Avinash Kulshrestha

Tragedy

4.9  

Avinash Kulshrestha

Tragedy

बारिश की रात

बारिश की रात

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आज शनिवार है इस दिन का इंतज़ार लोग इतना करते हैं जितना अपनी प्रेमिका का ना किया हो।

वर्मा जी भी आज जल्द से जल्द अपना काम खत्म कर दफ्तर से इस कदर निकल जाना चाहते थे जैसे पिंजड़े में कैद कोई पंछी, और हो भी क्यों ना वर्मा जी आज अपनी धर्मपत्नी और बच्चों को मेला दिखाने ले जाने वाले थे।

वर्मा जी जल्द से जल्द अपना काम खत्म कर साहब से विदा मांगने ही गए थे की साहब ने एक ज़रूरी काम है ऐसा बोल कर वर्मा जी के हाथों में फ़ाइल थमा दी। वर्मा जी साहब से कहते भी तो क्या बेचारे अपनी ख्वाहिशों को मार लग गए फ़ाइल को पूरा करने। वर्मा जी को मेले जाने का ख़याल ऐसा लग रहा था जैसे बीमारी में हिमालय की चोटी पर चढ़ना। लेकिन वर्मा जी ने हार नहीं मानी और जैसे तैसे काम खत्म कर दफ्तर से घर की और चल पड़े।

वर्मा जी पैदल ही इतना तेज़ चल रहे जैसे कोई घुड़सवार घोड़े पर बैठकर युद्ध के लिए जा रहा हो। पर लगता है आज वर्मा जी का दिन ही खराब था मूसलाधार बारिश ने वर्मा जी के बढ़ते क़दमों को रोक दिया। वर्मा जी जल्दी से एक दुकान के पास खड़े हो गए और बादलों को बड़ी आशा से निहारने लगे।ऐसा लग रह था मानो बारिश से गुज़ारिश कर रहे हो की कुछ समय के लिए थम जाए ।


तभी एक छोटी सी लड़की उन्हें पास आती दिखी। वो लड़की बहुत ही फटे-मैले कपड़े पहनी थी उसकी कीचड़ से बिगड़ी आँखें, फटे होंठ, पीले दाँत, उसका तन जो की भूखा रह रहकर कंकाल सा बन गया था, सफ़ेद गाल जो बहुत दिन ना नहाने धोने की वजह से काले पड़ गये थे, इतना ही काफी था उसकी बेबसी को बताने के लिए। उसने वर्मा जी से खाना खाने के लिए कुछ पैसे मांगे। वर्मा जी ने पैसे देना तो दूर उसको खरी खोटी सुनाने लगे। वो मासूम बार बार कहती रही की साहब आप चाहे तो आप मुझे खाने का कुछ सामान ख़रीद कर दे दीजिए। लेकिन वर्मा जी के कान पर जूँ तक ना रेंगी। उन्हें तो जल्द से जल्द अपने बच्चों को मेला दिखाने जाना था वो तो बस बारिश के थमने का इंतज़ार कर रहे थे। तभी अचानक बारिश रुक गयी वो मुस्कुराकर भगवान को धन्यवाद बोल कर अपने घर की ओर निकल पड़े।

अपने परिवार के साथ मेले में पानी की तरह पैसा बहाकर ख़ुशियाँ मनाकर लौट आये। एक नई सुबह ने जन्म लिया और वर्मा जी की पत्नी ने बड़े प्यार से उनको चाय नाश्ता लाकर दिया और दे भी क्यों ना वर्मा जी ने कल अपनी पत्नी को उसकी पसन्द का हार जो लाकर दिया था। चाय की चुस्की के साथ वर्मा जी समाचार पत्र का आनंद उठा रहे थे। यकायक एक तस्वीर को देख वर्मा जी के चेहरे की हँसी आँसुओं में तब्दील हो गयी। उन्हें खुद से घृणा हो गयी। उस समाचार पत्र में उसी लड़की की तस्वीर प्रकाशित हुई थी जो वर्मा जी से दुकान पर मिली थी। समाचार पत्र की इन पंक्तियों "बारिश की रात में ठण्ड और भूख से फिर एक मासूम ने दम तोड़ा" ने वर्मा जी को हिलाकर रख दिया था। वर्मा जी अपने आप को कोस रहे थे की काश उन्होंने उस मासूम की मदद की होती तो आज एक ज़िन्दगी यूँ ना हारती। और यही सोचकर उनकी आँखों से आँसू की धारा कुछ इस कदर बहने लगी जैसे कोई मेघ बरस रहा हो और इस बारिश ने उनके मन में छिपी बुराई को धो डाला।



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