बगीचे में धमाका
बगीचे में धमाका
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गोवर्धन पूजा के दिन हमारे गांव में गोबर से तीन गुंबद बनाए जाते थे बीच में एक बड़ा, आजू बाजू में छोटे। फिर पूजा करते थे और छोटे में सिर्फ प्रसाद से मतलब होता था।
जब छोटे थे , तब दीवाली के अगले दिन बिना फूटे पटाखे ढूंढते और उन्हें फिर से फोड़ते कुछ फूट जाते कुछ फुस्स एक चीज करते थे दिया जला कर बिना फूटे पटाखे लाल वाले उन्हें दिए कि लौ के ऊपर मसलते थे तो उनका बारूद झिलमिल करके जलता था और कभी कभी जोर से ऊपर उठता था और हाथ और उंगली जल जाती थी और काली हो जाती थी और डांट अलग से पड़ती थी। यह काम मैं और मेरी दीदी बहुत करते थे। मतलब वो वाले पटाखे फोड़ना हम लोगो को दीवाली वाले दिन से ज्यादा अच्छे लगते थे। परात में चकरी जलाना या फिर उसे किसी चीज से मार मार के घुमाना कभी कभी चकरी पीछे पड़ जाती थी तो बहुत बुरा भागते थे।
गांव वाले घर के चारों तरफ बहुत सारे बिही के पेड़ थे, घर के पीछे बहुत बड़ा बाड़ा था जहां खेती होती थी, तो एक चौकीदार जंगली जानवरों को भगाने , चोर की निगरानी के लिए बैठा रहता था वो चौकीदार थोड़े बुजुर्ग थे हम बच्चे लोग उन्हे कक्का बुलाते थे।
एक दिन दोपहर में वो कक्का पेड़ से टिक कर बैठे हुए थे हम लोग वहां पहुंचे और घूमने लगे, घूमते घूमते हम लोगो ने एक अगरबत्ती जला कर उसपर लाल बॉम्ब को धागे से थोड़ी दूर अगरबत्ती में बांध दिया जिससे वो थोड़ी देर बाद फूटे और हम लोग वहां से जा चुके हो। काका शायद थोड़े तजुर्बेदार थे, उनने हम लोगो से पूछा - "कुछ कर रहे हो क्या तुम लोग ?"
तो हम सब बोले - "नही काका कुछ नही कर रहे हम लोग आप आराम से बैठो।" फिर थोड़ी देर हम लोग ऐसे ही घूमते रहे फिर हम लोग वहां से चले गए,और थोड़ी देर बाद लगभग 15-20 मिनिट बाद जोर से धमाका हुआ और काका जोर से डर के उठ गए और हम लोग भी भागते हुए वहा पहुंचे देखा तो कक्का इधर उधर घूम के देख रहे थे,उनको देखते देखते हम लोगों की हंसी छूट गई सब लोग एक साथ जोर से हंसे , तब कक्का समझे - "लोगों ने किया यह भागो यहां से , हम लोग बोले नही काका हम लोग तो घूम रहे है।" काका हाथ में लट्ठ लेकर बोले - "भागो इधर से तुम लोग।"