वो गली
वो गली
वो गली जो कभी बच्चों के स्वर से आनंदित हुआ करती थी, आज वो वीरान पड़ी बच्चों की राह ताक रही है। अब कोई बच्चा इस गली में खेलने नहीं आता।
पहले जिस गली में खेलने के लिए झगडते थे बच्चे, आज उस गली को बस रास्ता समझ गुज़र जाते हैं। कोई उसकी तरफ देखता तक नहीं ! पहले कंकड़ और पत्थर होने पर जिसे दुलार मिलता था, आज शीशे सा चमकने पर नहीं मिलता ! गली भी बदलते हुए इस दौर को देखकर रो पड़ती है।
पर क्या करे बेचारी? अपनों को छोड़ कहीं जा भी तो नहीं सकती !
गली बस इंतज़ार कर रही है कुछ अपनों का जो उसकी ज़िन्दगी फिर से खुशनुमा बनायेंगे।
बस यही आस लिए गली जिए जा रही है।
"जैसे गली को वीरान कर दिया वैसे अपने माँ बाप की ज़िंदगी को वीरान ना करें।"
