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सुषमा शैली

Others

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सुषमा शैली

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धागा स्नेह का

धागा स्नेह का

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आज घर का काम बड़ी जल्दी जल्दी पूरा करते हुए सुजाता को देखकर सुमित ने हँस कर पूछा "क्या बात है! आज तो तुम बहुत जल्दी ही उठ गई और नाश्ता भी तैयार कर दी ?"

हाँ! आज राखी है, मुझे चाचा जी के घर जो जाना हैIआपको तो पता है ही, आपके साथ ही तो जाना है!सुजाता ने अपने पति से जब ये कहा तो उसे शाम की बात याद आ गई, जो उसने कहा था कि वह भी हमेशा की तरह चाचा जी के घर जाएगा इस बार भी ।

सुमित बोला "अरे हाँ मैं अचानक भूल गया I मैं भी तैयार होता हूँ, ये तो सच में बहुत ज़रूरी है I इतना कहकर वो नहाने के लिए चला गया।

इधर सुजाता ने राखी की पूरी तैयारी कर ली I फल, मिठाई, अपने पसन्द की प्यारी सी राखी, जिसे उसने अपने प्यारे चचेरे भाई शुभम के लिए स्नेह से खरीदी थी I उसे रखना कैसे भूल सकती थी !अब बस सुमित के तैयार होकर चलने भर की देर थी।

जब सुमित नहाकर बाथरूम से बाहर आया तभी उसका एक फ़ोन आया I वो बात करने लगा I इधर सुजाता ने नाश्ता लगा दिया टेबल पर ,सुमित मोबाईल पर बात पूरी करके बोला-"मुझे अभी किसी जरूरी काम से बाहर जाना है, इसी लिए ऑफिस से फ़ोन था I दो चार घंटे का काम है I चलो..! तुम्हें मैं चाचा जी के घर के पास छोड़ दूँगा I फिर काम निपटा कर मैं भी वहीं आ जाऊँगा I"

"आज भी आपको छुट्टी नहीं है?"-तुनककर सुजाता बोलीl

प्राइवेट जॉब है, सरकारी नौकरी थोड़े ही है? काम ज़रूरी इसलिए बॉस का फ़ोन था।सुमित ने समझाते हुए कहा ।

अच्छा ठीक है I सुजाता जूस का गिलास देते हुए सहज होकर बोली।

"तुम भी तो कुछ खा लो "-सुमित ने कहा।

"नहीं मैं तो राखी बाँध कर ही कुछ खाऊँगी और आज तो जल्दी भी जा रही हूँ I पिछले साल तो दो बज गया था! "-सुजाता ने कहाI

"हाँ! इस बार दीदी नहीं आ पाएंगी, मुझे शाम तक उनके पास भी जाना होगाI उनका भी कल फ़ोन आया था ,नहीं तो तुम्हें आज भी दो ही बज जाता"-हँसते हुए सुमित बोला और चलने के लिए उठ गयाI पहले से तैयार सुजाता भी साथ निकल पड़ीI उसके चाचा जी का घर ज़्यादा दूर तो था नहीं! उसी शहर में ही था, यही कोई आठ दस किलोमीटर की दूरी ही थीI बस जहाँ स्कूटी से बीस पच्चीस मिनट में पहुँचा जा सकता था।सुजाता को सुमित ने चाचा जी के घर की गली के पास छोड़कर ख़ुद अपने काम के लिए चला गया।

सुजाता जब चाचा जी के घर पहुँची तो उसे उसका भाई बरामदे में बैठा मिला देखकर बोला- "दी आ गई आप! मैं आपका इंतज़ार कर रहा थाI"

अच्छा ! ख़ुश होकर सुजाता बोली और फल मिठाई का बैग उसे पकड़ाते हुए बोली- "इसे यहीं रख मैं जाकर चाचा चाची को चौका देती हूँI,तू पाँच मिनट बाद अंदर आना भाई! सुजाता की इतनी सहज बात मान ली शुभम ने।

अंदर गैलरी तक पहुँची ही थी कि उसके कानों में चाचा चाची के आपसी बातचीत में अपना नाम सुनकर वो गैलरी में ही खड़ी होकर आगे की बात बड़ी उत्सुकता से सुनने लगीI उसे लगा, लगता है बेसब्री से मेरा इंतज़ार हो रहा है, ऐसा वो मन में सोच रही थी।

चाचा ने कहा- "किरण तुमने लंच में क्या बनाया है ?आज सुजाता और सुमित को भी आना है !" 

