बारिश
बारिश
आज शहर में सुबह से जोरदार बारिश हो रही थी। बारिश इस कदर हो रही थी कि सारे शहर को डुबो देना चाहती हो। जब भी इस कदर की बारिश होती उसे कुछ याद आ जाता। आज भी बारिश की बूंदों ने उसे फिर से उसे फोन करने पर मजबूर कर दिया।
उसकी कॉल लगते ही उसने तुरंत रिसीव किया।
"हेलो"
"हाँ बोलो"
"मैं बोल रहा हूँ"
"ये तुम्हें बताने की जरूरत कभी पड़ी है" उसने शरारत से कहा
"फिर भी, मुझे लगा की भूल गयी होगी"
"ऐसा कभी हो सकता है"
"काश कभी ना हो"
" अच्छा, आज कैसे याद किया"
"बस मिलना था तुमसे"
"किस लिए "
"ये तो मिलने के बाद ही तुम्हे समझ आएगा"
"अच्छा " ये अच्छा उसने एक गहरी सांस लेकर कहा
"तुम आओगी ?"
एक सवाल, जो वो हर वक़्त पूछता था। एक जवाब जो वो हमेशा से तलाश रही थी।
"बोलो ना "
"क्या बोलूं मैं, तुम हर बात जानते हो और फिर भी पूंछ रहे हो"
"जानता हूँ, तभी तो पूंछ रहा हूँ" कहते कहते उसकी आँखों में कई सवालों के काले बादल उमड़ आये।
"जब जानते हो, फिर मेरी उलझन क्यों बढ़ाते हो"
"उलझन ? तुम्हारी सारी उलझनों को सुलझाते सुलझाते आज मैं कितना उलझ चुका हूँ, इसका तुम्हें जरा सा भी अंदाजा नहीं है" उसकी आँखों में एक हल्का सा अश्रु बिंदु उभरा।
"मैं सब जानती हूँ पर तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ रहे" कहते हुए उसने हाथ से अपने सर पर सजे लाल रंग के नीचे उभरी बूंदों को पोंछ दिया।
"ठीक है, अगर तुम मजबूर हो, तो आज मैं तुम्हें अपने सारे बन्धनों से आजाद करता हूँ" कहकर उसने फोन काट दिया और उमड़े काले बादलों ने उसे पूरा भिगो दिया।
एक बारिश जो उसके अंदर हो रही थी और एक बारिश जो बाहर हो रही थी। उस बारिश में उसकी बारिश का शोर दब गया। शायद बाहर की बारिश का शोर ज्यादा था।