आशी का फैसला
आशी का फैसला
आशी का बचपन से लेकर जवान होने तक का समय अपनी सौतेली माँ के साए में बीता था। उसकी माँ तो उसे जन्म देते ही परलोक सिधार गई थी। अतः उसे अपनी माँ का प्यार तो नसीब हुआ ही नहीं बल्कि सौतेली माँ का सौतेलापन ही हिस्से में आया। बीस साल की उम्र में ही उसकी शादी एक अधेड़ से कर दी गई।
पता नहीं आशी कैसी किस्मत लिखवा कर लाई थी। उसने सोचा था चलो अब मज़े से ज़िंदगी कटेगी और पति का प्यार भी मिलेगा पर पति का प्यार तो शराब थी। वह जो भी कमाता सब शराब में उड़ा देता था। जब घर का खर्चा चलाना भी मुश्किल हो गया तो आशी ने घरों में चौका बर्तन एवं सफाई का काम पकड़ लिया था। इसी बीच उसके एक बच्चा भी हो गया था। आशी बच्चे को अच्छी परवरिश देना चाहती थी इसलिए वो बार बार अपने पति से प्यार से शराब की लत छोड़ने की गुहार करती रहती थी पर बदले में उसे पिटाई ही सहनी पड़ती थी। अब तो आशी का पति बिल्कुल नाकारा हो गया था। काम पर जाना ही नहीं चाहता था। आशी जो पैसे कमाकर लाती वह भी उससे छीन लिया करता था और शराब में उड़ा देता था। घर में रोज़ क्लेश रहने लगा था।
अब बच्चा भी बड़ा हो रहा था। आशी नहीं चाहती थी कि बच्चा हर वक्त घर में क्लेश का वातावरण देखे। वह उसे अच्छा माहौल देना चाहती थी और उसे पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहती थी। अब उसने निर्णय कर लिया था कि वह अपनी मेहनत की कमाई शराब में नहीं उड़ने देगी बल्कि अपने बच्चे का भविष्य संवारेगी। आशी शहर छोड़ कर अपने बच्चे के साथ दूसरे शहर के लिए रवाना हो गई ताकि नए सिरे से ज़िन्दगी शुरू कर सके। एक माँ अपने बच्चे की भलाई के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है और आशी ने यही उदाहरण पेश किया था।