अनामिका अनूप तिवारी

Drama Inspirational

4.6  

अनामिका अनूप तिवारी

Drama Inspirational

अटल सुहागन

अटल सुहागन

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आज सुबह चार बज़े ही रूपा उठ गयी थी। रूपा का गोरा रंग, तीखे नयन नक्श, लंबे काले बाल उस पर चटक जरीदार सलवार सूट पहन कर खुद को निहारें जा रही थी। "गोरी कहाँ चली बन ठन के?” दोनों छोटी ननदे छेड़ रही थी... रूपा भी इतराते हुए बोली, "मेरा फौज़ी आ रहा है अपनी इस गोरी के पास।” और तीनों ठहाके लगा कर हँस पड़ी।


"ये क्या हँसी ठिठोली कर रही हो तुम तीनो, जाओ नाश्ते पानी की तैयारी करो।” सास की रौबदार आवाज़ सुन कर तीनो धीरे से रसोई के तरफ खिसक ली... तभी फ़ोन बज़ उठा, रूपा लपक कर रसोई के बाहर आ गयी पीछे पीछे दोनों ननदे भी... बाबू जी फ़ोन उठा कर बात करने लगे, "ऊओह शेखर...” बाबू जी की एक करुण चीत्कार सुन कर वही पास में बैठी माँ आह आह करते बेहोश हो गयी, ननदों ने रूपा को बाहों में भर लिया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी... एक पल में रूपा का गोरा रंग स्याह पड़ गया, हलक सुख गया... चिल्लाना चाहा पर आवाज़ नहीं निकल रही थी। चारों तरफ निगाहें उठा कर देखा उसकी आँखे सिर्फ शेखर को ढूंढ रही थी, शिथिल पड़ गया उसका शरीर ज़मीन पर ऐसे पड़ा था जैसे वो प्राणविहीन हो गयी हो आँखों से आंसू छलक पड़े... तभी अचानक उठ कर रूपा ने अपने आंसू पोछे और सास को संभालने लग गयी। ननदे और ससुर उसका ये रूप देख हतप्रभ थे वो सबको संभाल रही थी...


अगले दिन जब रीति रिवाजों में बंधी रूपा को विधवा रूप देने की तैयारी चल रही थी... “रंगहीन वस्त्र ले आओ अब इसके लिए,” सास से बोला गया, रूपा आज चुप थी जो जैसा कह रहे थे वो कर रही थी। तभी लाल रंग की ज़रीवाली साड़ी सास ने उसके हाथ में थमाई उस पर लाल लाल चूड़ियां रखी थी। "जाओ पहन लो, आज के बाद तुम यही रंग पहनोगी, कुछ नहीं बदला है मेरे घर में, मेरे तीन बच्चे कल भी थे और आज भी है, एक फौज़ी की पत्नी विधवा नहीं होती वो तो सदा सुहागन रहती है। उस से भाग्यशाली औरत कौन होगी जिसका पति अपने देश पर कुर्बान हुआ हो, मेरी बहू विधवा नहीं अटल सुहागन है। इसका ये हक़ कोई नहीं छीन सकता!”


समाज़ के ठेकेदार जो रीति रिवाजों के नाम पर उसका दुःख बढ़ाने आये थे धीरे धीरे घर से निकलते जा रहे थे।


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