RAJESH KUMAR

Tragedy

2.6  

RAJESH KUMAR

Tragedy

आत्मसमान की लड़ाई(निर्भया)

आत्मसमान की लड़ाई(निर्भया)

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 यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।

 

जो कुछ 'निर्भया' के साथ देश की राजधानी दिल्ली में जो हुआ ,आप सब जानते हैं(निर्भया 16 दिसम्बर 2012)।

अभी भी देश में हो रहा है, कितनी ही निर्भया इन  क्रूर घटनाओं से लगातार गुजर रही है। दोहराने का कोई मतलब नहीं, और गुस्सा व प्रतिशोध बढ़ता है। मानवता के नाम पर कलंक है, ये पाशविक घटनाएं है I इस प्रकार की अनैतिक, संवेदनहीन, अमानवी,घटनाएं कई प्रश्न खड़ी करती है? यह घटना या घटनाएं ना रुक रही है, ना रोके जा रही है ? जो हो रहा है वह यह -

राजनीतिक फायदा नुकसान को देख कर बातें की जा रही हैं।

 ब्लॉग लिखे जा रहे हैं ।

अखबारों की सुर्खियां बनाई जा रही है।

 फेसबुक ,व्हाट्सएप ,ट्वीटर पर कमेंट  लिखे जा है ।

टीवी पर डिबेट प्राइम टाइम पर हो रही है।

 बात यह नहीं है कि या सुर्खियां ना बने या डिबेट ना हो। बात यह महत्वपूर्ण है, इन सब बातों से बदलाव हो रहा है या नहीं? यदि नहीं तो सब बेकार है l 

कोरोना लॉकडाउन के दौरान भी ऐसी वीभत्स घटनाएं देखने को मिली। बातें इन मुद्दों पर होना चाहिए कि, ऐसा बार- बार क्यों हो रहा है? जबकि फांसी या मौत की सजा भी दी जा रही हैl (दिनांक 20 मार्च 2020 निर्भया के दोषियों को फांसी देकर ,अमली जामा पहना दिया गया)। इन सब को देखकर जंगलराज की याद आती है। जहां कोई नैतिकता नहीं होती ,बस होता है तो शक्तिशाली का जीवित रहना। जो कमजोर है ,उसके लिए कोई जगह नहीं। 

क्या यह सभ्य समाज के लिए ठीक है ? यदि नहीं तो क्या प्रयास करने चाहिए ,कोई भी देश कितना भी तरक्की कर ले, यदि महिला/ स्त्रियों का सम्मान नहीं कर सकता उसकी भौतिक व आर्थिक तरक्की का कोई अर्थ नहींl

नैतिकता का पतन इस हद तक हो चुका है कि, यदा-कदा अखबारों में, टेलीविजन में समाचारों से सूचना मिलती रहती है ,परिवारों में लड़कियां बच्चियां व औरतें सुरक्षित नहीं रह गई है। भाई-बहन, पिता बेटी का रिश्ता भी कलंकित हो रहा है। सोचने से भी आत्मा सिहर जाती है। सिर्फ पढ़ लेना , जान लेना ही काफी नहीं है, ठोस उपाय ढूंढे बिना समाज सुरक्षित नहीं हो सकता।

 

 मुझे लगता है शिक्षा व हथियार है जिससे ऐसी भयानक,वीभत्स  घटनाओं को बंद किया जा सकता हैl स्कूलों में कॉलेजों में छात्रों को नैतिकता का पाठ सिखाया पढ़ाया जाए तो निश्चित रूप से ऐसा नहीं होगी़ । छोटी उम्र से ही लड़कों को सिखाया जाए महिलाओं व लड़कियों का सम्मान क्यों जरूरी है? जिसके लिए भारत को जाना जाता है ,दुसरे देश भी सदियों से हमारी और देखते है । लेकिन अब जो हो रहा है वो हमारी उस छवि के एक दम उल्ट है। जो दिखाता है की आज की पीढ़ी के कुछ पथभ्रष्ट युवा लोग गलत दिशा मे आगे जा रहे है। हम उन नासमझों  को समझाने में असफल रहे। निर्भया की जगह आप की बहन,बेटी,माँ होती तो ? ये समझ ये सोच जल्द से जल्द सब लडकों को देना जरूरी है I रही सही कसक इन्टरनेट ने पूरी कर दी , बच्चों व युवाओं को नही पता उसके लिए क्या ठीक है, क्या गलत,कोई समझाना नही चाहता I सभी को हर स्तर पर यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

