Mayank Kumar 'Singh'

Drama

5.0  

Mayank Kumar 'Singh'

Drama

आंखों की चमक

आंखों की चमक

4 mins
300


उसकी आंखों की चमक भी गजब का था, मानो पूरा कायनात उसमें ही समाए हो । वह जब भी मुझे देखती, मैं बिल्कुल लजा सा जाता ।बिहारी भाषा में बोल रहा हूं, क्योंकि बिहारी हूं और लजाना हमारी फितरत है । लेकिन बाबू मोशाय जिस दिन बतियाना शुरू हम बिहारी कर देते हैं उस दिन बिल्कुल बाबा रामदेव हो जाते हैं रोके से न रुकते हैं हमसब । हां, यह बात सच है कि जब तक लजाते हैं तब तक डॉ मनमोहन सिंह होते हैं हमलोग । खैर, यह हमारी पृष्ठभूमि है जो आपको जानना अनिवार्य था। क्योंकि जब कहानी शुरू कर देंगे तो यह मत कहिएगा कि न कुछ समझाएं न कुछ बताएं बस लगे हैं आंखों और जुल्फों में। तो इसलिए इतना बताना मेरे लिए आवश्यक हो गया था।

दरअसल बात उस वक्त की हैं जब वह मुझसे मिलने स्कूटी जूपिटर से आयी थी और मानो ऐसा लग रहा था, पूरा जुपिटर ग्रह ही हमसे मिलने आ गया हो ! और हम मानो बुध ग्रह की तरह उसके सामने खुद को खड़े पाते थे । लेकिन तपिश बिल्कुल नहीं थी मुझ में ! बिल्कुल कूल-कूल थे हम। अमिताभ बच्चन के डरमी कूल पाउडर जैसे । तो जैसे ही वह मेरे पास उस दिन मिलने आयी, जैसे कुछ दिनों से आया करती थी । उस दिन भी वह बिल्कुल वैसे ही आयी । आज मैं सोच रखा था फिजूल बातों में रोज की तरह समय नष्ट नहीं करूंगा । जैसे रोज कर दिया करता हूं । आज तो प्रपोज मार ही दूँगा . ., और इतना सोचकर अंदर ही अंदर हिम्मत जैसे-तैसे जुटाया । पर उसका जुपिटर जैसे-जैसे करीब आ रहा था मेरे वैसे-वैसे मेरा हार्ट बीट तेज होता जा रहा था । मन ही मन सोचा परपोज मारने से पहले कहीं मृत्यु न हो जाए मेरी !

पर हार्ट बीट को मैंने जैसे-तैसे कंट्रोल किया । लेकिन मेरे कुछ बोलने से पहले ही मौसम खराब-सा हो गया ! अरे, ठहरना भाई साहब आसमान वाली मौसम की बात नहीं कर रहा हूं । यहां बात उस मौसम की हो रही हैं, जब वह आते ही मुझ पर बरसने लगी । और वह मेरे नोट्स बुक को मेरे हाथों में थमाते हुए बोली, गलती कर दी तुम्हारी कॉपी मांग कर ! पहले तो लिखे क्या हो उसे समझने में समय नष्ट हुआ मेरा सो अलग . ., बाकी तुम्हारी अंग्रेजी की वर्तनी सुधारने में आईएस का विद्यार्थी सा खुद को पाती नज़र आयी ।

उसकी बातों को सुनकर अंदर का प्रेमचंद्र तो जाग गए थे, लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहा था । क्योंकि उसके मुखमंडल से साक्षात शेक्सपियर के बोल निकल रहे थे । वैसे भी अंग्रेजी में हाथ तंग भी था मेरा। अब हिंदी वाली चाकू कब तक उसके अंग्रेजी वाले तलवार का सामना कर पाता । अतः मैं किसी बेशर्म नेता की भांति खुद को प्रस्तुत करते हुए शांत चित्त होकर उसके द्वारा बोले जा रहे प्रसाद को चुप-चाप ग्रहण करने लगा । जब सारी भड़ास निकालकर वह थोड़ा शांत हुई तो मैंने धीरे से उसे बोला - अगर थोड़ी बहुत रंजिश बची हो तो कहीं कॉफी शॉप में चलते हैं हम दोनों, वहां बाकि के बचे भड़ास को सूद समेत निकाल लेना, वैसे भी उस समय उसको मैं श्री मोदी-सा समझ रहा था । और खुद को इमरान खान-सा !

