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pooja bharadawaj

Drama Tragedy

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pooja bharadawaj

Drama Tragedy

अपना ही कर्म

अपना ही कर्म

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सब का कर्म जन्म लेने से अंत तक साथ चलता पर न जाने क्यों लोग अनजान बन कर खड़े सोचते ऐसी ही एक कहानी या एक सच्ची घटना थी। मेरे घर के सामने एक मंदिर का पुजारी रहता था। मुझे नहीं पता की वो हिंदू था या मुस्लिम, सिख, ईसाई। मेरे लिए वो मंदिर का एक पुजारी था। और सब से घटिया इंसान जिससे इंसान कहने में भी शर्म आती थी। मदनलाल की दिनचर्या थी की वो रोज़ सुबह जल्दी उठता और मंदिर को धोता और सफ़ाई करता। नहा धोकर फिर दिया जलता। और उसके बाद अपनी पत्नी को हमेशा गाली दे कर बुलाता और रोड की साफ सफाई में लग जाता। उसकी पत्नी भी उसकी तरह ही थी वो भी कभी अच्छे से बात नहीं करती थी। उसकी एक बहु और बेटा और दो पोते थे। उनको वो प्यार करता था पर छोटे वाले को ज्यादा वो हर समय उसकी गोदी में होता था। और मदनलाल अपने पोते को अपनी यानी अपनी बहु मंजरी को गली देना सिखाता था। और खुद भी बहु को मरता और गाली देता था। कई साल ऐसे ही बीत गए। गाली गालोच मार पिटाई में अब तो मंजरी को आदत पड़ गई थी पर कभी कभी वो मेरे घर आ जाती थी। क्योंकि मेरा घर मदनलाल के सामने वाला था। तो कभी दिल हल्का करने के लिए आ जाती थी। मैं उसके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। तो हमारी रोज़ बात होती थी। मैंने एक बार भाभी जी से कहा आप तलाक क्यों नहीं ले लेते इतना दर्द सहते हो। भाभी बोली बेटा हमारे यहां तलाक नहीं होता नहीं तो मायके वाले भी नहीं रखेंगे मुझे तो मैं कहा जाऊंगी। कह कर भाभी घर चली गई। एक दिन गली में एक गाय आ गई। मैंने उसको रोटी दी और वो खा कर मदनलाल के घर चली गई। मदनलाल ने उसे रोटी नहीं दी और उसको भागने लगा। गाय ने मदनलाल के घर के सामने गोबर कर दिया। मदनलाल को गुस्सा आ गया। और उसने जो गाय को पीटना शुरू किया, बिचारी गाय बिलबिला गई भागी पर मदनलाल ने उसका पीछा नहीं छोड़ा और अगली गली तक उसको मरता रहा। जहां हमारे देश में गाय को माता कहा जाता है वहां एक गाय पर अत्याचार हो रहा था। पर कर्म सबके सामने एक ना एक दिन सामने ज़रूर आता है।

ये तो एक बात मदनलाल के घर बहुत से लोग किराये पर रहते थे। उनमें से एक भाई बहन भी रहते थे। एक दिन एक्सीडेंट में उसकी छोटी बहन का देहांत हो गया। और ठंड का मौसम था। वो अपनी बहन का पार्थिव शरीर घर लेकर आया पर मदनलाल ने उसको घर में जाने से मना कर दिया और ये सब नज़ारा मैं अपने बालकनी से देख रही थी। मुझे बहुत भूरा लगा की कोई इंसान इतना कैसे गिर सकता है।

कुछ दिनों बाद मदनलाल बीमार होने लगा। धीरे धीरे उसकी तबीयत बिगड़ी रही थी। चेक करवाया तो पता चला की उसको केंसर है। पर इलाज के लिए उसके बेटे के पास पैसे नहीं थे। धीरे धीरे उसकी तबीयत बिगड़ती चली गई और कुछ दिनों बाद उसके कीड़े पड़ने शुरू हो गए और मदनलाल का देहांत हो गया। उसको जब लेकर गए तो उस दिन बहुत बारिश हो रही थी। हमें बाद में पता चला कि उसको पेट्रोल डाल कर मुक्ति दी गई। ये था मदनलाल का कर्म।

जो कभी ना कभी सामने आ जाते है। पर भगवान से प्रार्थना है कि यदि कोई हमसे गलती हुई हो तो माफ करें। तेरे बालक है तेरे लिए ही समर्पित है।



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