चाची ने झुँझलाते हुए कहा- "आलू और सोयाबीन I"

"पनीर बना लेती ?दामाद के सामने अच्छा लगेगा आलू-सोयाबीन?" - चाचा जी ने कहाI

"कम खर्चे तो हैं नहीं! ऊपर से अभी राखी का बहाना बना कर तुम्हारी लाडली आ रही होगी, कराएगी हज़ार दो हज़ार ख़र्चा, राखी-वाखी कुछ नहीं! सिर्फ़ लालच है, जो हर साल आ जाती हैI अरे!हमने पाँच छः लाख रुपया लगाया तो शादी में? अब कब तक उस पर ही लुटाते रखें? पनीर बना लो! इनसे और बात कर लो!"झल्लाते हुए कहा किरण नेI

थोड़ी तेज़ आवाज़ में चाचा जी ने कहा"तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया हैI अपनी बच्ची के बारे में ऐसा बोलती हो? और हाँ वो हमारे बड़े भाई की आख़िरी निशानी हैI उसका और मेरा दुर्भाग्य था, जो सड़क दुर्घटना ने मेरे भैया भाभी को असमय छीन लियाI मेरे पर कम एहसान नहीं है मेरे ऊपर, और एक बात! सुजाता की शादी में जो भी पैसा लगा है वो सब एक्सीडेंट का मुआवज़ा था, हमारा नहीं था I"इतना सब सुनकर सुजाता कुछ पल के लिए जैसे जड़ बन गईI

फ़िर भी पूरी तरह अंजान बनकर जैसे कुछ सुना ही न हो, अंदर आती हैI उसे देखकर चाची दिखावे वाली हँसी बिखेरते हुए बोली-"आ गई बिटिया! अभी हम तुम्हारे आने की ही बात कर रहे थेI" 

सुजाता दोनों को प्रणाम करती है और किनारे की कुर्सी पर मुस्कुराते हुए बैठ जाती हैI और बाहर से शुभम भी फ़ल मिठाई लेकर आता है, और टेबल पर रख देता है।

"दामाद जी नहीं आये क्या?"-किरण पूछती है सुजाता सेI 

"नहीं चाची! उन्हें कुछ ज़रूरी काम आ गयाI बाहर गली के पास तक छोड़ कर गए हैं"-सुजाता ने इतना कहा।

चाची ने पानी दियाI सुजाता पानी पीने के बाद जैसे अपने पर्स में कुछ ढूढ़ने का प्रयास करने लगी और एकदम से खड़ी हो गई बोली- "चाचा जी मैंने बहुत मन से जो राखी ख़रीदी थी, वो तो मेरे ही घर पर रह गई!" ये कहते हुए खड़ी हो गई और मोबाईल निकालकर पति का नं० मिलाने का अभिनय करने लगी और चाची से ये बोलकर बाहर आ गई कि बस एक घण्टे में अपनी पसंद वाली राखी लेकर आ जायेगीI उसके चाचा जी पीछे से सुजाता सुजाता पुकारते रहे पर उसने पीछे मुड़कर देखा ही नहींI वो बड़ी फुर्ती से गली के बाहर चली गई ।

एक ऑटोरिक्शा उसे खाली दिखा उसमें बैठ गईI ऑटो में बैठते हुए उसकी आँखें छलछला आईंI तीस सेकंड में आँसुओं की लड़ी सी बहने लगीI ऑटो वाले ने अगले शीशे में देखा, उससे बिना पूछे नहीं रहा गयाI बोला-"आज राखी के दिन इस तरह से मैडम आप क्यों रो रही हैं?ख़ुशी का दिन है! आप भाई को राखी बाँधने जा रही हैं या बाँध कर आ रही हैं ?"

"आ रही हूँ "आँसू को पोछते हुए सुजाता बोलीI

"तो ख़ुशी मनायें आप बिछड़ थोड़े रहीं हैं भाई से?"

