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Sangeeta Agarwal

Tragedy

4  

Sangeeta Agarwal

Tragedy

बेदर्द प्यार

बेदर्द प्यार

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सीमा की खुशी का ठिकाना नहीं था जब से सुना था उसके बेटे अनूप को दिल्ली ,आई आई टी में एम टेक में अड्मिशन मिल गया था।पूरे मोहल्ले में मिठाई बंटवा दी थी,कथा भी करवा दी थी घर में,ख़ुशी से फूली न समाती जब कोई कहता :"तुम्हारे बेटे ने पूरे मौहल्ले में तुम्हारा नाम रोशन कर दिया।आज से पहले इस छोटी सी जगह से कोई इतने प्रतिष्ठित संस्थान से नही पढा होगा।"

यू पी के एक छोटे से शहर किरतपुर में एक छोटी सी किराने की दुकान थी अनूप के पापा की,कभी न सोचा था कि बेटा एक दिन ऐसे नाम रोशन करेगा।

अडोस पड़ोस वाले कहने लगे थे कि अब तो लड़के की बढ़िया नौकरी लगेगी,खूब अच्छे रिश्ते आएंगे,तुम्हारी तो निकल पड़ी।सीमा भी दिवा स्वप्नों में खो जाती,एक सुंदर ,सलोनी सी आज्ञाकारी लड़की,उसके सारे काम अपने जिम्मे लेते हुए,दो दो पोते पोतियोंI की मीठी आहट उसे सपनों की रंगीन दुनिया की सैर करा देती।

एक दिन ऐसे ही सपनो में खोई थी कि उसके पति सुरेंद्र ने उसे अपना फ़ोन पकड़ा दिया:लो अनूप से बात करो,कुछ बताना चाह रहा है वो तुम्हें,

उसने लपक के फ़ोन लिया: "हां, बेटा,कैसा है तू,ठीक खा पी रहा है न,कितना दुबला हो गया है,मैंने तेरी तस्वीर देखी थी।"

अनूप:"माँ,मुझे बहुत अच्छी नौकरी का ऑफर है,शायद अगले साल ही हैदराबाद जाना पड़े"

सीमा:(उसका दिल धक से रह गया)"अरे इतनी दूर…"

अनूप:"एक और अच्छी खबर है माँ,"

सीमा(बेचैनी से)"जल्दी बता बेटा",

अनूप:"माँ,मैंने तुम्हारे लिए बहु पसन्द कर ली है,मेरे साथ ही पढ़ती है,वो भी मेरे साथ वहीं नौकरी करेगी,मिष्ठी नाम है उसका,एक ही सांस में वो सब कह गया।"

फ़ोन डिसकनेक्ट हो चुका था और सीमा उसे यूँही पकड़े कुछ सोचे जा रही थी,कितने सपने देखे थे अपने बेटे के लिए बहु ढूंढने के,पर उसने तो ये मौका ही न दिया। सुरेंद्र उसे झिझोड़ रहे थे,"अरे कहाँ खो गयीं,क्या कहा साहबजादे ने,कब आ रहे हैं।"

सीमा ने उसे बताया तो वो बोला,"ठीक ही है न,आजकल मॉडर्न बच्चे ऐसा ही तो करते हैं।"

अनूप ने लड़की की कुछ तस्वीरें भिजवाई थीं,गेंहुए रंग की ,सुन्दर नाक नक्श वाली एक आधुनिक लड़की दिखती थी मिष्ठी,जीन्स और टॉप में बॉब कट बाल और चेहरे का आत्मविश्वास उसे पूरी तरफ आधुनिक बना रहा था।शायद उम्र में भी कुछ बड़ी सी ही दिख रही थी।सीमा को अपने अंदर कुछ टूटता नज़र आया पर वो असहाय हो उठी।कहे तो किससे,क्या कहे,उससे किसी ने कुछ पूछा भी नही था,सीधा अपनी पसंद बता दी थी।

समय बड़ी तेजी से आगे निकलता जा रहा था।अनूप ,मिष्ठी को लेकर अपने शहर आया था,मां बाप दोनों को ही वो बहुत मॉडर्न लगी,आज भी वो मॉडर्न ड्रेस में ही थी,जानती थी उनसे मिलना है,तब भी।लेकिन अनूप उसपर कैसे लट्टू हुआ जा रहा था,सीमा को धक्का तब और लगा जब उसने कुछ टोकना चाहा और अनूप गुस्से से बोला:मां,तमीज से बोलो,अब वो अनजान लड़की नहीं,आपकी होने वाली गृह लक्ष्मी है।

