Vandana Bhatnagar

Drama

5.0  

Vandana Bhatnagar

Drama

बदलते रिश्ते

बदलते रिश्ते

8 mins
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डोरबैल सुनकर नीता ने दरवाज़ा खोला तो सामने अंकुश मिठाई का डिब्बा लिए खड़ा था। नीता को देखते ही उसने उसके पैर छुए और नीता को मिठाई देते हुए बोला मैम आपकी वजह से मेरा आई.आई.टी. में सिलेक्शन हो गया है। जिस लगन से आप हम बच्चों के साथ मेहनत करती हैं वैसा जज़्बा किसी किसी में ही दिखाई देता है ।नीता ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और बोली बेटा, बस अपने अपने सोचने का ढंग है। थोड़ी देर बाद ही कई सारे बच्चे नीता के घर और आ गए उनका भी कहीं ना कहीं अच्छी जगह सैलेक्शन हो गया था।नीता ने सबके लिए पिज़्जा,बर्गर एवं सफेद रसगुल्ले मंगवाये।

नीता ने उनकी सफलता का जमकर जश्न मनाया। उसके बाद सभी बच्चे अपने अपने घर को चले गए। बच्चों के जाने के बाद नीता अपने अतीत में खो गई उसे याद आया कि शादी के कई साल बाद तक जब उसके कोई औलाद नहीं हुई थी तो लोगों ने उस पर बांझ का ही ठप्पा लगा दिया था और शुभ कार्यों में बुलाना भी बंद कर दिया था ।उसे यह देख कर बहुत बुरा लगता था ।वह भगवान से हरदम औलाद के लिए प्रार्थना करती रहती थी ।शायद भगवान भी उसकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गए थे और फिर उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ।नीता और उसके पति विकास की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था पर बच्चा बहुत कमज़ोर हुआ था उसे ज्यादा देखभाल की ज़रूरत थी ।नीता ने मेटरनिटी लीव ले ही रखी थी उसने अपना सारा ध्यान अब अपने बच्चे चिराग में ही लगा दिया। चिराग कमज़ोर था इसलिए उसे बीमारी भी जल्दी लग जाती कभी उल्टी, कभी दस्त,कभी बुखार कभी ठंड लग जाती थी।नीता का सारा दिन कैसे निकल जाता था पता ही नहीं चलता था। रात को भी चिराग के साथ जागना पड़ता था अब उसकी नींद भी पूरी नहीं होती थी इसी तरह समय निकलता रहा।

अब नीता की लीव भी खत्म होने को आ रही थी ।अब चिराग को किसके भरोसे छोड़ कर अपनी नौकरी पर जाए यह बड़ा सवाल था । घर में कोई बड़ा बुज़ुर्ग भी नहीं था और आया के ऊपर चिराग को छोड़ कर जाना नीता को मंजूर नहीं था उसने आखिरकार अपनी नौकरी छोड़ने का ही निर्णय लिया। सभी ने उसे बहुत समझाया कि इतनी अच्छी नौकरी बड़ी मुश्किल से मिलती है ।बच्चा तो और दो ढ़ाई साल में स्कूल जाने लायक हो ही जाएगा पर उसने अपने बच्चे के आगे अपने करियर को भी पीछे रख दिया ।इसी तरह समय बीतता रहा।

अब चिराग स्कूल जाने लगा था ।नीता खुद ही उसे स्कूल छोड़ कर एवं लेकर आती थी। उसकी पढ़ाई लिखाई पर भी नीता बहुत ध्यान देती थी। चिराग भी तेज़ बुद्धि का बालक था वह भी हर कक्षा में प्रथम ही आता था ।धीरे धीरे चिराग दसवीं कक्षा में आ गया था लेकिन नीता ने उसका कोई ट्यूशन नहीं लगाया था वह खुद ही उसको सब सब्जेक्ट पढ़ाती थी ।आखिर नीता भी गोल्ड मेडलिस्ट थी ।साइंस ,मैथ्स पर उसकी बहुत अच्छी पकड़ थी ।नीता की गाइडेंस एवं अपनी मेहनत के बल पर चिराग ने अपने प्रदेश में 10th की परीक्षा में टॉप किया था। अब चिराग ने आईआईटी की तैयारी भी शुरू कर दी थी। नीता उसकी पढ़ाई के साथ साथ उसकी सेहत पर भी बहुत ध्यान देती थी ।कभी चिराग के लिए बादाम का छौंका बनाती ,कभी फल, कभी मेवे उसे खाने को देती रहती थी। खाना भी उसके लिए पौष्टिक ही बनाती थी और उसके रूम में ही पहुंचा आती थी ताकि चिराग का ज़रा भी टाइम वेस्ट ना हो ।वो उसके साथ साये की तरह लगी रहती थी।

