shalini Shambhavi

Fantasy

4  

shalini Shambhavi

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अनोखा कानून

अनोखा कानून

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किसी नगर में एक अनोखा कानून था। वहां राजा का चुनाव प्रजा द्वारा ही किया जाता था वह भी केवल एक वर्ण के लिए इसलिए वहां कोई स्थाई राजा नहीं बन पाता था। प्रजा का नियम था कि वर्ष के पहले दिन जो भी व्यक्ति नगर में प्रवेश करता वे उसको ही राजा बना देते फिर वर्ष भर उसकी आज्ञानुसार ही कार्य करते और वर्ष के अंतिम दिन उसे भयानक जंगल में छोड़ आते जहां वह जंगली जानवरों द्वारा भक्षण कर लिया जाता याभूख प्यास से तड़पकर दम तोड़ देता।

इसी नियम के अनुसार प्रजा जनों और मंत्रियों ने वर्ष के पहले दिन जैसे ही नगर का द्वार खोला पड़ोसी देश के युवक ने नगर में प्रवेश किया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता सैनिकों ने उसे पकड़ लिया और महल ले आये। प्रजाजनों और मंत्रियों के मध्य उसे अनोखे कानून के विषय में बताकर अपना राजा मान लिया गया।।

युवक असमंजस में पड़ गया परंतु उसके पास कोई चारा न था।वह निर्धन तो था परन्तु बुद्धिमान भी था, उसने सोचा कि चलो एक साल तो आराम से कटेगा।। अगले दिन प्रातः नये राजा के रूप में उसका राजतिलक कर दिया गया। राजा बनते ही उसने सबसे पहले मंत्रियों की एक सभा बुलाई। राज्य की न्याय व्यवस्था,धन संबंधी लेखा जोखा, व्यापार व्यवस्था और अन्य कार्यों की पूर्ण जानकारी प्राप्त की। मंत्रीगण उसकी बुद्धिमत्ता से बहुत प्रभावित हुए।

राज्य से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के बाद उसने मंत्री से कहा,"मैं उस स्थान को देखना चाहता हूं जहां मुझसे पूर्व राजाओं को छोड़ दिया जाता था।" राजा के आदेशानुसार तुरंत उस स्थान पर जाने का प्रबंध किया गया। भयानक जंगल और उसमें यहां वहां पड़े कंकाल देखकर युवक काँप गया मगर फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। महल लौटकर उसे रातभर नींद नहीं आई। अनेक विचार उसके दिमाग में आने जाने लगे।।

अगले दिन सभा में राजा ने मंत्रियों को आदेश दिया कि महल से उस जंगल तक एक पक्की सड़क का निर्माण किया जाए। और साथ ही वहां एक भवय महल का निर्माण किया जाए।

 मंत्री स्तब्ध थे परन्तु राजा के आदेश को तुरंत अमल में लाया गया।

प्रजा के हित का ध्यान रखते हुए, राजा प्रतिदिन भेष बदलकर नगर में भ्रमण करता। ज़रुरत पड़ने पर यथासंभव प्रजाजनों की सहायता करता। व्यापारियों को अपने व्यापार को सुचारू रूप से चलाने के लिए राज्य से ऋण दिया जाने लगा। किसानों के हित के लिए छोटी छोटी नालियों को नहरों से जोड़कर सिंचाई की व्यवस्था की गई। जगह जगह तालाबों और कुओं का निर्माण होने लगा।

 इन सबका परिणाम यह हुआ कि व्यापार व्यवस्था दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करने लगी। फसलें लहलहा उठीं, राज्य की आमदनी भी बढ़ गई। प्रजा के विवादों को सुलझाने के लिए वह प्रतिदिन एक सभा बुलाता, यथासंभव विवादों का निपटारा वह बड़ी सूझबूझ से करता। कभी कभी तो वह रात भर उनकी समस्याओं का समाधान ढूंढने में व्यस्त रहता।राजा की सूझबूझ और बुद्धिमत्ता से राज्य में खुशहाली छा गई। उसके व्यवहार से मंत्रीगण स्तब्ध थे वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि यह कैसा व्यक्ति है जो अपने लिए कुछ भी नहीं करता केवल प्रजा के हित के लिए ही सोचता है। उन्हें ऐसे ही राजा की अपेक्षा थी।

चारों ओर राजा की प्रशंसा होने लगी।

समय बीतता गया। कब एक वर्ष बीत गया पता ही नहीं चला,अब राजा के वन में जाने का समय हो गया था। जब वह जाने के लिए निकलने लगा तो यह देखकर हैरान रह गया कि सारे प्रजाजन और मंत्री महल में उपस्थित थे। मंत्री बोले,"महाराज अब आपको वन में जाने की आवश्यकता नहीं है। हमें आप जैसे योग्य राजा की ही तलाश थी वह हमें मिल गया। अब आप ही हमारे राजा रहेंगे और इसी तरह राज्य को उन्नति के शिखर पर ले जाएंगे। अब राजा महल में ही रहने लगा। सेनापति ने अपनी पुत्री के साथ उसका विवाह कर दिया। इस तरह वह एक न्यायप्रिय शासक के रूप में विख्यात हुआ।

और अपनी सूझबूझ से उस अनोखे भयंकर कानून को समाप्त करने में भी सफल हुआ।

जो दूसरों के हित में ही अपना हित समझता है वही श्रेष्ठ है।।


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