बालमन

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माँ के साथ आज नीरज भी बाज़ार जाने की ज़िद करने लगा बोला, "माँ मैं भी साथ चलुंगा "

"तुम यहीं घर पर रहो बेटा, मैं जल्दी आ जाऊंगी !"

"नहीं-नहीं मुझे भी जाना है।"

नीरज के अड़ जाने पर माँ ने हाथ पकड़ा बेटे का और चल पड़ी।

अभी कुछ ही दूर निकले होंगे दोनों कि नीरज की चप्पल टूट गयी माँ से बोला"माँ चप्पल तो टूट गयी"

"क्या चप्पल टूट गयी अभी तो बाज़ार तक चलना है! चलो आगे वाले मोड़ पर एक मोची बैठता है मिल गया तो इसे बनवाती हूँ"माँ ने कहा !

पैर में चप्पल उलझाए हुए नीरज माँ के साथ धीरे-धीरे चलने लगा मोची की दुकान आ गई माँ ने कहा-

"इसे सिल दो भईया" मोची बोला, दस रुपये लगेंगे !"

"पांच रुपए का काम है और दस चलो ,बना दो"माँ ने कहा इतने में मोची का बेटा कहीं से घूमता हुआ आया और बोला "पापा दस रुपए दो ना मुझे फ्रूटी पीनी है "मोची झेंपते हुए बोला आज ज्यादा पैसे नहीं हो पाए हैं ,अभी तेरी माँ के लिए दवा लेनी है कल तुम्हें फ्रूटी पिला देंगे "ये सारी बातें नीरज बड़े ध्यान से सुन रहा था और अंदर अंदर ही कुछ फैसला कर रहा था!

चप्पल बनवा कर नीरज माँ के साथ बाज़ार से सामान लेकर वापस घर की तरफ़ बढ़ रहा था कि, वाटर सप्लाई का मज़बूत पाइप सड़क पर उभरा हुआ था जिसमें बड़ी फुर्ती से नीरज ने अपनी दूसरी चप्पल ऐसे फंसाई कि बिना टूटे न रहे औऱ बोला"माँ दूसरी चप्पल भी टूट गयी दस रुपये लगेंगे"ये कहते हुए उसके आँखों के सामने दस रुपए की फ्रूटी नाचने लगी जो अभी मोची का बेटा अपने पिता से माँग रहा था।


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