आरती-दर्शन
आरती-दर्शन


देश के सबसे बड़े मंदिरों में से एक था वो मंदिर, वहाँ आरती करने के लिए बड़ी लम्बी पंक्तियाँ लगती थीं। चाहे कितना भी धनवान-शक्तिवान क्यों न हो, वहां कतार में आने के बाद ही आरती कर सकता था। लेकिन आज उस 15 साल के साधारण से लड़के का अनुनय-विनय मुख्य पुजारी भी अस्वीकार नहीं कर सके और कतार में न होने पर भी उसे विशेष आरती की अनुमति दे दी।
आरती के बीच में पुजारी ने कहा, "अब अपनी आँखें बंद करो और प्रभु का नाम लो।"
लेकिन उसने आँखें बंद नहीं की।
पुजारी ने फिर कहा, "आँखें बंद करो।"
उसने अस्वीकार की मुद्रा में धीरे से सिर हिला दिया, पुजारी ने आवाज़ में हल्का सा क्रोध प्रकट करते हुए कहा, "आरती विधि के अनुसार ही होगी, तुम्हारे अनुसार नहीं।"
उसने पुजारी से हाथ जोड़ कर कहा, "पुजारी जी, मेरी माँ की बहुत इच्छा थी तीर्थयात्रा करने की और इस मंदिर में आरती करने की भी, इसलिये...."
"ओह! वो क्या अब नहीं हैं ?" पुजारी ने पूरी बात का अनुमान लगाते हुए कहा।
उसकी आँखों में नमी आ गयी और उसने ना में सिर हिला दिया।
"ॐ शांति, हरी इच्छा प्रबल है। लेकिन इसका आँखों से क्या...."
उसने पुजारी की बात काटते हुए कहा, "मृत्यु पश्चात उनकी ही तो दी हुई हैं, मैं तो अँधा था पुजारी जी। बंद कर लूँगा तो माँ आरती के दर्शन नहीं कर पायेगी।"