अब चिराग जैसे-जैसे बड़ा हो रहा था उसके व्यवहार में भी परिवर्तन आता जा रहा था। उसे अपनी मां का ओवरप्रोटेक्टिव होना बिल्कुल नहीं भाता था। वह कई बार खीझ भी जाता था और नीता को पलट कर जवाब भी दे देता था ।नीता का मन दु:खी हो जाता था पर वह यह सोच कर अपने मन को समझा लेती थी कि किशोरावस्था में थोड़ा बहुत चेंज तो आता ही है। चिराग की मेहनत रंग लाई और उसका कानपुर आई.आई.टी. में सिलेक्शन हो गया। पहली बार वह घर से बाहर रहने जा रहा था ।नीता का तो दिल दहला जा रहा था पर चिराग घर से बाहर जाने पर बहुत खुश था ।उसे आज़ादी जो मिलने वाली थी ।जब नीता चिराग को कानपुर छोड़ कर घर वापस आयी तो घर उसे खाने को दौड़ रहा था ।वह फूट-फूटकर बहुत देर तक रोती रही। विकास उसे समझाता रहा कि अब चिराग पढ़ने के लिए बाहर गया है और फिर नौकरी के लिए चला जाएगा अब हमें उसके बिना रहने की आदत डाल लेनी चाहिए। पर नीता कुछ भी समझने को तैयार नहीं थी।

नीता चिराग को रोज़ सुबह खुद ही उठाती थी। अगले दिन सुबह को उसने चिराग को फोन करके उठा दिया फिर लंच टाइम में और फिर शाम को क्लास खत्म होने के बाद भी उसने उसको फोन किया। कुछ दिन तो ऐसे ही चलता रहा पर एक दिन चिराग नीता पर भड़क उठा और बोला अब तो मेरा पीछा छोड़ दो, अब मैं बड़ा हो गया हूं ,अपना ख्याल खुद रख सकता हूं। यह सुनकर नीता के मन को बड़ी ठेस लगी। अब उसने उसे फोन करना बिल्कुल बंद कर दिया था रात को ऑफिस से आकर विकास ही चिराग से बात करते थे पर चिराग अपनी मां के बारे में पूछता तक नहीं था शायद नीता से बात करता तो वह उसे 100 नसीहतें ज़रूर देती पर अब उसे नसीहतों की कोई ज़रूरत नहीं थी वह तो अब आज़ाद पंछी की तरह रहना चाहता था।

नीता चिराग के रूखे व्यवहार से दंग थी। वह सोचने लगी की शायद मेरे प्यार को चिराग ने मेरी कमज़ोरी समझ लिया है ।अब नीता ने अपना खाली वक्त गुज़ारने के लिए एक कोचिंग सेंटर खोल लिया ।भगवान की दुआ से वह जल्दी ही अच्छा चलने लगा था। नीता का अधिकतर समय अपने कोचिंग सेंटर में ही बीतने लगा । चिराग से कभी-कभी ही उसकी बात होती थी। चिराग तीज त्यौहार पर भी जो छुट्टी पड़ती थी उसमें भी पढ़ाई का बहाना बनाकर अपने घर नहीं आना चाहता था। और जब समर ब्रेक में वह अपने घर आता था तो कोई ना कोई कोर्स ज्वाइन कर लेता था ।घरवालों से उसका मतलब सिर्फ उसके खर्चे पूरे करने तक सीमित रह गया था ।धीरे-धीरे करके उसके इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी हो गई और उसको जॉब के लिए कई जगह से ऑफर आया पर उसने अमेरिका में मिली जॉब को ही चुना। नीता ने उसे अपने देश में ही नौकरी करने की बड़ी मिन्नत करी पर वह यह कह कर कि ज़िंदगी मेरी तो फैसला भी मेरा, इसमें किसी को भी दखलंदाज़ी नहीं करनी चाहिए और वो अमेरिका के लिए रवाना हो गया।

