अनजान के साथ

अनजान के साथ

4 mins
493


ठंडक लग जाने की वजह से मुझे बुखार हो गया था... हालाँकि पापा के साथ डॉक्टर के पास जाकर दवा ले लिया था और खाना खा कर जल्द ही सो गया। सुबह साढ़े पांच बजे ही स्टेशन से ट्रेन पकड़नी थी... शाम तक ट्रेन नई दिल्ली पहुँचने की संभावना थी... परसों यानी सोमवार को एक मल्टीनेशनल कंपनी में मेरा एक इंटरव्यू था। सुबह चार बजे ही उठकर जल्दी से तैयार हुआ। मम्मी ने चाय टोस्ट दिया झटपट चाय पी और पापा-मम्मी का पैर छूकर बाइक लेकर निकल गया।


मम्मी ने बुखार की दवा देते हुए कहा कि, “बेटा... दोपहर व शाम को खा लेना जिससे इंटरव्यू देने में दिक्कत न हो।” और कई हिदायत जाते जाते मम्मी ने दे दी। एक बात विशेष रूप से कही, “बेटा अमन, ट्रेन में किसी का कुछ दिया न तो खाना न ही पीना!”


मैंने मम्मी से कहा,” बेमतलब परेशान हो रही हो मम्मी! अब मैं बच्चा नहीं हूँ... मैं बड़ा हो गया हूँ।”


जाड़ा जबरदस्त पड़ रहा था और शीतलहरी भी चल रही थी। मैंने धीरे धीरे बाइक चलायी क्योंकि रास्ता दिखाई ही नहीं दे रहा था। स्टेशन पहुँचते साढ़े पांच बज गए, ज्यों ही पहुंचा ट्रेन आ गई। जल्दी से दौड़ कर अपने डिब्बे को देखकर घुस गया, रिज़र्वेशन पहले से ही मैंने करा लिया था। पर यह क्या! डिब्बे से दस-बारह लोग सब उतर गए... केवल एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति डिब्बे में बैठे थे।चूंकि भयंकर जाड़ा पड़ रहा था इसीलिए यात्री पूरे ट्रेन में बहुत ही कम थे... खैर ट्रेन चल पड़ी... कुछ लोग ट्रेन में चढ़े जरूर पर अलीगढ़ आते आते उतर गए... फिर मैं और वह शख़्स ही उस डिब्बे में रह गए... तब तक सूचना प्रसारित होने लगी कि पूरे प्रदेश में दंगा फैल गया है... कृपया सावधान रहें व अनावश्यक किसी स्टेशन पर न उतरे...


दोपहर हो गई थी, मुझे भूख भी लग रही थी, मैंने मम्मी का दिया नाश्ता निकाला और खाने लगा। उसके बाद मुझे दवा भी खाने को थी पर यह क्या... पानी लेना तो स्टेशन से जल्दबाजी में मैं भूल ही गया! दंगे की वजह से अगले स्टेशन पर सारी दुकानें भी बंद हो गई थी। साथ ही कोई वेंडर भी नहीं दिखाई दे रहा था।अब क्या करूँ? कुछ कुछ बुखार भी चढ़ रहा था खाना खाने के बाद प्यास भी लग रही थी। दवा भी बिना पानी के कैसे खाता? मैं तो परेशान हो गया, यदि दवा न खायी, तो कल इंटरव्यू कैसे दूँगा? बड़े मुश्किल से किसी बड़े कंपनी में इंटरव्यू का मौका मिला था। अब क्या करूँ?


मुझे परेशान होते देख सामने बैठे व्यक्ति ने कहा, “बेटा क्या हुआ? क्यों परेशान हो? मैं कुछ हेल्प करूँ?”


मैंने कहा, “नहीं, बहुत बहुत शुक्रिया।”


उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा, “मैं दिल्ली में एक इंटर कॉलेज में शिक्षक हूॅं। अपने गाँव गया था, लौट रहा हूँ। बेटा तुम कहाँ जा रहे हो?”


मैंने उनको अपने इंटरव्यू की बात बताई। फ़िलहाल कुछ और बातें हम दोनों के बीच हुईं।


”अच्छा बेटा बता सकते हो कि क्यों तुम इतने अधिक परेशान हो?”


मुझे भी लगा कि अच्छे आदमी है अपनी बात बताने में कोई हर्ज नहीं है। मैंने कहा कि, “पानी स्टेशन से खरीदना जल्दी में भूल गया। मुझे प्यास लग रही है और दवा भी खानी है... मुझे बुखार है...”


इतना सुनते ही उन्होंने अपने बैग से पानी की बोतल निकाली। मुझे देते हुए बोले, “बेटे पानी भी पी लो दवा भी खा लो।”


मुझे झट मम्मी की बात याद आ गई किसी से भी कुछ न लेना न किसी का कुछ दिया पीना। मैंने कहा, “नहीं नहीं रहने दीजिए। दिल्ली पहुँच कर पानी ले लूँगा।”


”अरे बेटा, दिल्ली अभी दूर है और दंगा भड़कने की वजह से न तो तुम्हें कही पानी मिलेगा न ही कोई वेंडर आएगा... फ़िलहाल बेटा तुम्हारी जैसी इच्छा।”


कुछ देर और गुजरे कि लगा बुखार बढ़ रहा है, अगर दवा नहीं खायी तो तबीयत बिगड़ जाएगी। प्यास भी लग रही थी, पर मम्मी की सीख किसी अनजाने का दिया... याद आने लगी... मेरी हालत ख़राब होने लगी, मरता क्या न करता वाली कहावत के अनुसरण में मैंने उस अनजान व्यक्ति से पानी लिया! पिया और दवा खायी, जान में जान आई।


शाम के सात बजे तक नई दिल्ली स्टेशन आ गया। मैं और वह अनजान व्यक्ति दोनों लोग उतरे। मैंने उस अनजान व्यक्ति को बहुत बहुत धन्यवाद दिया जिसके साथ मैं दिन भर रहा और जिसने पानी की बोतल देकर मेरी सहायता भी की।


मैं होटल पहुँचते पहुँचते लगभग ठीक लग रहा था, बुखार भी नार्मल हो गया था। दूसरे दिन मैंने इंटरव्यू दिया, मेरा चयन भी हो गया था। आज एक साल हो गए मुझे नौकरी करते हुए। आज भी याद करता हूँ वह पूरा दिन एक अनजान व्यक्ति के साथ।


Rate this content
Log in

More hindi story from लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

Similar hindi story from Drama