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Preeti Sharma "ASEEM"

Inspirational

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Preeti Sharma "ASEEM"

Inspirational

बाहुबली

बाहुबली

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स्कूल में बच्चों को फिल्म दिखाने लेकर जा रहे थे।बच्चे बहुत ही खुश थे कि वह फिल्म देखने जा रहे हैं।अर्चना भी बहुत खुश थी और उत्साहित भी।कि कैसी होगी क्योंकि ज्यादातर साउथ इंडियन फिल्म्स हिंदी फिल्मों के मुकाबले लीक से हटकर होती है। फिल्म बहुत अच्छी थी। बाहुबली का एक दृश्य जिसमें देवसेना सेनापति के एक महिला को छेड़ने पर हाथ काट देती है और बाहुबली राज सभा में जब देवसेना को ही दोषी करार दिया जाता है तो कहता है कि तुमने छेड़ने पर हाथ काटा तूने उसकी गर्दन क्यों नहीं काट दी।अगर हर औरत यह हिम्मत दिखायें तो शायद औरतों पर होने वाले अत्याचार कम हो जाए । जबकि औरतों पर होने वाले अत्याचारों के लिए दोषी औरतों को ही ठहराया जाता है।अर्चना को सोच रही थी।हमारे समाज में नारी को देवी का दर्जा दिया ।वह सारी सृष्टि की पालन करती है। देखा जाए तो ऐसे कौन से कारण रहे होंगे जिन्होंने नारी के वर्चस्व पर सवाल उठाते उठाते उसे दीन हीन और संस्कारों के नाम पर बेडियों में बंधी हुई एक वस्तु बना दिया।


मनुस्मृति ग्रंथ जिसमें समाज एक सभ्य समाज को किस प्रकार सामाजिक तौर पर अपनी जीवनशैली को जीना चाहिए उन नियमों का एक महान ग्रंथ है।


उसी ग्रंथ के अध्याय 9 श्लोक 2से 6तक नारी की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए। यह निर्णय लिया कि समाज में नारी का जो भी रूप है चाहे वह मां है, बेटी है, पत्नी है ,बहन है उसे स्वतंत्रता का कोई अधिकार नहीं है वह पुरुष के प्राधीन होनी चाहिए। इस विकृति मानसिकता को देखते हुए नारियां युगो -युगो से अधीन होती हुई अपने स्वतंत्र वर्चस्व की कल्पना भी नहीं कर पाई वह पुरुष की आदिशक्ति होते हुए भी अपना आधा अधिकार भी नहीं पाई जबकि पुरुष और नारी दोनों प्रकृति ने समान अधिकार दिए हैं। एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं तो फिर एक व्यक्ति सर्वोपरि कैसे हो सकता है और वह भी पुरुष। मनुस्मृति के अध्याय 9में श्लोक 45 विवाह संबंधी संस्कार के लिए स्त्री को एक वस्तु की तरह दान किया जाता है यह कैसी प्रथम हुई जब किया है सृष्टि चलाने के लिए पुरुष और महिला के समान भागीदारी है फिर क्यों उसे वस्तु की तरह दान करके पुण्य कमाया जाता है वह वस्तु । जिससे उसका पति है छोड़ सकता है उसको गिरवी रख सकता है लेकिन कोई पत्नी यह अधिकार रखती है। फिर नारी के साथ यह अन्याय क्यों। नारी की परिभाषा एक दासी के रूप में ही की गई है जो हर रूप में बस पुरुष की सेवा ही करेगी। और वह उसे छोड़ ना दें इस हीन भाव से मैं से ग्रसित होती हुई हमेशा आतंकित रहेगी।


स्त्री को एक दान की वस्तु विवाह संस्कार में इससे यह साबित हो जाता है। कि पुरुष ने अपने वर्चस्व को कायम रखने के लिए नारी के वर्चस्व को दबा दिया। और इस प्रकार जाल बुने कि वह अपनी स्वतंत्र सोच का अनुकरण ही नहीं कर पाए सिर्फ घर की चारदीवारी में उसे घर परिवार से बाहर कभी निकलने ही नहीं दिया। जिसने निकलने की कोशिश की उन पर चरित्र हीनता का आरोप लगाकर उनके उत्साह को बराबर तोड़ा गया। स्त्री के विषय में अध्याय 9 श्लोक 17 जिसमें स्त्री को अबोषण चाहिए और वस्त्रों से प्रेम करने वाली वासन आयुक्त बेईमान , दुराचारी बताया गया है।


सोच करना होगा इस पुरुष की मानसिकता पर जिसने नारी जाति के लिए एक शब्द लिखे होंगे जबकि उस को धरती पर लाने वाली भी कोई नारी ही होगी अगर वह पुरुष अपनी मां का सम्मान नहीं कर सकता। तो वह अन्य नारी जाति का क्या सम्मान करेगा। मनुस्मृति की आड़ में समाज के जिन पुरुष ठेकेदारों ने इस ग्रंथ को अपने हित में अपने बच्चे सब को बनाए रखने के लिए नए नियम गाड़ी हैं उनमें स्त्रियों को एक वस्तु से ज्यादा सम्मान नहीं दिया है जिसमें अगर वह नारी जब तक खामोश है उसका सम्मान है लेकिन जब वह अपने हितों के लिए लड़ती है तो उसे चरित्रहीन की पदवी देकर उसके सम्मान को ठेस कर उसे मूर्ख बना दिया जाता है यह वर्चस्व की लड़ाई में नारी को सुबह उठना होगा क्योंकि समाज के निर्माण में जितना एक पुरुष भागीदार है उतनी ही नारे फिर दोनों में किस एक बड़ा या छोटा नहीं हो सकता भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप समाज को यही संदेश देता है कि इस धरा पर प्रकृति में पुरुष और नारी का समान महत्व है है ना एक दूसरे से कम है और ना ही दूसरा दूसरे से बड़ा सम्मान है और सम्मान गति से जीवन को चलाएं मान कर रहे हैं। काश दोस्तों को भी सही मायने में बराबरी का अधिकार हो ना कि एक दिन उनकी आजादी के लिए आवाज उठाई जाए।


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