बेटी एक आत्मानुभूति
बेटी एक आत्मानुभूति
मुंबई में रामसुखजी अपनी पत्नी, दो बेटे जो विदेश में रहते थे एवं एक बेटी लक्ष्मी जो मुंबई में एक वर्ष पूर्व ही ब्याही थी, के साथ रहते थे।
पुत्र तीन-चार वर्षों में एकाध बार आते थे पर पुत्री उन्हें सँभालने आती रहती थी।
एक बार रामसुखजी बीमार पड़े तो बिस्तर पकड़ लिया। डॉक्टर ने जाँच के बाद कहा उनकी किडनी (यकृत) काम नहीं कर रही, किडनी बदलनी पड़ेगी।
आनन फानन में बेटों को फ़ोन किया तो बोले वे बहुत व्यस्त हैं, आ नहीं पाएंगे।
पति पत्नी रोने लगे कि उनके बुढ़ापे के सहारों ने उन्हें मरता छोड़ दिया।
बेटी लक्ष्मी को जब किडनी प्रत्यारोपण ( ट्रांसप्लांट) का पता चला तो चुपचाप अपने सारे रक्त एवं अन्य जाँच करा कर पिता को यकृत प्रदत्त करने का निर्णय लिया। माँ ने कहा, बेटी तेरी सारी उम्र पड़ी हैं और तूने अपने पिता के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी दे रही है, एक बार सोच ले।
लक्ष्मी बोली माँ ये जीवन माँ बाप के काम ना आये तो लानत हैं ऐसे जीवन पर।
जल्दी ही शल्य चिकित्सा से प्रत्यारोपण हुआ और रामसुखजी, लक्ष्मी दोनों स्वस्थ हैं। आज रामसुखजी को सही मायनों में पुत्री की आत्मानुभूति हो रही थी।
एक नालायक औलाद की सात पीढ़ियों को सजा मिलती हैं और एक लायक औलाद से सात कुल सुधरते हैं।
स्वरचित