अमेरिका जाकर चिराग का महीने में दो तीन बार फोन आ जाया करता था । कुछ समय बाद उसने वहीं की लड़की से शादी भी कर ली जिसकी सूचना उसने अपने मां बाप को फोन करके ही दी ।विकास एवं नीता को चिराग के इस फैसले से बहुत ठेस लगी। शादी के बाद से तो चिराग ने अपने घर से बिल्कुल ही नाता तोड़ दिया था। नीता एवं विकास को भी यह पूर्णतया समझ आ गया था कि बेवजह औलाद के पीछे भागना कोई समझदारी नहीं है ।शादी के कुछ समय बाद जब चिराग की पत्नी प्रेग्नेंट हुई तो उसमें बहुत से कॉम्प्लिकेशन थे डॉक्टर ने उसे बेड रेस्ट की सलाह दी थी ।कोई अनुभवी औरत उसकी देखभाल के लिए चाहिए थी तब चिराग को नीता की याद आई और उसने नीता से अमेरिका आने का आग्रह किया। चिराग की बात सुनकर नीता फिक्रमंद हो गई और उसका दिल पिघल गया था पर अगले ही पल उसे उसका रुखा व्यवहार याद आ गया और वह चिराग से बोली कि मैं तुम्हारी वजह से अनेकों बच्चों का भविष्य नहीं बिगाड़ सकती हूं।

बोर्ड के पेपर नज़दीक हैं और मेरा उन बच्चों के पास होना ज़्यादा ज़रूरी है जो मेरे कोचिंग सेंटर पर पढ़ते हैं ना कि तुम्हारे पास। तुम्हारा काम तो नर्स से भी चल जाएगा ।नीता की बात सुनकर चिराग बोला था आप गैरों के लिए अपने घर के चिराग को मना कर रही हो आपको यह शोभा नहीं देता। नीता, चिराग से बोली मुझे क्या शोभा देता है क्या नहीं यह मुझे तुमसे सीखने की ज़रूरत नहीं। और हां यह ज़िंदगी मेरी है और अपने फैसले लेने का अधिकार मुझे भी है। नीता चिराग से बोली तुमने क्या सोचा था कि मां को ज़रा सा प्यार से बुला लूंगा तो मां सब काम छोड़कर दौड़ी चली आएगी पर शायद तुम भूल गए हो मुझे इतना कठोर बनाने में तुम्हारा ही हाथ है तुमने खुद ही अपनी मां के प्यार को ठुकराया था।

अभी नीता यह सब सोच ही रही थी कि डोरबैल बजने से उसका ध्यान भंग हुआ।उसने दरवाज़ा खोला तो बाहर मीडिया वाले थे जो उसका इंटरव्यू लेने आए थे ।नीता मीडिया वालों को बता रही थी कि मेरे कोचिंग सेंटर पर आने वाले बच्चों के माथे पर जब कामयाबी का सेहरा बंधता है तो मेरे दिल को बहुत सुकून मिलता है ।भले ही मेरा इन बच्चों से खून का कोई रिश्ता नहीं है फिर भी खून के रिश्तों से ज़्यादा ये मुझे जो मान और प्यार देते हैं वह मेरे लिए बहुत मायने रखता है। और मेरे अंदर स्फूर्ति भरता है और मैं इनके साथ कड़ी मेहनत कर पाती हूं जिसका परिणाम आप सबके सामने है। बच्चों का भविष्य संवारना ही मेरी ज़िंदगी का लक्ष्य बन चुका है यह कहकर नीता ने मीडिया वालों से विदाई ली और फिर अपने कोचिंग सेंटर की ओर चल दी।


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