केंद्रीय विद्यालय संगठन के सभी विद्यालयों में किशोरवय शिक्षा अनिवार्य है । जिसमें समय-समय पर छात्र छात्राओं -छात्र से संबंधित समस्याओं के बारे में संवाद किया जाता है । चाहे वह धूम्रपान संबंधित हो या टीनएज छात्र छात्राओं के संबंध में । विशेषज्ञ एक्सपर्ट टीचर  विद्यालय की पूरी टीम द्वारा ,प्राचार्य के निर्देशन में छात्र छात्राओं को मुखर होने का मौका दिया जाता है ।

लैंगिक भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं,  पुरुषों  को शारीरिक रूप से महिलाओं व लड़कियों से बेहतर मानना गुजरे जमाने की बात है। महिला को सिर्फ भोगविलास का माध्यम मानना पूरे सामाजिक मूल्यों को समाप्त कर देगा।

सभी शिक्षण संस्थाओं को ऐसे ही प्रयास करने होंगे ,वो सब अपने अनुरूप ये सब कर भी रहे है,लेकिन चिंता की बात है,निर्भया जैसी घटनाओं में कमी नहीं आ रही।

कोराना की तरह सब को प्रयास करना बहुत जरूरी है,दूसरा कोई रास्ता नहीं।

इसके अलावा भारत देश में बहुत से अभिभावक शिक्षा का गुणवत्ताहीन होना भी बड़ा कारण है।  सरकारी स्कूलों में जाकर समय व्यतीत करना है समझते है ,परिवार द्वारा आय अर्जित करना व  अपने बच्चों से भी यही अपेक्षा करना बेहतर समझते है। 

उन्हें भविष्य में रोजगार की संभावनाएं बहुत कम नजर आती है। सभी को गुणवत्ता युक्त शिक्षा(समावेशी) जहां छात्रों का  कौशल  विकास के साथ-साथ नैतिक व बौद्धिक विकास भी हो ,विकृति को कम या खत्म किया जा सकता है। ऐसी सोच विकसित करने की आवश्यकता है। 

हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी व शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक जी इस और तत्परता से कार्य कर रहे हैं। वह नई शिक्षा नीति को लागू करने की कोशिश कर रहे हैं ,जो जल्द ही साकार होगी।

 

दोनों महिला पुरुष समाज के एक गाड़ी के दो पहियों के समान हैं। एक को छोटा बड़ा करके देखोगे तो गाड़ी कहीं भी नहीं पहुंचेगी l सूचना क्रांति के दौर में लड़कों को सही जानकारी व उच्च कोटि का मनोरंजन को पहुंचाना चाहिए। युवाओं के लिए कोई आदर्श नहीं रह गए, पैसा कमाना , एकाकी  जीवन जीना ही घ्येय  बन गया है l बाल्यकाल से लड़कों को नैतिकता से जोड़े  रखें, लगातार  बार- बार उसको नैतिकता आधारित पाठ्यक्रम के साथ जोड़ना ही होगाI हमारे यहां ऐसे साहित्य की कोई कमी नहीं रामायण ,गीता ,महाभारत आदि आदि, जो उच्च आदर्श स्थापित करती है। स्त्री का सम्मान ना होने पर क्या से क्या हो सकता है ? यह भी ग्रंथों में बताया गया है।

 कानून अपना काम करें और समय से करे उनका काम है। ऐसी परिस्थिति ही ना पाए, ये हम सब को मिल कर करना है। जो छात्र आज के समय में कक्षाओं में बैठा है,उसके लिये अभी से जरूरी है I उसको नकारात्मक पहलुओं को बताया जाए। क्योंकि ऐसे कर गुजरने के बाद व्यक्ति सामाजिक दृष्टि से भी मृत प्राय है। युवाओं की शक्ति को सही दिशा देना समाज का काम है, उनका सर्वांगीण विकास हो ,ताकि देश दुनिया का चौमुखी  विकास हो I यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी निर्भया को, कि हम महिलाओं के लिय देश को सुरक्षित बना सकेंI तभी देश  व विश्व सच्चे अर्थों में सभ्य कहलायेगा व गौरव का अनुभव करेगा।

 


 

 



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