले ! सुबह का भूला यदि शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते।"
कुंदन ने छोटे भाई चंदन को प्यार से गले लगाकर कहा।
माँ ललिता जी व भाभी रमा की आँखें खुशी से छलक आईं।