पराई लड़की के सामने इतनी बेज्जती,सीमा जैसे ज़मीन में गड़ गयी,पर होठो पर फीकी मुस्कराहट लिए अपने लड़के को उसके आगे,यस मैम,करते देखती रही।

सीमा ने नोटिस किया कि वो लड़की अनूप को ज्यादा भाव नहीं दे रही थी पर उसका अपना बेटा उसके लिए पागल हुआ जा रहा था।जल्द ही दोनों की शादी हो गयी और वो हैदराबाद के लिए रवाना हो गए। सीमा के सारे सपने चकनाचूर हो चले थे,हर वक्त लुटी पिटी सी रहती,कब बहु आयी और चली गयी,कुछ पता ही न चला।

बस एक संतोष था कि जब मेरा बेटा उसके साथ खुश है तो मैं क्यों फिक्र करूँ।शायद अब नए जमाने की ये ही रीत हो चली है कि पढ़ लिख कर अच्छी ,मोटी रकम वाली नौकरी करते बच्चे मां बाप को भूल जाते हों। वो दिल को ऐसी ही बहलाये रखती,कि एक दिन अनूप का फ़ोन आया:माँ,तुम कुछ महीने को हैदराबाद आ जाओ,तुम दादी बनने वाली हो,मैं तुम्हारे एयर टिकट भेज रहा हूँ।

सब कुछ भूल सीमा उस दिन मगन हो खूब भाग भाग के काम करती रही,उसे पिछली सारी बातें भूल गयीं। सुरेंद्र कहते:बेटे बहु के प्यार में बाबरी हो गयी हो,कहीं वहीं मत रह जाना हमेशा के लिए।आखिर वो दिन आ पहुंचा जब उसे दिल्ली एयरपोर्ट से हैदराबाद जाना था,उसके पति,उसे सारी बातें समझा रहे थे,वो बहुत घबराई हुई थी,इतना बड़ा एयरपोर्ट और इतनी दूर अकेले जाना,पर बेटे के पास जाने की उत्कंठा में डर कहीं दुबक गया था।

सही सलामत ठीक समय पहुंच गई थी वो,अनूप ने गाड़ी भेजी थी उसे लाने को,उसका दिल ख़ुशी से फूला जा रहा था,नई जगह,बड़ी सुन्दर सड़कें,शानदार गाड़ी सब कुछ उसे बहुत अच्छे लग रहे थे।

घर पहुंचते ही ,इस बार मिष्ठी ने मुस्कुरा के उसका स्वागत किया,उसकी डिलिवरी का वक्त बहुत पास ही था इसलिए नौकरी छोड़ चुकी थी अब।

आते ही जल्द सीमा ने सारा काम संभाल लिया था,अनूप को तो वैसे ही मिष्ठी की बहुत फिक्र रहती फिर अब तो वाकई में उसकी तबियत कभी कभी नासाज़ हो जाती।

उस दिन मिष्ठी का बी पी थोड़ा हाई आ रहा था और अनूप बेचैन होकर मां पर गुस्सा हो उठा।"कितनी बार आपको कहा है ,ऐसी में कम नमक,मिर्च का खाना बनाएं उसके लिए,उसे नुकसान करेगा"

सीमा का जी बैठ गया,"ओह,अब ये बच्चे उसे बताएंगे कि खाना कैसे बनाना है,उसकी आँखों मे आंसू तैर आये,कैसे उसने अपनी दो दो बेटियों की जचगी करवाई थी और दोनों जवाई उसका कितना सम्मान भी करते है इस बात पर और उसका अपना बेटा उसे अपनी बीबी के लिए पाठ पढ़ा रहा है।"

वो एकदम सम्भल गयी जैसे ही उसे अपने पति की बात ध्यान आयी कि तुम वहां जिस काम को जा रही हो बस वो करना,उनकी व्यतिगत बातों में मत उलझना।

सब कुछ ठीक ही चल रहा था पर कुछ दिन में मिष्ठी की भाभी भी आ गयी और वो यदाकदा सीमा की बेइज्जती करने लगीं।अनूप के सामने अपनापन दिखाती और उसके पीछे उससे एक शब्द बात भी न करतीं। सीमा देख रही थी कि मिष्ठी अनूप से भी बहुत बुरा व्यवहार करती कई बार पर उस पर तो जैसे कोई असर ही न होता।कल की ही बात है,सीमा गर्म गर्म खाना बना के सबको परोस कर खिला रही थी,अनूप सारे दिन का थका हारा खाने बैठा ही था कि मिष्ठी ने चिल्लाना शुरू कर दिया:ओह,इस सब्ज़ी में कितनी मिर्च है,मेरे पेट मे दर्द हो गया,कुछ कच्ची थी ,लगता है।