कुछ देर तक तो मेरे इतना बोलने के बाद भी सन्नाटा पसरा रहा । मानो ऐसा लग रहा हो श्री अमित शाह जी ने 370 अनुच्छेद को हटाने का बिल पेश कर दिया हो राज्यसभा में और गुलाम नबी आजाद की सीटीबीटी गुल हो गई हो बिल्कुल !

थोड़ी देर तक तो कोई उत्तर नहीं आया उसके तरफ से । लेकिन, फिर वह कुछ देर बाद बोली - इसकी कोई जरूरत नहीं है, माफ करना ! लेकिन पढ़ने लिखने में थोड़ा ध्यान दो तुम, खास करके अंग्रेजी में ।

इतना उसका बोलना ही मानो मेरे लिए काफी था । मैंने बिना किसी हिचकिचाहट के बोला - अच्छी टीचर की तलाश है मुझे, अंग्रेजी पढ़ने के लिए, अगर तुम मेरी टीचर बन जाती तो मुझे अच्छा लगता ।

इतना सुनकर वह, हल्का ही सही पर हंस पड़ी । और बोली फ्लर्ट भी मार लेते हो ।


मैंने कहा - भला जिंदगी से कौन फ्लर्ट मारता है !


वह बोली - क्या बोले मैं कुछ समझ नहीं पाई।


मेरा उत्तर था - जरूरत भी नहीं समझने की तुन्हें कुछ । समय के साथ सब समझ जाओगी धीरे-धीरे।


वह धीरे से बोली, कुछ समझ नहीं आया । पता नही क्या- क्या बोलते रहते हो . .। (थोड़ा बड़बड़ाते हुए)


उसका इतना बोलना ही मानो मेरे ह्रदय में उफान सा ला दिया हो।


मैं आसपास देखा कोई भी तो नहीं था । एक बेजुवां कुत्ता था जो बिल्कुल ही थका हारा सा बैठा था । जिस पेड़ के नीचे में था वहां कुछ चिड़िया के घोसले थे वह भी मधुर स्वर में उद्घोषणा करते हुए, मानो मुझसे यह कह रही हो की, बेटा जो दिल में छुपाकर अपनी मोहब्बत को रखें हो आज कह ही दो आज बिल्कुल मौका अच्छा है।


मैं भी सोचा कह ही देता हूं, आज पंचांग अच्छा भी लग रहा हैं । ज्यादा से ज्यादा क्या होगा एक-दो थप्पड़ पड़ेगी और क्या । वैसे देखेगा भी कौन भला ? यह कुत्ता ही तो बस, ज्यादा से ज्यादा देखेगा जो कि खुद देवदास बना बैठा है, किसी के इंतज़ार में । और रही बात इन चिड़ियों का तो यह भी क्या सोचेगी भला, बस समझ जाएगी हिम्मत तो किया सफलता, असफलता तो जीवन का हिस्सा है मान लेगी की एक और बन्दा शहीद हो गया और क्या, बस ?

इतना बकबक मन में चल ही रहा था की तभी उसकी फोन की घंटी बजी और उसके चेहरे के हावभाव देखकर मानो ऐसा लग रहा था कि सूचना बड़ी गंभीर मिली थी उसे । शायद उसकी दादी का तबीयत नाजुक हो गया था । वह हड़बड़ाते हुए स्कूटी जूपिटर को स्टार्ट करके निकल ही रही थी तभी मैं बोल पड़ा, भगवान करे सब बढ़िया हो . .!तुम्हारी दादी का जीवन का दीया जलते रहे।

मेरी बातों को सुनकर कुछ बोली तो नहीं वह । बस सिर हिलाकर निकल गयी ।

मैं भी बस उसे जाते हुए देखता रह गया . ., जैसे-जैसे उसकी स्कूटी मेरे नजरों से दूर हो रहीं थी, वैसे-वैसे मानो मेरी ज़िंदगी भी कम होती जा रही थी उस वक्त .......!

बस आज तक मैं उस दिन की तरह उसका इंतजार कर रहा हूं । ना उसकी दादी की कोई खबर मिली मुझे , ना उसकी । पर लोग कहते हैं की, जहां उसका निवास स्थान था वहाँ उस रात एक दुर्घटना हुई थी जिसमें कुछ घर छोड़ पूरा कॉलोनी तबाह हो गया था।

पर मुझे विश्वास है वह एक रोज वहीं मिलने आएगी। जहाँ हम बिछड़े थे !

आज भी मैं उसके इंतजार में रोज उस पेड़ के पास खड़े होकर उसी स्कूटी के इंतजार में उस रोड को देखता हूं जिस रोड से वह आखिरी बार अपनी स्कूटी जुपिटर से गई थी.......!


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama