अरे जा रे हट नटखट
अरे जा रे हट नटखट
तो फ्रेंड्स मैं आज लेकर आई हूं नैनसुख और प्रियतमा की होली की दास्तान।
तो फ्रेंड्स जैसा कि आपको पता है नैनसुख जी तो थोड़े सीरियस टाइप के हैं। वैसे तो वो किसी त्योहार को मनाने में ज्यादा उत्सुक नहीं होते पर इस बार होली के दिन उनकी छुट्टी थी, तो इस बार उन्होंने घर में यह घोषणा कर दी कि कल हम भी होली मनाएंगे। प्रियतमा खुश तो हुई सुनकर, लेकिन कहीं ना कहीं उसे लग रहा था कहीं यह होली यादगार के साथ-साथ कुछ खतरनाक ना हो जाए, क्योंकि प्रियतमा की छठी इंद्री बहुत तेजी से काम करती है।
तो जैसे ही सुबह हुई, चाय नाश्ता करके नैनसुख और प्रियतमा होली मनाने के लिए पहुँचे कॉलोनी में, तो वहाँ पर डांस, खाना-पीना और खास तौर पर ठंडाई का भी इंतजाम था। प्रियतमा तो बहुत खुश थी कि आज बहुत समय बाद वो होली मनाएँगे। सब बड़ी मस्ती कर रहे थे, इतने में प्रियतमा ने देखा, नैनसुख दो गिलास ठंडाई लेकर आ रहे हैं। पहले तो उसने मना किया क्योंकि उसे थोड़ा शक था कि कहीं इसमें भांग न मिला रखी हो, पर नैनसुख के बार-बार कहने पर उसने एक गिलास ठंडाई पी ली। यहाँ हमारे नैनसुख वह तो अपने गिलास में एक्स्ट्रा भाँग डलवा कर आए थे।
दो-तीन गिलास उन्होंने भाँग वाली ठंडाई पी ली। उसके बाद कभी ना नाचने वाले नैनसुख डीजे पर नाच रहे थे और साथ ही गा भी रहे थे- 'रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे.......'
प्रियतमा को भी थोड़ी भाँग चढ़ने लगी। वह भी बिंदास नाचने लगी। फिर दौर शुरू हुआ नैनसुख के प्रवचनों का। नैनसुख मेडिटेशन करते थे और प्रवचन सुनते थे, तो बस आज नैनसुख बाबाजी बन गए। वर्षो से जितना ज्ञान भर रखा था वो आज उछल-उछल कर बाहर आ रहा था। माइक लेकर लगे प्रवचन सुनाने-
"यह संसार मिथ्या है, धन तो हाथ का मेल है, क्या लेकर आया था बंदे क्या लेकर जाएगा, कर्म कर फल की चिंता मत कर आदि आदि।" पूरी रामायण गीता आज नैनसुख जैसे कंठस्थ करके आए हों।
खैर, जैसे-तैसे होली मनाई उन्होंने। प्रियतमा की एक फ्रेंड और उनके हस्बैंड उनको घर लेकर गए। घर जाकर नैनसुख तो सोफे पर बैठ कर कभी हँसते, कभी रोते तो कभी प्रवचन देने लगते और प्रियतमा वह अपनी फ्रेंड से बोली, "अरे तुम लोग मेरे घर आए हो तो चलो मैं तुम्हें कुछ बना कर खिलाती हूँ।"
फ्रेंड के लाख मना करने पर भी वो घुस गई किचन में मैगी बनाने। पैन में पानी डाला फिर मैगी और बोली- "अरे मैगी तो पानी में डूब गई, मैगी तो पानी में डूब गई।" जब तक मैगी नहीं बनी तब तक उसका यह गाना चालू था। प्रियतमा की फ्रेंड के हस्बैंड वो तो बेचारे नैनसुख के प्रवचन को सुनने के लिए बलि का बकरा बने बैठे थे।
खैर जैसे-तैसे मैगी खाई गई।
1-2 घंटे तक उनका यह ड्रामा चलता रहा, फिर उनकी 8 साल की बेटी को समझा कर प्रियतमा के फ्रेंड और उनके पति चले गए। उनकी 8 साल की बेटी आज खुद को घर में बड़ा महसूस कर रही थी। कभी मम्मी को देखती तो कभी पापा को। कभी दोनों के लिए पानी में नींबू निचोड़कर लाती ताकि भाँग जल्दी से उतरे और उसके मम्मी-पापा पहले जैसे हो जाए।
कभी नैनसुख हँसने लग जाते तो 10-15 मिनट तक हँसते ही चले जाते। रोते तो रोते ही चले जाते और कहते यह बरसों का रोना था मेरा जो दबा हुआ था, आज निकला है यह तो सदियों की हँसी थी जो आज खुल कर बाहर आ रही है। बच्ची बेचारी टीवी देखने की बजाए आज उनका ड्रामा देख रही थी, और तो और साथ में वीडियो रिकॉर्ड भी कर रही थी ताकि बाद में उनको दिखा सके, उन्होंने क्या ड्रामे किये। प्रियतमा की भाँग तो रात तक उतर गई लेकिन नैनसुख की तो अगले दिन जाकर ही उतरी।
जब अगले दिन उनकी बेटी ने उनको वीडियो दिखाएं तो नैनसुख ने तो कान पकड़ लिए जिंदगी में- "कभी भूल कर भी भाँग नहीं पीऊँगा।"
प्रियतमा खूब गुस्सा हो गई, कहाँ चली थी होली मनाने और यहाँ सारा मजा खराब हो गया, लोगों के सामने मजाक बना वो अलग।
अब नैनसुख को रूठी हुई प्रतिमा को मनाना था और जो बहुत ही मुश्किल काम था, पर अपने नैनसुख भी खतरों केे खिलाड़ी से कम नहीं थे। उसे मनाने के लिए अपने हाथों से अदरक- इलायची वाली बढ़िया सी चाय बनाई साथ में सैंडविच और एक लाल गुलाब लेकर पहुँच गए अपनी प्रियतमा को मनाने।
उन्हें आते देख प्रियतमा भी गाने लगी- "अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूँघट पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे........"