अच्छे खासे खाते खाते,अनूप ने खाना बंद कर दिया और बोला:"क्या हो गया है माँ आपको,नही मन करता तो मेड रख लेते हैं,कम से कम मिष्ठी को खाना तो सही मिलेगा।"

अब तो सीमा के संग आये दिन ये ही होने लगा,उसे एक डायटीशियन ने निश्चित सूची पकड़ा दी थी जिसमे सुबह का नाश्ता,लंच ,डिनर के अलावा न जाने कितने और जूस,सूप वगैरह बनाने थे।सीमा को दुख के साथ आश्चर्य भी होता कि अब कितने चोंचले हो गए हैं,कई बार मन करता भाग जाऊं अपने घर पर फिर लगता जहां इतने दिन सह लिया ,कुछ दिन और सही।

वो सब कुछ बर्दाश्त कर लेट थी लेकिन जब मिष्ठी,अनूप की इंसल्ट करती तो बेकाबू हो जाती पर अनूप की हरकतों की वजह से असहाय हो जाती। क्या काला जादू किया था उसने अनूप पर वो नही जानती लेकिन वो उसके हाथों की कठपुतली बन कर रह गया था।अब उनका बच्चा तीन महीने का हो चुका था और सीमा का धैर्य जबाव देने लगा था सो उसने अनूप से लौटने की मनुहार की।थोड़ी बहुत नानुकुर कर उसने मां का रिटर्न टिकट करवा दिया।

सीमा ने अपने घर आकर चैन की सांस ली,कई दिनों तक तो बीमार की तरह खाट पकड़ ली पर धीरे धीरे वो सामान्य होने लगी।लेकिन कुछ लोगों की जिंदगी में एक बार भूचाल आ जाये तो काफी समय तक सम्भलता नहीं।

अचानक अनूप का फ़ोन आया उस दिन और वो दुखी हो बोला:"माँ,मिष्ठी मुझसे नाराज़ होकर,लड़ झगड़ कर ,मेरे बेटे को लेकर अपनी मम्मी के घर चली गयी।"

उसकी आवाज में घोर निराशा और दुख था जिससे सीमा का दिल पसीज गया,उसने समझाया अनूप को,कोई बात नहीं,कुछ दिनों में तू मना लाना उसे।

कहने को तो कह दिया था सीमा ने लेकिन वो जानती थी कि मिष्ठी के व्यवहार में अजीब सी क्रूरता थी अनूप के लिए।जितना वो सॉफ्ट था,उतनी ही वो निर्दयी सी थी।एक हफ्ते बाद,सीमा अनूप से वीडियो कॉल कर रही थी,"बेटा,ये क्या हालत बना रखी है,बहु से बात हुई,कब आ रही है?"

अनूप:"वो नही आएगी मां,मुझसे बहुत नाराज है।"

सीमा:"पर क्यों?अब तो तुम दोनों के बीच बच्चा भी है,बच्चे तो माँ बाप के बीच मे पुल का काम करते हैं।"

अनूप बहुत उदास और डिप्रेस्ड रहने लगा।साल भर हो चला था,सीमा फिर अनूप के पास पहुंच गई थी।वो अनूप को कहती, चल फिर से एक बार कोशिश कर उसे मनाने की। अनूप उससे लिपट के रो पड़ा,मां,वो तो मुझे बच्चे से भी नही मिलने देती,शायद अलग होना चाहती है। मां कहती कि आखिर तुम दिनों में ऐसा क्या हुआ था जो बात इतनी बिगड़ गयी।अनूप ने बताया कि वो बच्चे को क्रेच में छोड़ नौकरी करना चाहती थी और मैंने कुछ दिन और रुकने को कहा बस नाराज हो गयी और चली गयी छोड़ कर।अनूप फूट फूट के छोटे बच्चे जैसे रोने लगा। एक मां का दिल सबसे ज्यादा तभी टूटता है जब वो अपने बच्चे को ऐसी बेबसी में देखे,एक तरफ उसे गुस्सा भी आ रहा था कि आख़िर उस बेबफा लड़की में ऐसा क्या था जो उसका बेटा उस के लिए आंसू बहा रहा था। लेकिन कहते है न ये प्यार बड़ा बेदर्द होता है।



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