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Rekha Singh

Tragedy

4.6  

Rekha Singh

Tragedy

"अतिरिक्त "

"अतिरिक्त "

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गरम गरम घी के पराठों की खुशबू किचन को पार कर के, ड्रॉइंग रूम में आ रही थी, माँ बहुत कोशिश कर रही थी की पराठे जल्दी बन जाये नहीं तो छोटी और उसके पापा खाली दूध पी कर भाग जायेंगे, उसके प्लेट लगाते लगाते , छोटी ने जल्दी से एक पराठा ठूंसा और झट से दूध पी लिया।

"अरे, एक और पराठा खाना है, नहीं तो स्कूल में चक्कर आएगा" -- माँ दूसरा पराठा जल्दी से प्लेट में डालती हुई बोली । तब तक छोटी बैग टांग भी चुकी थी । उसके पापा भी नाराज होने लगे - "क्यों परेशान कर रही हो ? उसे जितना खाना है खाने दो।" अब माँ क्या कहती; वो परेशान नहीं कर रही थी, रोज ऐसे ही बहुत सारे छोटे छोटे प्यार उसके पास हमेशा रखे रहतें हैं। लेकिन किसी को दिखाई ही नहीं देता। और दिखाई देता भी है, तो किसी के पास उसे लेने का समय नहीं है।हर बार लोग उससे खीजते हैं, या फिर समझाने लगते हैं। 

 बड़ी को परेशानी है की माँ बहुत टोका टाकी करती है, उसके पापा को परेशानी है की माँ, बहुत और अक्सर बिलकुल बेकार के प्रश्न पूंछती है, जैसे कब आएँगे? क्या खाएँगे? कहाँ जा रहें हैं? फ़ोन पर किससे बात कर रहे थे? दादा और दादी को तो माँ का प्यार हमेशा ही बनावटी लगता है, उन्हें कभी नहीं दिखता की उनकी पुरानी यादों के पिटारे को माँ, पाँच सौ एक बार सुन चुकी हैं, और अगली बार फिर से सुनने को तैयार हैं।

 कभी कभी माँ, अपना बचा हुआ प्यार, कामवाली को, बिस्कुट के रूप में देती है, कभी रोज आने वाली बिल्ली को, आधा कप दूध के रूप में देती है। इतना सब कुछ देने के बाद भी, उसका बहुत सारा प्यार बचा ही रहता है। आज भी उसकी दिनचर्या वैसी ही चल रही थी। अचानक घंटी बजी। उसकी बड़ी बेटी थी, जो आज कॉलेज से जल्दी घर आ गयी।

 "क्या हुआ इतनी जल्दी ? क्लास नहीं हुआ क्या?" - माँ ने दरवाजा खोलते हुए पूछा।

बड़ी बेटी थोड़ी परेशान दिख रही थी - "मम्मी, आज हमारे कॉलेज में एक लड़की ने ऊपर की बिल्डिंग से कूद कर आत्महत्या कर ली।"

"अरे क्यों?"

"क्या पता" - बड़ी ने बैग टेबल पर रखते हुए कहा -" कुछ ज्यादा सेंसिटिव सी थी भी, जब देखो तब कहीं न कहीं रोती हुई ही मिल जाती थी , बेचारी एक बार मुझसे ऐसे ही कह भी रही थी की,मैं बहुत अकेली हूँ, दुनिया में कोई मुझे प्यार नहीं करता वगैरह। तब क्या पता था की वो ऐसा करने वाली है।" बोलते-बोलते बड़ी बेटी , बैग रखकर बाथरूम चली गयी, माँ वही खड़ी-खड़ी, अवाक्, गाल पर हाथ रखे सोचती रही - "अरे मासूम लड़की, मैं तुमसे क्यों नहीं मिली? कितना अतिरिक्त प्यार था मेरे पास, और कितना कम प्यार था तुम्हारे पास, मैं वो सब तुम्हे दे देती, काश मैं और तुम कभी मिल पाते, काश तुम मेरे पास आ पाती।"


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