अनकहे रिश्ते
अनकहे रिश्ते
इक अनदेखा अनजाना रिश्ता तुझ सँग मैंने बाँध लिया था, बिन बोले, बिन कहे इक दूजे के हो गये हम-तुम। ढुँढती हूँँ मैं आज भी तुमको उन गलियों में, उन कुचों में,। कभी जाकर ताकती रहती तुम्हारे उस सूने आँगन में। जिस को तुम छोड़ गये हो, ना जाने अब तुम कँहा गये, कुछ तो कहते, कुछ तो बताते, क्या तुम भी तो वही थे चाहते,। जो मेरा दिल था कहता कभी ना जाना मुझे छोड़ कर, ना जाना यूँ दिल को तोड़ कर, इक मूक, अनकहा रिश्ता था हमारा। याद करो वो पहला दिन, सामने वाले घर में जब तुम paying guest बन कर आये थे। मेरा भाई भी उसी college में था पढ़ता, जहाँ तुम पढ़ने आये थे।
पहले दिन जब college से लौट कर घर (भाई सँग) पर तुम आये तो इक देखूँ मैं भी तुमको, तुम भी टकटकी लगाए थे। ना जाने कैसा ये अहसास था, जो एक ही नज़र में बँधा गया हमको, आँखो ही आँखो में नशे का जाम पिला गया हमको। शायद मुझे देखने के बहाने भाई मेरे से मिलने आते थे, कभी माँ से प्यार जताते, कनखियों से ताकते जाते तुम,।। ना तुम कह पाए, ना मै कह पाई अनकहा रिश्ता छूट गया, दूर हुए है , मिलना छूटा रिश्ता तो नही टूटा है, जँहा भी तुम खुशहाल रहो, मै भी खुशियाँँ बाटूँगी, मेरे झोली में तो तुमने काँटे डाल दिये, यादों को तेरी सीने से लगा कर जीवन यूँ ही गुजा़रूँगी। काश इक बार तो कह पाता, जो अनछुआ, अनकहा रिश्ता था बना हमारा, काश कोई उसकी तस्वीर बन पाती, काश उसे इक नाम मिल जाता, काश कोई कह पाता।