भारत के वीर
भारत के वीर
दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल...रघुपति राघव राजा राम ।
भारत एक ऐसा देश है जहाँ कभी सोने की चिड़ियाँ का बसेरा हुआ करता था। तब शायद गुलामी का अर्थ मालूम नहीं था। धीरे-धीरे जब गुलामी बढ़ती गई और आजादी की कमी महसूस होने लगी। तब हमारे कई शूरवीर क्रांतिकारीयों ने आजादी की लड़ाई शुरू कर दी थी। इस लड़ाई में कई कुरबानीयाँ देनी पड़ी और बेईमानियाँ सहनी पड़ी। इसमें हिंसा भी उतनी ही थी। तब ऐसा लगता था फिर से भारत आजाद होगा? अगर होगा तो कौन माई का लाल दिलवाएगा आज़ादी? और कितनी जानो की कुर्बानियाँ देनी होंगी ? आज़ादी का सुनहरा सूरज कब आकाश में अपनी लालिमा फैलाएगा ? कौन सा रास्ता आज़ादी की तरफ जाएगा ? और कितना कठिन होगा ये रास्ता? हम इसपर चल पाएंगे भी या नहीं? शायद भारत माता को अपने एक लाल का इंतजार था जो उसकी मर्यादा बचाकर , मान और इज़्ज़त रूपी ताज को माँ के सिर पर सुशोभित करे।
२ अक्टूबर १८६९ को करमचंदजी और पुतलीबाईजी के यहाँ एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ। बचपन से ही सरल और सुसंस्कारी मोहनदास को काफी ज्ञान था। वे जवानी में विलायत पढ़ने भी गए और अँग्रेज़ों का बर्ताव पहले से ही भारतीयों के खिलाफ था। वे हमेशा सहते रहे और चुपचाप देखते रहे। वे जब वापस भारत लौटे तो उनके हृदय में कुछ खटक रहा था। कही न कही मन दुखी था। उनसे भारत की दशा देखी नहीं जा रही थी।
भारत में गरीबी इतनी थी कि कई लोगों के बदन पे कपड़े भी नहीं थे और खाने के लिए कुछ भी नहीं था। "था तो बस एक अंग्रेजों का ज़ुल्म और अत्याचार"। तभी गांधीजी ने दृढ़ निश्चय किया कि जब तक सभी भारतीयों के पास पहनने के लिए कपड़े और खाने के लिए पर्याप्त अनाज नहीं होगा तब तक सूट-बूट और मेवा-मिष्ठान का त्याग। सिर्फ एक धोती और पतली खेस उनका पहनावा बन गया था।
गांधीजी ने आज़ादी के लिए ओर ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाई। शुरुआत में वे अकेले ही थे और बिना हथियार के लड़ाई का आरंभ किया। सत्य और अहिंसा दो ऐसे शास्त्र उनके पास थे जिससे दुश्मन को शांति से परास्त करने का मंसूबा था । गांधीजी कई बार जेल में गए, कई बार उन्होंने अन का त्याग करके उपवास किये।
कठोर पथ पे, दृढ़ निश्चय से चल पड़े थे। कई आंदोलन जीवन में आए, बिना हारे सब पार उतारे। भावुक हृदय, सरल स्वभाव, सेवा के संस्कार, उपकार की निःस्वार्थ भावना, बलिदान की मूरत, एकता के समर्थक, बगैर कितनी ही खासियत एक व्यक्ति में मिल पाना शायद दुर्लभ ही है। यह सभी गुण गांधीजी को "महात्मा" बनाने के लिए काफी थे।
कई क्रांतिकारी गांधीजी से पहले भी और कइयों ने गांधीजी के साथ रहकर लड़ाइयां भी लड़ी । पर गांधीजी ही इन सभी में विरल व्यक्ति थे। शायद उनके गुण और नेतृत्व काफी प्रभावशाली रहे। अगर नेता ही अच्छा और सच्चा हो तो देश का विकास निश्चित है। "कर भला तो हो भला", जैसी कहावतें उनके जीवन का मंत्र थी। कंटीले पथ पर चलना शुरू तो करो, काँटे की चुभन अपने आप चली जाएगी। "हौसला बुलंद हो तो हर मुश्किल, अपने आप आसान हो जाएगी।
अन्याय के सामने लड़ते महात्माजी का जीवन हमें कई तरह की सीख देता हैं।
कभी न थके, कभी न झुके, गर्व से सिर उठा के जीये। हे! पूजनीय पिता , आज के संतानों को (भारतवासियों) आपकी खूब आवश्यकता हैं। कभी न ऐसा लाल जन्मा था, न कोई ऐसा जन्मेगा। वीर पुरुष थे बापू प्यारे, सिद्धांतों के साथ चले थे। छूत-अछूत का भेद मिटा के, अछूतों को 'हरिजन' का नाम दिला के, एकता का पाठ सीखा के, चले गए क्यों 'बापू प्यारे', महात्मा हमारे न्यारे न्यारे!!!!
"राष्ट्र पिता","बापू" और "महात्मा", इतनी गरिमा वाली पदवियाँ एक ही इंसान को!!! कितने भाग्यशाली माता-पिता रहें होंगे, कितनी सौभाग्यशाली पत्नी कस्तूरबा जिन्होंने अपने अंत तक साथ दिया और सबसे ज्यादा भाग्यशाली हम(भारतवासी) जिन्हें इतना प्यारा बापू मिला। धन्य भारत की भूमि जिस पर ऐसे रतन ने जन्म लिया। सारे संसार में डंका बजाने वाले, अंग्रेजों की भारत छोड़ने पर मजबूर करने वाले, देश का नाम रोशन करने वाला , हमें आज़ादी दिलाने वाला, हमारा राष्ट्रपिता, हमारा बापू हम सब के दिल में सदा रहेंगे।
भारत माता को आज़ाद करवा के, भारत की खोई हुई इज्जत वापस दिलाकर, भारत माता की आन, बान और शान ऊंची करके, दिन का चैन और रात का सुकून हमें प्रदान करके ३०जनवरी १९४८ को एक ऐसा सूरज अस्त हुआ जिससे सारा संसार अंधकारमय हो गया।
हे! भारत के वीर! हे शूरवीर !! आपकी अविस्मरणीय शहादत को कोटि-कोटि वंदन!!
" भारतमाता की जय"