"ऐसा ही कुछ समझ लो बिछड़ने जैसा ही"इतना कहकर चुप हो गई सुजाता।

आप तब भी मुझसे ख़ुशनसीब हैंI आपका भाई है, मेरी तो बहन को भगवान ने बहुत जल्दी ही ऊपर बुला लियाI हर राखी को मैं भी बहुत दुःखी होता हूँI मेरी बहन मुझे बहुत याद आती है।

"ओह!क्या हुआ था उसे ?"सुजाता ने दुःख जताते हुए पूछाI

कुछ ठीक से पता ही नहीं चल पाया! दो दिन बुख़ार हुआ और तीसरे दिन हॉस्पिटल ले जाते हुए मेरी ही बाहों में वो ऐसे सोई कि फिर उठी ही नहीं! बाद में डेंगू होने की रिपोर्ट थमा दिया गया मुझे।"ये कहते हुए ऑटो वाला भी आँखे सूखी नहीं रख सकाI तब भी सुबकते हुए ऑटो चलाते हुए अपनी बहन की ही बात करता रहाI सुजाता से कहने लगा-"मैं उसे पगली ही कहता था, रीना कभी नहीं बुलाया'"

"अच्छा रीना नाम था आपकी बहन का? प्यारा नाम ,वैसे कितनी बड़ी थी वो?"-सुजाता ने पूछाI

उन्नीस साल की थीI पूरी बच्ची ही थी, हर साल राखी वाले दिन जिद करतीI हज़ार रुपये से कम नहीं लेती थी! मैं भी उसे ख़ूब तंग करता, शाम तक पूरा करता उसके हज़ार रुपये! ये कहते हुए ऑटोवाला हँसने लगा बहन की भोली बातें याद करके, फ़िर जैसे कुछ ख़ास बात उसे याद आई, कहता है- "पता है मैडम! हर राखी पर मेरे लिए रीना कोई न कोई गिफ़्ट ज़रूर लाती अपने राखी के पैसों से! कभी घड़ी, कभी जीन्स और कभी शर्ट, अपने पसंदीदा रंग की! और हाँ, आज भी ये ब्लू शर्ट उसीकी लाई हुई है "-ऑटो वाले का चेहरा कभी बरसते आँसुओं से गीला होता तो कभी हँसीं के धूप से सूख जाताI ये सब देखते सुनते पच्चीस मिनट का समय बीत गया और सुजाता का मन अब पहले जैसा भारी नहीं थाI आँखें सूख चुकी थीं और घर भी आने वाला थाI कुछ देर ऑटो में चुप्पी छाई रही और सुजाता के घर वाला मोड़ आ गयाI सुजाता ने ऑटो वहीं रुकवाया और किराया देखा चौरानवे रुपया सत्तर पैसा हुआ थाI वह नीचे उतरी और सौ रुपये ऑटोवाले को दिए, वो बचे हुए पैसे के लिए जेब टटोलने लगा तो वह बोली "रहने दो चार रुपये ही तो ज़्यादा हैं भइया" ये कहकर सुजाता जाने के लिए मुड़ी और ऑटोवाला ऑटो स्टार्ट करने ही वाला था कि फ़िर से सुजाता ऑटो के तरफ़ ही मुड़ गई और रुकने का इशारा क्या, ऑटोवाला रुक गयाI सुजाता बैग में से अपनी पसंदीदा राखी निकाल कर ऑटो वाले के सामने आकर उसके हाथ के तरफ़ इशारा करते हुए बोली "भइया ये राखी मैं आपको बाँधना चाहती हूँ?"

ऑटोवाले का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा और बोला "क्यों नहीं बहन, ज़रूर!" यह कहकर उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और राखी बँधने के बाद अपनी जेब टटोलने लगाI उसके हाथ में वही नोट टकराया, जो अभी उसे सुजाता से मिला थाI उसने वही नोट सुजाता को पकड़ाना चाहा पर सुजाता पैसा लेने से बार-बार मना करती रही पर उसने कहा- ये मेरा प्यार है बहन! मैं जानता हूँ, इस स्नेह के धागे का कोई मोल नहीं चुका सकता है। कागज़ के टुकड़े पर ऑटोवाले ने अपना नाम रजत कुमार ,स्थायी पता और मोबाईल नं०लिखा, उसे सुजाता को देते हुए बोला- किसी भी सुख-दुःख में बहन जब तुम चाहोगी, मैं सामने खड़ा मिलुंँगाIऔर अपना फ़ोन नं०भी दो बहन, अब हर राखी के दिन तुम मुझे सामने पाओगी।



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