बाइयों का बेरा
बाइयों का बेरा
विद्यालय समय पश्चात मैं बस स्टैंड पर खड़ा घर जाने के लिए बस का इंतज़ार कर रहा था। गाँव छोटा होने के कारण मेरे अलावा वहाँ स्टैंड पर मुश्किल से दो-तीन सवारियाँ ही थी। तभी 11वीं कक्षा का एक विद्यार्थी शेर सिंह भी मेरे पास आकर खड़ा हो गया, वो अपने दादाजी के लिए अस्थमा की दवाइयां लेने शहर चल रहा था। दोनों में बातचीत शुरू हुई, बस स्टैंड के पास कुछ पुराने स्मारक, शिलालेख एक खण्डरनुमा हवेली और एक पुराना कुआँ था। इनकी उम्र तकरीबन 500 साल की होगी। उसने मुझे स्मारकों और हवेली का इतिहास बताया, मैं खुश भी था और उत्सुक भी। वो अनवरत बोले ही जा रहा था कि मैंने उसके बोलने से पहले ही उस कुँए की तरफ इशारा करके पूछा कि ये क्या है ? इसके बारे में भी कुछ बताओ ?
उसने चेहरे पर मुस्कुराहट लाकर कहा कि ये "बाइयों का बेरा"है।
मारवाड़ी में बाई शब्द बच्ची/बहन के लिए प्रयोग में लाया जाता है और बेरा कहते हैं कुएँ को। अतः "बाइयों का बेरा" मतलब हुआ बच्चियों का कुआँ।
मैंने अचरज में पूछा कि ये कैसा नाम हुआ ? राजस्थान में स्मारकों या पुरातात्विक भवनों के नाम किसी बहादुर/ वीर पुरुष या योद्धाओं के नाम पर होते हैं। मैंने जानकारी के लिए पूछा कि कुएँ का ये अजीब नाम क्यों पड़ा ?
उसने गर्व से कहा कि भारी दहेज प्रथा के कारण हमारे समाज मे लड़कियों को पैदा होते ही उन्हें इस कुएँ में फेंक दिया जाता है, परसो ही मेरे चाचा के लड़की हुई थी, उसे भी इसी कुँए में फेंक दिया गया। ये हमारे यहाँ बरसो से चला आ रहा है। तब से इसे "बाइयों का बेरा" कह कर पुकारा जाता है।
